गुरुवर का हुआ उपकार बहुत, अज्ञान तिमिर हरने के लिए,
मेरे मन को बनाया है गागर, प्रभु ज्ञान सुधा भरने के लिए...
तन को अपना था मान रहा,
पर द्रव्यों में सुख था जान रहा,
पांचो पापों में लिप्त रहा,
साश्वत सुख से अनजान रहा....
मिथ्यात्व का मेरे नाश किआ, सम्यक्त्व प्रकट करने के लिए....गुरुवर का हुआ उपकार बहुत...
निज आत्म स्वभाव में रम जाऊं,
एक दिन तुमसा ही बन जाऊं,
गुरुवर ऐसा वर दो मुझको,
भव भव तुमसा ही गुरु पाऊं...
गुणगान सदा ही करता रहूँ, भव-सागर से तिरने के लिए.....