तर्ज़- परदेसी परदेसी जाना नहीं..!!
जिन मंदिर जिन मंदिर आना सभी,
आना सभी घर छोड़के, मोह छोड़के
जिन मंदिर मेरे भाई रोज़ है आना
इसे याद रखना कभी भूल ना जाना। जिन मंदिर…..!!
चार कषायें तुमने पाली पाप किया,पाप किया
नर भव अपना यों ही तो बर्बाद किया,बर्बाद किया।
जैनी होकर जिन मंदिर को छोड़ दिया,छोड़ दिया।
दुनिया के कामों में समय गुजार दिया,गुजार दिया।
जिन मंदिर मेरे भाई…….।
जैन धर्म हमको ये सिखलाता है सिखलाता है
वस्तु स्वरूप स्वतंत्र समझो समझाता है,समझाता है।
जीव मात्र भगवान हमें सिखलाता है,सिखलाता है।
करो आत्म कल्याण समय अब जाता है।
जिन मंदिर मेरे भाई…….।
क्यों जाता गिरनार अरे जाता काशी,जाता काशी।
घर में ही तू देख अरे घर का वाशी,घर का वाशी।
वीर प्रभु की दिव्य देशना में आया,में आया।
अपना प्रभु तो अपने अंदर में छाया,में छाया।
जिन मंदिर मेरे भाई……..।