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JainSamaj.World

Soumya jain burhar

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  1. मति ज्ञान के भेद हैं चार :- १. अवग्रह २. ईहा ३. अवाय ५. धारणा
  2. मनुष्य के जीवन का मूल सुख और शांति है जो अहिंसा पर आधारित है वास्तव में हिंसा के विचार , हिंसा के वचन , हिंसा के प्रयत्न न करना अहिंसा है । अहिंसा एवं सत्य एक दूसरे के पूरक हैं । अहिंसा का आयतन अनुकंपा गुण है। अहिंसा से ही स्व-पर कल्याण संभव है। यह धर्म है अहिंसा घारो ,ह्रदय से बढ़ के । जीता स्वयं को जिसने, जिन शब्द कह रहा है ।। माने जो ऐसे जिनको, सच जैन वह रहा है । सच्चे बनोगे जैनी ,जिनवर के पथ पै चल के ।। तरुवर के धर्म जैसा ,उपकार सबका करना । सब में छिपी अहिंसा ,जिओ जिलाओ मिलके ।। यदि हो अहिंसा प्रेमी, स्वागत करो दिवस का । दिन में ही लो बाराती , दिन में हो भोज सबका ।। बन जाओ श्रेष्ठ मानव , कुरीतियां कुचल के । यह धर्म है अहिंसा धारो हृदय से बढ़ के ।। अहिंसा परमो धर्म:
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