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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. जय मुनिसुव्रतनाथ स्वामी, प्रभु मुनिसुव्रतनाथ स्वामी जय मुनिसुव्रतनाथ स्वामी, प्रभु मुनिसुव्रतनाथ स्वामी भक्ति भाव से प्रणमु तुमको, जय अन्तरयामि २ जय मुनिसुव्रतनाथ स्वामी० राजगृही में जन्म किया प्रभु २, आनन्द भयो भारी । सुर नर मुनि गुण गाये तिहारी, आरती करी थारी ॥ जय मुनि सुव्रतनाथ स्वामी० पिता तिहारे सुमित्र राजा २, शामा के जाया । श्याम वर्ण मूरत तेरी हैं, पैठण अतिशय दर्शाया ॥ जय मुनि सुव्रतनाथ स्वामी० जो ध्यावे सुख पावे सब ही २, सब संकट को दूर करे २। मंवांचित फल पावे सब ही 2, जो प्रभु चरण हरे २ ॥ जय मुनि सुव्रतनाथ स्वामी०
  2. महाराजा स्वामी हो जी हो महाराजा स्वामी हो जी हो जिनराजा स्वामी थे तो म्हानै त्यारो म्हाका राज। थे तो म्हानै त्यारो म्हाका राज जी, महाराजा स्वामी...॥ थे ही तारन तरण छोजी, थे छो गरीवनराज, अधम उधारन जान के जी, शरणैं आया री लाज जी ॥ जीव अनंता त्यारिया जी, जाको अंत न पार, अधम उदधि तिर्यंच के जी, बहुत किये भवपार जी ॥ ऐसी सुणकर साख तिहारी, आयो छूं दरबार, भवदधि डूबत काढ मोकूं, सरणैं आया की लाज जी ॥ अर्ज करूं कर जोड के जी, विनवूं बारंबार, बलदेव प्रभू है दास तिहारो, दीजो शिवपुर वास जी ॥
  3. हम तो कबहुँ न निजगुन भाये तन निज मान जान तनदुखसुख में बिलखे हरखाये ॥ तनको गरन मरन लखि तनको, धरन मान हम जाये या भ्रम भौंर परे भवजल चिर, चहुँगति विपत लहाये ।१। दरशबोधव्रतसुधा न चाख्यौ, विविध विषय-विष खाये सुगुरु दयाल सीख दइ पुनिपुनि,सुनि,सुनि उर नहि लाये।२। बहिरातमता तजी न अन्तर-दृष्टि न ह्वै निज ध्याये धाम-काम-धन-रामाकी नित, आश-हुताश जलाये ।३। अचल अनूप शुद्ध चिद्रूपी, सब सुखमय मुनि गाये दौल चिदानंद स्वगुन मगन जे, ते जिय सुखिया थाये ।४।
  4. केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन केसरिया ॥ तन केसरिया, मन केसरिया, पूजा के चावल केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया॥ केसरिया...॥ हम केसरिया, तुम केसरिया, अष्ट द्रव्य सब हैं केसरिया, मंदिर की है ध्वजा केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ॥ इन्द्र केसरिया, इन्द्राणि केसरिया, सिद्धों की पूजन केसरिया, पूजा के सब भाव केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ॥ वीर प्रभु की वाणी केसरिया, अहिंसा परमो धर्म केसरिया, जीयो जीने दो केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ॥ पीछी केसरिया, कमण्डल केसरिया,दिगम्बर साधु भी केसरिया शत शत वंदन है केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ॥ स्वर्णिम रथ देखो केसरिया, स्वर्ण वरण प्रभुजी केसरिया, छत्र चंवर ध्वज सब केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ॥
  5. मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २ मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २ मिथिला नगरी जन्मे स्वामी २ प्रजावती माँ हैं जगनामी २ मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २ कुम्भराज पितु तुम सम शिशु पा २ कहलाये सचमुच रत्नाकर २ मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २ मगशिर सुदी ग्यारस तिथि प्यारी २ जन्मे त्रिभुवन में उजियारी २ मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २ जन्म तिथि में ली प्रभु दीक्षा २ कहलाये प्रभु कर्म विजेता २ मल्लिनाथ प्रभु की आरती कीजे, पंचम गति का निज सुख लीजे २
  6. हम तो कबहूँ न हित उपजाये सुकुल-सुदेव-सुगुरु सुसंग हित, कारन पाय गमाये! ॥ ज्यों शिशु नाचत, आप न माचत, लखनहारा बौराये त्यों श्रुत वांचत आप न राचत, औरनको समुझाये ।१। सुजस-लाहकी चाह न तज निज, प्रभुता लखि हरखाये विषय तजे न रजे निज पदमें, परपद अपद लुभाये ।२। पापत्याग जिन-जाप न कीन्हौं, सुमनचाप-तप ताये चेतन तनको कहत भिन्न पर, देह सनेही थाये ।३। यह चिर भूल भई हमरी अब कहा होत पछताये दौल अजौं भवभोग रचौ मत, यौं गुरु वचन सुनाये ।४।
  7. चरणों में आया हूं, उद्धार तर्ज: होठों से छू लो... चरणों में आया हूं, उद्धार जिनंद कर दो। निज रीति निभाकर के, उपकार जिनंद कर दो॥ संसार की नश्‍वरता, मैंने अब जानी है, मंगलकारी जब ही, सुनी जिनवर वाणी है। चारित्र की नाव चढा, भवपार जिनंद कर दो॥ निज...॥ ना चाहत भोगों की, ना जग का कोई बंधन, गर ध्यान करूं कोई, तो देखूं केवल जिन। तम दूर हटा मन का, उजियार जिनंद कर दो॥ निज...॥ कर्मों ने जनम जनम, मेरा पीछा नहीं छोडा, भरमाया यूंही प्रभू से, नाता ना कभी जोडा। करुणा कर अब इनसे, निस्तार जिनंद कर दो॥ निज...॥
  8. श्री कुन्थुनाथ प्रभु की हम आरती करते हैं आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं । सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं २ श्री कुन्थुनाथ प्रभु की हम आरती करते हैं । जब गर्भ में प्रभु तुम आये पितु सुरसेन श्री कांता माँ हर्षाये सुर वंदन करने आये श्रावण वदि दशमी, गर्भ कल्याण मनाये हस्तिनापुरी उस पावन धरती को नमते हैं आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं । सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं २ वैसाख सुदी एकम में, जन्मे जब सुर गृह में बाजे बजते थे सुर शैल शिखर ले जाकर सब इन्द्र सपारी करे नवहन जिन शिशु पर जन्मकल्यानक से पावन उस गिरी को जजते हैं आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं । सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं २
  9. आगया.. आगया... आगया.. तर्ज : आएगा आएगा - महल आगया.. आगया... आगया... आगया शरण तिहारी आगया... आगया... आगया.. सुनकर बिरद तुम्हारा, तेरी शरण में आया। तुमसा न देव मैंने, कोई कहीं है पाया। सर्वज्ञ वीतरागी सच्चे हितोपदेशक २ दर्शन से नाथ तेरे कटते हैं पाप बेशक ॥ आगया..।१। चारों गति के दुख जो, मैंने भुगत लिये हैं। तुमसे छिपे नहीं हैं, जो जो करम किये हैं। अब तो जनम मरण की काटो हमारी फ़ांसी २ वरना हंसेगी दुनिया, बिगडेगी बात खासी ॥ आगया..।२। अंजन से चोर को भी, तुमने किया निरंजन। श्रीपाल कोडि की भी, काया बना दी कंचन। मेंढक सा जीव भी जब, तेरे नाम से तिरा है २ पंकज ये सोच तेरे, चरणों में आ गिरा है ॥ आगया..।३।
  10. सुनो जिया ये सतगुरु की बातैं, हित कहत दयाल दया तैं ॥ यह तन आन अचेतन है तू, चेतन मिलत न यातैं तदपि पिछान एक आतमको, तजत न हठ शठ-तातैं ॥ चहुँगति फिरत भरत ममताको, विषय महाविष खातैं तदपि न तजत न रजत अभागै, दृग व्रत बुद्धिसुधातैं ॥ मात तात सुत भ्रात स्वजन तुझ, साथी स्वारथ नातैं तू इन काज साज गृहको सब, ज्ञानादिक मत घातै ॥ तन धन भोग संजोग सुपन सम, वार न लगत विलातैं ममत न कर भ्रम तज तू भ्राता, अनुभव-ज्ञान कलातैं ॥ दुर्लभ नर-भव सुथल सुकुल है, जिन उपदेश लहा तैं दौल तजो मनसौं ममता ज्यों, निवडो द्वंद दशातैं ॥
  11. तुमसे लागी लगन ले लो तर्ज:गम दिये मुस्तकिल... तुमसे लागी लगन ले लो अपनी शरण--पारस प्यारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा। निशदिन तुमको जपूं पर से नेहा तजूं--जीवन सारा, तेरे चरणों में बीते हमारा॥ तुमसे लागी...।१। अश्वसेन के राज दुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे । सबसे नेहा तोडा जग से मुख को मोडा--संयम धारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा॥ तुमसे लागी.।२। इन्द्र और धरणेन्द्र भी आये, देवी पद्मावती मंगल गाये । आशा पूरो सदा, दुख नहीं पावे कदा--सेवक थारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा॥ तुमसे लागी.।३। जग के दुख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है । मेटो जामन मरण होवे ऐसा जतन--तारण हारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा॥ तुमसे लागी.।४। लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊं, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊं। पंकज व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया--लागे खारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा॥ तुमसे लागी.।५।
  12. जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभु देवा । जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभु देवा । तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा २। चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा २ ॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये २। रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें २॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० बाल्यकाल में ही प्रभु तुमने दीक्षा ली प्यारी २। भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी २॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ २ । खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया २॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे २। मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे २॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ० हम प्रभु दास तिहारे, निश दिन गुण गावें २। पाप तिमिर को दूर करो, प्रभु सुख शांति लावें २॥ तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा ०
  13. जिनवर दरबार तुम्हारा जिनवर दरबार तुम्हारा, स्वर्गों से ज्यादा प्यारा। वीतराग मुद्रा से परिणामों में उजियारा। ऐसा तो हमारा भगवन है, चरणों में समर्पित जीवन है ॥ समवसरण के अंदर, स्वर्ण कमल पर आसन, चार चतुष्टय धारी, बैठे हो पद्मासन। परिणामों में निर्मलता, तुमको लखने से आये, फ़िर वीतरागता बढती, जो जिनवर दर्शन पाये, ऐसा तो... त्रैलोक्य झलकता भगवन, कैवल्य कला में, तीनों ही कालों में कब क्या होगा कैसे। जग के सारे ज्ञेयों को, तुम एक समय में जानो, निज में ही तन्मय रहते, उनको न अपना मानो, ऐसा तो.. दिव्यध्वनि के द्वारा, मोक्ष मार्ग दर्शाया, प्रभु अवलंबन लेकर, मैंने भी निजपद पाया। मैं भी तुमसा बनने को, अब भेदज्ञान प्रगटाऊं, निज परिणति में ही रमकर, अब सम्यकदर्शन पाऊं, ऐसा..
  14. तोड़ विषियों से मन, जोड़ प्रभु से लगन, आज अवसर मिला ।।टेर ।। रंग दुनियां के अब तक न समझा है तू भूल निज को हा! पर मैं यों रीझा है तू अब तो मुँह खोल चख, स्वाद आतम का लख, शिव पयोधर मिला ।१। हाथ आने की फिर ये सु-घड़ियाँ नहीं प्रीति जड़ से लगाना है अच्छा नहीं देख पुद्गल का घर, नहीं रहता अमर, जग चराचर मिला ।२। ज्ञान ज्योति हृदय में अब तो जगा देख `सौभाग्य' जग में न कोई सगा तजदे मिथ्या भरम, तुझे सच्चे धरम का, है अवसर मिला ।३।
  15. बाजे छम छम छम छमा छम बाजे घुँघरू बाजे घुँघरू० हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ बाजे छम छम० प्रभु को उठाया हाथी पे बैठाया २ पांडुक बन अभिषेक कराया, इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ दीपक ज्योति से आरती करूँ २ वीर प्रभुजी की मूरत निहारूँ २ ध्यान लगन चरणों में धरूँ चरणों में धरूँ० हाथों में दीपक लेकर० हम सब प्रभु के गुण को गाएँ प्रभुजी के चरणों में शीश झुकाएँ० इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ प्रभु तुम बिन मोहे कोई ना संभाले प्रभु तुम बिन कोई ना पारे लगावे मेरी यही चाह और कुछ ना कहूँ० हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ
  16. कर लो जिनवर का गुणगान कर लो जिनवर का गुणगान, आई सुखद घडी, आई सफ़ल घडी, देखो मंगल घडी॥ वीतराग का दर्शन-पूजन, भव भव को सुखकारी। जिन प्रतिमा की प्यारी छबि लख मैं जाऊं बलहारी ।१। तीर्थंकर सर्वज्ञ हितंकर महा मोक्ष का दाता। जो भी शरण आपकी आता तुम सम ही बन जाता ।२। प्रभु दर्शन से आर्त रौद्र परिणाम नाश हो जाते। धर्म ध्यान में मन लगता है, शुकल ध्यान भी पाते ।३। सम्यग्दर्शन हो जाता है मिथ्यातम मिट जाता। रत्नत्रय की दिव्य शक्ति से, कर्म नाश हो जाता ।४। निज स्वरूप का दर्शन होता, निज की महिमा आती। निज स्वभाव साधन के द्वारा सिद्ध स्वगति मिल जाती ।५।
  17. आयो आयो रे हमारो बडो भाग आयो आयो रे हमारो बडो भाग, कि हम आये पूजन को, पूजन को प्रभु दर्शन को, पावन प्रभु पद दर्शन को॥ जिनवर की अंतर्मुख मुद्रा आतम दर्श कराती, मोह महातम प्रक्षालन कर शुद्ध स्वरूप दिखाती ।१। भव्य अकृत्रिम चैत्यालय की जग में शोभा भारी, मंगल ध्वज ले सुरपति आये शोभा जिनकी न्यारी ।२। अनेकांत मय वस्तु समझ जिन शासन ध्वज लहरावें, स्याद्वाद शैली से प्रभुवर मुक्ति मार्ग समझावें ।३।
  18. कहा मानले ओ मेरे भैया, भव भव डुलने में क्या सार है तू बनजा बने तो परमात्मा,तेरी आत्मा की शक्ति अपार है ॥ भोग बुरे हैं त्याग सजन ये, विपद करें और नरक धरें ध्यान ही है एक नाव सजन जो, इधर तिरें और उधर वरें झूँठी प्रीति में तेरी ही हार है,वाणी गणधरकी ये हितकार है ॥ लोभ पाप का बाप सजन क्यों राग करे दु:खभार भरे ज्ञान कसौटी परख सजन मत छलियों का विश्वास करे ठग आठों की यहाँ भरमार है, इन्हें जीते तो बेड़ा पार है ॥ नरतन का `सौभाग्य' सजन ये हाथ लगे ना हाथ लगे कर आतमरस पान सजन जो जनम भगे और मरण भगे मोक्ष महल का ये ही द्वार है, वीतरागी ही बनना सार है ॥
  19. गा रे भैया, गा रे भैया गा रे भैया, गा रे भैया, गा रे भैया गा, प्रभु गुण गा तू समय ना गवां ॥ किसको समझे अपना प्यारे, स्वारथ के हैं रिश्ते सारे फ़िर क्यों प्रीत लगाये, ओ भैया जी॥ गा रे भैया...।१। दुनियां के सब लोग निराले, बाहर उजले अंदर काले फ़िर क्यों मोह बढाये, ओ बाबू जी॥ गा रे भैया...।२। मिट्टी की यह नश्वर काया, जिसमें आतम राम समाया उसका ध्यान लगा ले, ओ दादा जी॥ गा रे भैया...।३। स्वारथ की दुनियां को तजकर, निश दिन प्रभु का नाम जपाकर समयग्दर्शन पाले, ओ काका जी॥ गा रे भैया...।४। शुद्धातम को लक्ष्य बनाकर, निर्मल भेदज्ञान प्रगटाकर मुक्ति वधू को पाले, ओ लाला जी॥ गा रे भैया...।५।
  20. कोई इत आओ जी कोई इत आओ जी, वीतराग ध्याओ जी, जिनगुण की आरती संजोय लाओ जी ॥ दया का हो दीपक, क्षमा की हो ज्योत, तेल सत्य संयम में, ज्ञान का उद्योत, मोहतम नशाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ॥ संयम की आरती में, समकित सुगंध, दर्श ज्ञान चारित्र की, हृदय में उमंग, भेद ज्ञान पाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ॥ निर-तन को पाय कर, भूलयो मती, बन जा दिगम्बर, महाव्रत यती, भावना ये भावो जी, वीतराग ध्याओ जी ॥ जिनगुण की आरती में, ध्यान की कला, भव भव के लागे सब, कर्म लो गला, भवभ्रमण मिटाओ जी, वीतराग ध्याओ जी ॥
  21. संसार महा अघसागर में, वह मूढ़ महा दु:ख भरता है । जड़ नश्वर भोग समझ अपने, जो पर में ममता करता है। बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या - २ पुण्य उदय नर जन्म मिला शुभ, व्यर्थ गमों फल लीना क्या ॥ कष्ट पड़ा है जो जो उठाना, लाख चौरासी में गोते खाना भूल गया तूं किस मस्ती में उसदिन था प्रण कीना क्या ॥ बचपन बीता बीती जवानी, सर पर छाई मौत डरानी ये कंचन सी काया खोकर, बांधा है गाँठ नगीना क्या ॥ दिखते जो जग भोग रंगीले, ऊपर मीठे हैं जहरीले भव भय कारण नर्क निशानी, है तूने चित दीना क्या ॥ अंतर आतम अनुभव करले, भेद विज्ञान सुधा घट भरले अक्षय पद `सौभाग्य' मिलेगा,पुनिपुनि मरना जीना क्या ॥
  22. रोम रोम से निकले प्रभुवर रोम रोम से निकले प्रभुवर नाम तुम्हारा, हां नाम तुम्हारा । ऐसी भक्ति करूं प्रभु जी, पाऊं न जन्म दुबारा ॥ जिनमंदिर में आया, जिनवर दर्शन पाया, अंतर्मुख मुद्रा को देखा, आतम दर्शन पाया, जनम जनम तक ना भूलूंगा, यह उपकार तुम्हारा ॥ अरहंतों को जाना, आतम को पहिचाना, द्रव्य और गुण पर्यायों से, जिन सम निज को माना, भेद ज्ञान ही महामंत्र है, मोह तिमिर क्षयकारा ॥ पंच महाव्रत धारूं, समिति गुप्ति अपनाऊं, निर्ग्रथों के पथ पर चलकर, मोक्ष महल में आऊं, पुण्य पाप की बंध श्रॄंखला, नष्ट करूं दुखकारा ॥ देव-शास्त्र-गुरु मेरे, हैं सच्चे हितकारी, सहज शुद्ध चैतन्य राज की, महिमा जग से न्यारी, भेदज्ञान बिन नहीं मिलेगा, भव का कभी किनारा ॥
  23. जयति जय जय गोम्मटेश्वर, जयति जय बाहुबली । जयति जय भरताधिपति, विजयी अनुपम भुजबली । श्री आदिनाथ युगादिब्रह्मा त्रिजगपति विख्यात हैं । गुणमणि विभूषित आदिनाथ के भारत और बाहुबली ॥ जयति जय ०० वृषभेश जब तप वन चले तब न्याय नीति कर गए । साकेतनगरीपति भरत, पोदनपुरी बाहुबली ॥ जयति जय०० षटखंड जीता भरत मन की नहीं आशा बुझी । निज चक्ररत्न चला दिया फिर भी विजयी बाहुबली ॥ जयति जय०० सब आखिर राज्य विभव तजा, कैलाश पर जा बसे । इक वर्ष का ले योग तब, निश्चल हुए बाहुबली ॥ जयति जय०० तन से प्रभु निर्मम हुए वन जंतु क्रीडा कर रहे । सिद्धि रमा वरने चले प्रभु वीर बन बाहुबलि॥ जयति जय०० प्रभु बाहुबली की नग्न मुद्रा सीख यह सिखला रही । सब त्याग करके माधुरी तुम भी बनो बाहुबली ॥ जयति जय००
  24. जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा, घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा । समझ सीख गुरु की वाणी, फिरको कहेगा, फिरको कहेगा, घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा ।।टेक।। जग भोगों के पीछे, अनन्तों काल काल बीते हैं । इस आशा तृष्णा के अभी भी सपने रीते हैं । बना मूढ़ कबलों मन पर, चलता रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।१। अरे इस माटी के तन पे, वृथा अभिमान है तेरा । पड़ा रह जायगा वैभव, उठेगा छोड़ जब डेरा । नहीं साथ आया न जाते, कोई संग रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।२। ज्ञानदृग खोलकर चेतन, भेदविज्ञान घट भर ले । सहज `सौभाग्य' सुख साधन,मुक्ति रमणी सखा वर ले। यही एक पद है प्रियवर, अमर जो रहेगा-२ ।।घड़ी.. ।३।
  25. जयवन्तो जिनबिम्ब जगत में जयवन्तो जिनबिम्ब जगत में, जिन देखत निज पाया है ॥ वीतरागता लखि प्रभुजी की, विषय दाह विनशाया है । प्रगट भयो संतोष महागुण, मन थिरता में आया है ॥ अतिशय ज्ञान षरासन पै धरि, शुक्ल ध्यान शरवाया है । हानि मोह अरि चंड चौकडी, ज्ञानादिक उपजाया है ॥ वसुविधि अरि हर कर शिवथानक, थिरस्वरूप ठहराया है । सो स्वरूप रुचि स्वयंसिद्ध प्रभु, ज्ञानरूप मनभाया है ॥ यद्यपि अचित तदपि चेतन को, चितस्वरूप दिखलाया है । कृत्य कृत्य जिनेश्वर प्रतिमा, पूजनीय गुरु गाया है ॥
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