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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. पंच परम परमेष्ठी देखे, हृदय हर्षित होता है, आनंद उल्लसित होता है, हो... सम्यग्दर्शन होता है॥ दर्शन-ज्ञान-सुख वीर्य स्वरूपी, गुण अनंत के धारी हैं, जग को मुक्ति मार्ग बताते, निज चैतन्य विहारी हैं, मोक्ष मार्ग के नेता देखे, विश्व तत्व के ज्ञाता देखे। हृदय॥ द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, जो सिद्धालय के वासी हैं, आतम को प्रतिबिम्बित करते, अजर अमर अविनाशी हैं, शाश्वत सुख के भोगी देखे, योगरहित निज योगी देखे। हृदय॥ साधु संघ के अनुशासक जो, धर्म तीर्थ के नायक हैं, निजपर के हितकारी गुरुवर, देव धर्म परिचायक हैं, गुण छत्तीस सुपालक देखे, मुक्ति मार्ग संचालक देखे। हृदय॥ जिनवाणी को हृदयंगम कर, शुद्धातम रस पीते हैं, द्वादशांग के धारक मुनिवर, ज्ञानानंद में जीते हैं, द्रव्य-भाव श्रुत धारी देखे, बीस-पांच गुणधारी देखे। हृदय॥ निजस्वभाव साधन रत साधु, परम दिगंबर वनवासी, सहज शुद्ध चैतन्य राजमय, निजपरिणति के अभिलाषी, चलते-फ़िरते सिद्ध प्रभु देखे, बीस-आठ गुणमय विभु देखे, हृदय
  2. है परम-दिगम्बर मुद्रा जिनकी, वन-वन करें बसेरा मैं उन चरणों का चेरा, हो वन्दन उनको मेरा शाश्वत सुखमय चैतन्य-सदन में, रहता जिनका डेरा मैं उन चरणों का चेरा, हो वन्दन उनको मेरा ॥टेक जहँ क्षमा मार्दव आर्जव सत्, शुचिता की सौरभ महके संयम,तप, त्याग,अकिंचन स्वर, परिणति में प्रतिपल चहके है ब्रह्मचर्य की गरिमा से, आराध्य बने जो मेरा ।१। अन्तर-बाहर द्वादश तप से, जो कर्म-कालिमा दहते उपसर्ग परीषह-कृत बाधा, जो साम्य-भाव से सहते जो शुद्ध-अतीन्द्रिय आनन्द-रस का, लेते स्वाद घनेरा ।२। जो दर्शन ज्ञान चरित्र वीर्य तप, आचारों के धारी जो मन-वच-तनका आलम्बन तज, निज चैतन्य विहारी शाश्वत सुखदर्शन-ज्ञान-चरित में, करते सदा बसेरा ।३। नित समता स्तुति वन्दन अरु, स्वाध्याय सदा जो करते प्रतिक्रमण और प्रति-आख्यान कर, सब पापों को हरते चैतन्यराज की अनुपम निधियाँ, जिसमें करें बसेरा ।४।
  3. जो मंगल चार जगत में हैं, हम गीत उन्हीं के गाते हैं, मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥ जहां राग द्वेष की गंध नहीं, बस अपने से ही नाता है, जहां दर्शन ज्ञान अनंतवीर्य-सुख का सागर लहराता है, जो दोष अठारह रहित हुऐ, हम मस्तक उन्हें नवाते हैं, मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥ जो द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, नित सिद्धालय के वासी हैं, आतम को प्रतिबिम्बित करते,जो अजर अमर अविनाशी हैं, जो हम सबके आदर्श सदा, हम उनको ही नित ध्याते हैं, मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥ जो परम दिगंबर वन वासी गुरु रत्नत्रय के धारी हैं, आरंभ परिग्रह के त्यागी, जो निज चैतन्य विहारी हैं, चलते-फ़िरते सिद्धों से गुरु-चरणों में शीश झुकाते हैं, मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥ प्राणों से प्यारा धर्म हमें, केवली भगवान का कहा हुआ, चैतन्यराज की महिमामय, यह वीतराग रस भरा हुआ, इसको धारण करने वाले भव-सागर से तिर जाते हैं, मंगलमय श्री जिन चरणों में, हम सादर शीश झुकाते हैं ॥
  4. नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ, परम दिगम्बर साधु महाव्रतधारी धारी...धारी महाव्रत धारी ॥टेक॥ राग-द्वेष नहिं लेश जिन्हों के मन में है..तन में है कनक-कामिनी मोह-काम नहिं तन में है...मन में है परिग्रह रहित निरारम्भी, ज्ञानी वा ध्यानी तपसी नमो हितकारी...कारी, नमो हितकारी ।१। शीतकाल सरिता के तट पर, जो रहते..जो रहते ग्रीष्म ऋतु गिरिराज शिखर चढ़, अघ दहते..अघ दहते तरु-तल रहकर वर्षा में, विचलित न होते लख भय वन अँधियारी...भारी, वन अँधियारी ।२। कंचन-काँच मसान-महल-सम, जिनके हैं...जिनके हैं अरि अपमान मान मित्र-सम, जिनके हैं..जिनके हैं समदर्शी समता धारी, नग्न दिगम्बर मुनिवर भव जल तारी...तारी, भव जल तारी ।३। ऐसे परम तपोनिधि जहाँ-जहाँ, जाते हैं...जाते हैं परम शांति सुख लाभ जीव सब, पाते हैं...पाते हैं भव-भव में सौभाग्य मिले, गुरुपद पूजूँ ध्याऊँ वरूँ शिवनारी... नारी, वरूँ शिवनारी ।४।
  5. मंत्र जपो नवकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार, पंचप्रभु को वंदन कर लो, परमेष्ठी सुखकार ॥ अरहंतों का दर्शन करलो, शुद्धातम का परिचय कर लो, शिवसुख साधनहार, मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥ सब सिद्धों का ध्यान लगालो, सिद्धसमान ही निज को ध्यालो, मंगलमय सुखकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥ आचार्यों को शीश नवाओ, निर्ग्रंथों का पथ अपनाओ, मुक्ति मार्ग आराध मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥ उपाध्याय से शिक्षा लेकर, द्वादशांग को शीश नवाकर, जिनवाणी उर धार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥ सर्व साधु को वंदन कर लो, रत्नत्रय आराधन कर लो, जन्म मरण क्षयकार मनुवा, मंत्र जपो नवकार ॥
  6. म्हारा परम दिगम्बर मुनिवर आया, सब मिल दर्शन कर लो, हाँ, सब मिल दर्शन कर लो बार-बार आना मुश्किल है, भाव भक्ति उर भर लो हाँ, भाव भक्ति उर भर लो ॥टेक॥ हाथ कमंडलु काठ को, पीछी पंख मयूर विषय-वास आरम्भ सब, परिग्रह से हैं दूर श्री वीतराग-विज्ञानी का कोई, ज्ञान हिया विच धर लो, हाँ।१। एक बार कर पात्र में, अन्तराय अघ टाल अल्प-अशन लें हो खड़े, नीरस-सरस सम्हाल ऐसे मुनि महाव्रत धारी, तिनके चरण पकड़ लो, हाँ ।२। चार गति दु:ख से टरी, आत्मस्वरूप को ध्याय पुण्य-पाप से दूर हो, ज्ञान गुफा में आय सौभाग्य तरण तारण मुनिवर के, तारण चरण पकड़ लो,हाँ॥
  7. बने जीवन का मेरा आधार रे, णमोकार णमोकार णमोकार रे॥ पहली शरण अरिहंतों की जाना, हो जाओगे भव से पार रे ॥१॥ णमोकार... दूजी शरण श्री सिद्धों की जाना, मुक्ति का अंतिम द्वार रे ॥२॥ णमोकार... तीजी शरण आचार्यॊ की जाना, करते हैं सबका उद्धार रे ॥३॥ णमोकार... चौथी शरण उपाध्यायॊं की जाना, देते जिनवाणी का ज्ञान रे ॥४॥ णमोकार... पांचवी शरण सर्व साधु की जाना, जिन पथ पे चलते वो शान से ॥५॥ णमोकार...
  8. धन्य मुनीश्वर आतम हित में छोड़ दिया परिवार कि तुमने छोड़ दिया परिवार धन छोड़ा वैभव सब छोड़ा, समझा जगत असार कि तुमने छोड़ दिया संसार ॥टेक॥ काया की ममता को टारी, करते सहन परीषह भारी पंच महाव्रत के हो धारी, तीन रतन के हो भंडारी आत्म स्वरूप में झुलते, करते निज आतम-उद्धार, कि तुमने.. राग-द्वेष सब तुमने त्यागे, वैर-विरोध हृदय से भागे परमातम के हो अनुरागे, वैरी कर्म पलायन भागे सत् सन्देश सुना भविजन को, करते बेड़ा पार, कि तुमने.. होय दिगम्बर वन में विचरते, निश्चल होय ध्यान जब करते निजपद के आनंद में झुलते,उपशम रस की धार बरसते मुद्रा सौम्य निरख कर, मस्तक नमता बारम्बार, कि तुमने..
  9. मंत्र नवकार हमें प्राणों से प्यारा, ये है वो जहाज जिसने लाखों को तारा अरिहंतों को नमन हमारे, अशुभ कर्म अरि हनन करे। सिद्धों के सुमिरन से आत्मा, सिद्ध क्षेत्र को गमन करे। भव भव में नहीं जन्में दुबारा ॥ मंत्र नवकार...।१। आचार्यों के आचारों से, निर्मल निज आचार करें। उपाध्याय का ध्यान धरें हम, संवर का सत्कार करें। सर्व साधु को नमन हमारा ॥ मंत्र नवकार...।२। इसी मंत्र से नाग नागिनी, पद्मावती धरणेन्द्र हुए। सेठ सुदर्शन को सूली से, मुक्ति मिलि राजेन्द्र हुए। अंजन चोर का कष्ट निवारा ॥ मंत्र नवकार...।३। सोते उठते चलते फ़िरते, इसी मंत्र का जाप करो। आप कमाये पाप तो उनका, क्षय भी अपने आप करो। इस महामंत्र का ले लो सहारा ॥ मंत्र नवकार...।४।
  10. संत साधु बन के विचरूँ, वह घड़ी कब आयेगी । चल पडूँ मैं मोक्ष पथ में, वह घड़ी कब आयेगी ।।टेक ।। हाथ में पीछी कमण्डलु, ध्यान आतम राम का । छोड़कर घरबार दीक्षा की घड़ी कब आयेगी ।१। आयेगा वैराग्य मुझको, इस दु:खी संसार से । त्याग दूँगा मोह ममता, वह घड़ी कब आयेगी ।२। पाँच समिति तीन गुप्ति, बाईस परिषह भी सहूँ । भावना बारह जु भाऊँ, वह घड़ी कब आयेगी ।३। बाह्य उपाधि त्याग कर, निज तत्त्व का चिंतन करूँ । निर्विकल्प होवे समाधि, वह घड़ी कब आयेगी ।४। भव-भ्रमण का नाश होवे, इस दु:खी संसार से । विचरूँ मैं निज आतमा में, वह घड़ी कब आयेगी ।५।
  11. परम दिगम्बर मुनिवर देखे, हृदय हर्षित होता है, आनन्द उलसित होता है, हो-हो सम्यग्दर्शन होता है ।०। वास जिनका वन-उपवन में, गिरि-शिखर के नदी तटे, वास जिनका चित्त गुफा में, आतम आनन्द में रमे ।१। कंचन-कामिनी के त्यागी, महा तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी, काया की ममता के त्यागी, तीन रतन गुण भण्डारी ।२। परम पावन मुनिवरों के, पावन चरणों में नमूँ, शान्त-मूर्ति सौम्य-मुद्रा, आतम आनन्द में रमूँ ।३। चाह नहीं है राज्य की, चाह नहीं है रमणी की, चाह हृदय में एक यही है, शिव-रमणी को वरने की ।४। भेद-ज्ञान की ज्योति जलाकर, शुद्धातम में रमते हैं, क्षण-क्षण में अन्तर्मुख हो, सिद्धों से बातें करते हैं ।५।
  12. मंत्र नवकारा हृदय में धर लिया , उसने जीते कर्म शिव को वर लिया ॥ मंत्र मे अरिहन्त सिद्धों को नमन , उसने आतम सिद्ध अपना कर लिया ॥ उसने जीते ..॥ भाव से आचार्य को वंदन किया , ज्ञान मोती से ये दामन भर लिया ॥ उसने जीते ..॥ भक्ति से उवज्झाय को कीना नमन, उसने जडता का अंधेरा हर लिया ॥ उसने जीते ..॥ सर्व साधु तारने को नाव है, जो चढा इस नाव पे भव तर लिया ॥ उसने जीते ..॥ मंत्र तीनो लोक में ऐसा नहीं , जिन जपा जीवन सफ़ल प्रभु कर लिया ॥उसने जीते..॥
  13. वे मुनिवर कब मिली हैं उपगारी । साधु दिगम्बर, नग्न निरम्बर, संवर भूषण धारी ॥टेक॥ कंचन-काँच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी महल मसान,मरण अरु जीवन,सम गरिमा अरु गारी ।१। सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी शोधत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ।२। जोरि युगल कर `भूधर' विनवे, तिन पद ढोक हमारी भाग उदय दर्शन जब पाऊँ, ता दिन की बलिहारी ।३।
  14. आचार्य जी से ये पूछे जग सारा , णमोकार नाम का ये कौन मंत्र प्यारा ॥ बोले मुस्काते मुनिवर सुनो भाई सारे...२ अनंतानंत हैं ये पंचरंग प्यारे, पैंतिस अक्षर से शोभित, ओ... मंत्र है निराला, इसीलिये प्यारा ॥ आचार्य जी से ॥ महामंत्र कहती इसको है सारी जनता...२ पार लगाता उसको जो इसे जपता, मंत्र है ये ऐसा जिसने, ओ... लाखों को तारा, इसीलिये प्यारा ॥ आचार्य जी से ॥ पंच परमेष्ठी के गुणों को प्रचारता...२ धर्म विशेष को ये नहीं है दुलारता, ये महामंत्र है, ओ... तारण हारा, इसीलिये प्यारा ॥ आचार्य जी से ॥ मनोरमा सती का शील था बचाया...२ महामंत्र का ये वर्णन ग्रंथों ने गाया , ऐसे महामंत्र को, ओ... वन्दन हमारा, इसीलिये प्यारा ॥ आचार्य जी से ॥
  15. परम गुरु बरसत ज्ञान झरी हरषि-हरषि बहु गरजि-गरजि के मिथ्या तपन हरी ।१। सरधा भूमि सुहावनि लागी संशय बेल हरी भविजन मन सरवर भरि उमड़े समुझि पवन सियरी ।२। स्याद्वाद नय बिजली चमके परमत शिखर परी चातक मोर साधु श्रावक के हृदय सु भक्ति भरी ।३। जप तप परमानन्द बढ्यो है, सुखमय नींव धरी `द्यानत' पावन पावस आयो, थिरता शुद्ध करी ।४।
  16. जप जप रे नवकार मंत्र तू , इस भव पर भव सुख पासी, इस भव पर भव सुख पासी ॥ अरिहंत सिद्ध आचार्य सुमरले, उपाध्याय साधु चित धर ले, जन्म मरण थारो मिट जासी, जन्म मरण थारो मिट जासी ॥ जप जप रे...॥ सीता सती ने इसको ध्याया, अग्नि का था नीर बनाया , धन्य धन्य कहे जगवासी , धन्य धन्य कहे जगवासी ॥ जप जप रे...॥ सेठ पुत्र का जहर हटा था, श्रीपाल का कुष्ठ मिटा था , टली सुदर्शन की फ़ांसी , टली सुदर्शन की फ़ांसी॥ जप जप रे...॥ महिमा इसकी कही ना जाय, पंकज जो नर इसको ध्याये , वो भवसागर तिर जासी , वो भवसागर तिर जासी ॥ जप जप रे...॥
  17. ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि हैं ॥टेक॥ आप तरैं अरु पर को तारैं, निष्पृही निर्मल हैं ।१। तिल तुष मात्र संग नहिं जिनके, ज्ञान-ध्यान गुण बल हैं ।२। शांत दिगम्बर मुद्रा जिनकी, मन्दर तुल्य अचल हैं ।३। `भागचन्द' तिनको नित चाहें, ज्यों कमलनि को अलि हैं ।४।
  18. सब जैन धर्म की जय बोलो, हम गीत उसी के गाते हैं, जो विश्वशांति का प्रेरक है, हम उसकी बात सुनाते हैं ॥ यह सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य का, पाठ हमें सिखलाता है, अज्ञेय परिग्रह त्याग हमें, मानव बनना सिखलाता है, ये पंच महाव्रत सार जगत-२, ये शास्त्र-ये शास्त्र सभी बतलाते हैं ॥ जो विश्वशांति....॥ सच्ची राह बताने को चौबीस हुये अवतार यहाँ, सबने इसकी महिमा गायी, और पार हुये संसार यहाँ, सिद्धांत अमर सुखदाई है-२, जो ध्यान-जो ध्यान धरे तिर जाते हैं ॥ जो विश्वशांति....॥ है जैन धर्म वट वृक्ष बडा, जिसकी छाया अति शीतल है, जिन वर्धमान और साधू को पा,धन्य हुआ अवनीतल है, रखने को जीवित मानवता-२ हम जैन- हम जैन ध्वजा फ़हराते हैं ॥ जो विश्वशांति....॥
  19. परम दिगम्बर यती, महागुण व्रती, करो निस्तारा नहीं तुम बिन कौन हमारा ॥टेक॥ तुम बीस आठ गुणधारी हो, जग जीवमात्र हितकारी हो बाईस परीषह जीत धरम रखवारा ।१। नहीं तुम. तुम आतमध्यानी ज्ञानी हो, शुचि स्वपर भेद विज्ञानी हो है रत्नत्रय गुणमंडित हृदय तुम्हारा ।२। नहीं तुम. तुम क्षमाशील समता सागर, हो विश्व पूज्य वर रत्नाकर है हितमित सत उपदेश तुम्हारा प्यारा ।३। नहीं तुम. तुम प्रेममूर्ति हो समदर्शी, हो भव्य जीव मन आकर्षी है निर्विकार निर्दोष स्वरूप तुम्हारा ।४। नहीं तुम. है यही अवस्था एक सार, जो पहुँचाती है मोक्ष द्वार `सौभाग्य' आपसा बाना होय हमारा ।५। नहीं तुम
  20. धनि मुनि निज आतमहित कीना भव प्रसार तप अशुचि विषय विष, जान महाव्रत लीना ॥ एकविहारी परिग्रह छारी, परीसह सहत अरीना पूरव तन तपसाधन मान न, लाज गनी परवीना ।१। शून्य सदन गिर गहन गुफामें, पदमासन आसीना परभावनतैं भिन्न आपपद, ध्यावत मोहविहीना ।२। स्वपरभेद जिनकी बुधि निजमें, पागी वाहि लगीना `दौल' तास पद वारिज रजसे,किस अघ करे न छीना ।३।
  21. मैं महापुण्य उदय से जिनधर्म पा गया ॥ चार घाति कर्म नाशे ऐसा अरहंत है, अनंत चतुष्टय धारी श्री भगवंत है, मैं अरहंत देव की शरण आ गया ॥ अष्ट कर्म नाश किये ऐसे सिद्ध देव हैं, अष्ट गुण प्रगट जिनके हुए स्वयमेव हैं, मैं ऐसे सिद्ध देव की शरण आ गया ॥ वस्तु का स्वरूप बतावे वीतराग वाणी है, तीन लोक के जीव हेतु महाकल्याणी है, मैं जिनवाणी माँ की शरण में आ गया ॥ परिग्रह रहित दिगम्बर मुनिराज हैं, ज्ञान ध्यान सिवा नहीं दूजा कोई काज है, मैं श्री मुनिराज की शरण पा गया ॥
  22. धनि मुनि जिन यह, भाव पिछाना तनव्यय वांछित प्रापति मानी, पुण्य उदय दुख जाना ॥ एकविहारी सकल ईश्वरता, त्याग महोत्सव माना । सब सुखको परिहार सार सुख, जानि रागरुष भाना ।१। चित्स्वभावको चिंत्य प्रान निज, विमल ज्ञानदृगसाना । `दौल' कौन सुख जान लह्यौ तिन, करो शांतिरसपाना ।२।
  23. ये धरम है आतम ज्ञानी का, सीमंधर महावीर स्वामी का, इस धर्म का भैया क्या कहना, ये धर्म है वीरों का गहना, जय हो जय हो जय हो... यहां समयसार का चिंतन है, यहां नियमसार का मंथन है, यहां रहते हैं ज्ञानी मस्ती में, मस्ती है स्व की अस्ति में, जय हो जय हो जय हो... अस्ति में मस्ती ज्ञानी की, यह बात है भेद विज्ञानी की, यहां झरते हैं झरने आनंद के, आनंद ही आनंद आतम है, जय हो जय हो जय हो... यहां बाहुबली से ध्यानी हुए, यहां कुंद्कुंद जैसे ज्ञानी हुए, यहां सतगुरुओं ने ये बोला, ये धर्म है कितना अनमोला, जय हो जय हो जय हो...
  24. कबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर, करि हैं भवोदधि पारा हो।। भोगउदास जोग जिन लीनों, छाँडि परिग्रहभारा हो । इन्द्रिय दमन वमन मद कीनो, विषय कषाय निवारा हो ।१। कंचन काँच बराबर जिनके, निंदक बंदक सारा हो । दुर्धर तप तपि सम्यक निज घर, मनवचतनकर धारा हो ।२। ग्रीषम गिरि हिम सरिता तीरै, पावस तरुतल ठारा हो । करुणाभीन चीन त्रसथावर, ईर्यापंथ समारा हो ।३। मार मार व्रत धार शील दृढ़, मोह महामल टारा हो । मास छमास उपास वास वन, प्रासुक करत अहारा हो ।४। आरत रौद्रलेश नहिं जिनके, धर्म शुकल चित धारा हो । ध्यानारूढ़ गूढ़ निज आतम, शुधउपयोग विचारा हो ।५। आप तरहिं औरनको तारहिं, भवजलसिंधु अपारा हो । दौलत ऐसे जैन-जतिनको, नितप्रति धोक हमारा हो ।६।
  25. बडे भाग्य से हमको मिला जिन धर्म, हमारी कहानी है, तुम्हारी कहानी है, बडी बेरहम, अनादि से भटके चले आ रहे हैं, प्रभु के वचन क्यूं नहीं भा रहे हैं, रुदन तेरा भव भव में सुने कौन जन ॥ बडे भाग्य से हमको... भगवान बनने की ताकत है मुझमें, मैं मान बैठा पुजारी हूं बस मैं, मेरे घट में घट घट का वासी चेतन ॥ बडे भाग्य से हमको... अणु अणु स्वतंत्र प्रभु ने ज्ञान है कराया, विषयों का विष पी पी उसे ना सधाया, क्षण भर को भी तो चेतन हो जा मगन ॥ बडे भाग्य से..
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