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JainSamaj.World
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Lyric: भक्तामर स्तोत्र श्लोक 15
चित्रं-किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्ग-नाभिर्-
नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् ।

कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन,
किं मन्दराद्रिशिखरं चलितं कदाचित्॥ 15॥
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