माँ जिनवाणी ममता न्यारी, प्यारी प्यारी गोद हैं थारी।
आँचल में मुझको तू रख ले, तू तीर्थंकर राज दुलारी ॥
वीर प्रभो पर्वत निर्झरनी, गौतम के मुख कंठ झरी हो ।
अनेकांत और स्यादवाद की, अमृत मय माता तुम्ही हो ।
भव्य जानो की कर्ण पिपिसा, तुमसे शमन हुई जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
सप्त्भंगमय लहरों से माँ, तू ही सप्त तत्व प्रगटाये ।
द्रव्य गुणों अरु पर्यायों का, ज्ञान आत्मा में करवाये ।
हेय ज्ञेय अरु उपादेय का, बहन हुआ तुमसे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
तुमको जानू तुमको समझू, तुमसे आतम बोध में पाऊ ।
तेरे आँचल में छिप छिप कर, दुग्धपान अनुयोग का पाऊ ।
माँ बालक की रक्षा करना, मिथ्यातम को हर जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
धीर बनू में वीर बनू माँ, कर्मबली को दल दल जाऊ ।
ध्यान करू स्वाध्याय करू बस, तेरे गुण को निशदिन गाऊ ।
अष्ट करम की हान करे यह, अष्टम क्षिति को दे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०
ऋषि यति मुनि सब ध्यान धरे माँ, शरण प्राप्त कर कर्म हरे ।
सदा मात की गोद रहू में, ऐसा सिर आशीष फले ।
नमन करे स्यादवाद मति नित, आत्म सुधारस दे जिनवाणी ॥
आँचल में मुझको तू रख ले ०
माँ जिनवाणी ०