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चौबीस तीर्थंकर वंदन


admin

बे गौरा बे सावंला, बे हरिया बे लाल ।

सौलहकाय कंचन सम, ते वंदन हूँ त्रिकाल ॥

 

आदि प्रभु की भक्ति से, मनुज बने भगवान ।

आत्मिक सुख उसको मिले, वंदन बारम्बार ॥

 

अन्तरंग बहिरंग को त्यागकर, किये शुद्ध आचार ।

अजितनाथ भगवान् को, वंदन बारम्बार ॥

 

जिन संभव के भक्तजन, पावें मोक्ष का द्वार ।

शीघ्र हरो मम दुःख प्रभु, वंदन बारम्बार ॥

 

आनंदित प्रभु अभिनन्दन, चतुर्थ तीर्थ करतार ।

किया नाम सार्थक सदा, वंदन बारम्बार ॥

 

विश्वतत्व के अर्थ सहित, किया कर्म संहार ।

सुमति, सुमति के दायक हो, वंदन बारम्बार ॥

 

मोहकर्म को नाश कर, गुण अनंत के धार ।

तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु, वंदन बारम्बार ॥

 

काम क्रोध का नाशकर, पायो केवल ज्ञान ।

श्री सुपार्श्व जिनराज को, वंदन बारम्बार ॥

 

इन्द्रो द्वारा सेवित हो, निर्मल कीर्ति धार ।

रक्षक अष्टम चंद्रप्रभु, वंदन बारम्बार ॥

 

पुष्पदंत जिनराज के, तन में दिव्य प्रकाश ।

तीर्थ नवम के श्रीपति, वंदन बारम्बार ॥

 

जो जन की पीड़ा हरे, करे कुपथ का नाश ।

शीतल शीतलता करे, वंदन बारम्बार ॥

 

श्री श्रेयांस जिनराजवरा, देवे मोक्ष विधान ।

भव्य जीव तव चरण रहे, वंदन बारम्बार ॥

 

जो कुमार्ग का नाशकर, उज्जवल तीर्थ महान ।

वासुपूज्य जिनराज को, वंदन बारम्बार ॥

 

विमल विमलमति दायक हो, निर्मल कर संसार ।

त्रयोदश तीर्थ के हो करता, वंदन बारम्बार ॥

 

मिथ्यातम का नाश किया, जीत लिया संसार ।

अनंत प्रभु सम सूर्य श्री, वंदन बारम्बार ॥

 

धर्ममार्ग को छोड़कर, जावें नर्क के द्वार ।

धर्मनाथ उद्धार करें, वंदन बारम्बार ॥

 

इतिभिति को नाश करे, शांतिनाथ भगवान् ।

तिन पदों के धारी श्री, वंदन बारम्बार ॥

 

कुन्थु-कुन्थु के पालक हो, ख्याति अति विशाल ।

चक्रवर्ती पद मिला तुम्हे, वंदन बारम्बार ॥

 

पापी शत्रु को नाश कर, कामदेव पद धार ।

अरनाथ (अरहनाथ) जिनेन्द्र को, वंदन बारम्बार ॥

 

मोह मल्ल को नाश कर, काटा भाव का पाश ।

हे प्रसिद्ध मल्लि प्रभु, वंदन बारम्बार ॥

 

भव सागर से पार करे, मुनिसुव्रत महाराज ।

सुव्रत व्रत के दायक हो, वंदन बारम्बार ॥

 

कर्म रूपी शत्रु सभी, नम्र हुए तव द्वार ।

नमिनाथ के चरण में, वंदन बारम्बार ॥

 

कोटि सूर्य तव तेज हैं, यादव कुल सरताज ।

चक्रोत्तम श्री नेमीप्रभु, वंदन बारम्बार ॥

 

कमठनाद को दूर किया, हैं धरणेन्द्र महान ।

श्री पारस उपसर्गपति, वंदन बारम्बार ॥

 

वर्तमान के अन्तिम शासक, वर्द्धमान जिनराज ।

नित अर्चन तेरी करू, वंदन बारम्बार ॥

 

"रयणसागर" विनवे प्रभु, चौबीसों जिनराज ।

भवसागर से पार करो, वंदन बारम्बार ॥



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