रचयिता - सारस्वत कवि आचार्य श्री विभावसागरजी
पुनः दर्शन - पुनः दर्शन - पुनः दर्शन मिले स्वामी।
यही है भावना स्वामी- यही है प्रार्थना स्वामी।।
तुम्हारे दर्श बिन स्वामी, कहाँ हम चैन पायेंगे।
प्रभुवर! याद आयेंगे - नयन आंसू बहायेंगे।।
निकाली नीर से मछली, तड़पती चेतना स्वामी।
पुनः दर्शन - पुनः दर्शन -पुनः दर्शन मिले स्वामी।।
बिना स्वाति की बूँदो के, पपीहा प्राण ताज देगा।
कृपा के मेघ बरसा दो, जिनेश्वर नाम रट लेगा।।
निहारे चातका तुमको, यही रटना रटे लेगा।
पुनः दर्शन - पुनः दर्शन - पुनः दर्शन मिले स्वामी।।
विरह की वेदना स्वामी- तुम्हें कैसे सुनायें हम।
चाँद बिन ज्यों चकोरे सा- हमारा आज ये तन-मन।।
शिशु माता से बिछड़ा ज्यों, रुदन करता रहे स्वामी।
पुनः दर्शन - पुनः दर्शन - पुनः दर्शन मिले स्वामी।।
नहीं सुर सम्पदा चाहूँ - नहीं मैं राजपद चाहूँ।
यही है कामना मेरी, प्रभु तुमसा ही बन जाऊँ।।
मिले निर्वाण न जौलों, रहो नयनों के पथगामी।
पुनः दर्शन पुनः दर्शन पुनः दर्शन मिले स्वामी।।
पुनः दर्शन - पुनः दर्शन - पुनः दर्शन मिले स्वामी।
यही है भावना स्वामी- यही है प्रार्थना स्वामी।।