वीतरागी देव तुम्हारे जैसा
तर्ज: कस्मे वादे प्यार...
वीतरागी देव तुम्हारे जैसा जग में देव कहां ।
मार्ग बताया है जो जग को ,कह न सके कोई और यहां। वीतरागी देव...
हैं सब द्रव्य स्वतंत्र जगत में,कोई न किसी का कार्य करे
अपने अपने स्वचतुष्टय में ,सभी द्रव्य विश्राम करे ।
अपनी अपनी सहज गुफ़ा में, रहते पर से मौन यहां॥
भाव शुभाशुभ का भी कर्ता , बनता जो दीवाना है ।
ज्ञायक भाव शुभाशुभ से भी, भिन्न न उसने जाना है ।
अपने से अनजान तुझे, भगवान कहें जिनदेव यहां॥
पुण्य भाव भी पर आश्रित है, उसमें धर्म नही होता ।
ज्ञान भाव में निज परिणति से बंधन कर्म नहीं होता ।
निज आश्रय से ही मुक्ति है, कहते हैं जिनदेव यहां ॥