पद्मसद्म पद्मापद पद्मा
पद्मसद्म पद्मापद पद्मा, मुक्तिसद्म दरशावन है ।
कलि-मल-गंजन मन अलि रंजन,
मुनिजन शरन सुपावन है ।।
जाकी जन्मपुरी कुशंबिका, सुर नर-नाग रमावन है,
जास जन्मदिनपूरब षटनव, मास रतन बरसावन है ॥
जा तपथान पपोसागिरि सो, आत्म-ज्ञान थिर थावन है,
केवलजोत उदोत भई सो, मिथ्यातिमिर-नशावन है ॥
जाको शासन पंचाननसो, कुमति मतंग नशावन है,
राग बिना सेवक जन तारक,पै तसु रुषतुष भाव न है ॥
जाकी महिमा के वरननसों, सुरगुरु बुद्धि थकावन है,
'दौल' अल्पमति को कहबो जिमि, शशक गिरिंद धकावन है ॥