मन भाये चित हुलसाये
तर्ज : मन डोले...
मन भाये चित हुलसाये मेरे छाया हर्ष अपार रे -
लख वीर तुम्हारी मूरतियां ॥
देख लिया मैंने जग सारा तुमसा नजर ना आये,
वीतराग मुद्रा तुम धारे बैठे ध्यान लगाय-
प्रभू तुम बैठे ध्यान लगाय,
सुरपति आवे, मंगल गावे, नाचे दे दे ताल रे,
लख वीर तुम्हारी मूरतियां ॥
अष्ट कर्म को जीत प्रभू तुम पाया केवलज्ञान,
दे उपदेश बहुत जन तारे कहां तक करूं बखान-
प्रभू मैं कहां तक करूं बखान,
भय जाये,मेरे रोग ना आये,मेरे सुधरे काम हजार रे,
लख वीर तुम्हारी मूरतियां ॥
राग द्वेष में लिप्त हुआ मैं सत को नहीं पिछाना,
पर वस्तु को अपना समझा, झूंठे मत को माना-
प्रभू जी उलटे मत को माना,
अब तुम पाये, भरम नशाये, ’पंकज’ होगा पार रे,
लख वीर तुम्हारी मूरतियां ॥
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