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जगदानंदन जिन अभिनंदन


admin

जगदानंदन जिन अभिनंदन

जगदानंदन जिन अभिनंदनपदअरविंद नमूं मैं तेरे ।।

 

अरुणवरन अघताप हरन वर,

वितरन कुशल सु शरन बडेरे ।

पद्मासदन मदन-मद-भंजन,

रंजन मुनिजन मन अलिकेरे ।।

 

ये गुन सुन मैं शरनै आयो,

मोहि मोह दुख देत घनेरे ।

ता मदभानन स्वपर पिछानन,

तुम विन आन न कारन हेरे।।

 

तुम पदशरण गही जिनतैं ते,

जामन-जरा-मरन-निरवेरे ।

तुमतैं विमुख भये शठ तिनको,

चहुँगति विपत महाविधि पेरे ॥

 

तुमरे अमित सुगुन ज्ञानादिक,

सतत मुदित गनराज उगेरे,

लहत न मित मैं पतित कहों किम,

किन शशकन गिरिराज उखेरे ॥

 

तुम बिन राग दोष दर्पन ज्यों,

निज निज भाव फलैं तिनकेरे ।

तुम हो सहज जगत उपकारी,

शिवपथ-सारथ वाह भलेरे ॥

 

तुम दयाल बेहाल बहुत हम,

काल-कराल व्याल-चिर-घेरे,

भाल नाय गुणमाल जपों तुम,

हे दयालदुखटाल सबेरे ॥

 

तुम बहु पतित सुपावन कीने,

क्यों न हरो भव संकट मेरे,

भ्रम-उपाधि हर शम समाधिकर,,

`दौलभये तुमरे अब चेरे ॥

 



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