अरिहंत सिद्ध आचार्य को करुं प्रणाम ।
उपाध्याय सर्वसाधू करते स्वपर कल्याण ।।
जिनधर्म, जिनागम, जिनमंदिर पवित्र धाम ।
वीतराग की प्रतिमा को कोटि कोटि प्रणाम ।।
जय मुनिसुव्रत दया के सागर । नाम प्रभु का लोक उजागर ।।
सुमित्रा राजा के तुम नन्दा । मां शामा की आंखो के चन्दा ।।
श्यामवर्ण मूरत प्रभू की प्यारी । गुणगान करें निशदिन नर नारी ।।
मुनिसुव्रत जिन हो अन्तरयामी । श्रद्धा भाव सहित तुम्हें प्रणामी ।।
भक्ति आपकी जो निशदिन करता । पाप ताप भय संकट हरता ।।
प्रभू; संकटमोचन नाम तुम्हारा । दीन दुखी जीवों का सहारा ।।
कोई दरिद्री या तन का रोगी । प्रभू दर्शन से होते हैं निरोगी ।।
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी । भव भव की बाधा हरो हमारी ।।
यह संसार महा दुख दाई । सुख नहीं यहां दुख की खाई ।।
मोह जाल में फंसा है बंदा । काटो प्रभु भव भव का फंदा ।।
रोग शोक भय व्याधि मिटावो । भव सागर से पार लगावो ।।
घिरा कर्म से चौरासी भटका । मोह माया बन्धन में अटका ।।
संयोग वियोग भव भव का नाता । राग द्वेष जग में भटकाता ।।
हित मित प्रित प्रभू की वाणी । स्वपर कल्याण करें मुनि ध्यानी ।।
भव सागर बीच नाव हमारी । प्रभु पार करो यह विरद तिहारी ।।
मन विवेक मेरा अब जागा । प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा ।।
नाम आपका जपे जो भाई । लोका लोक सुख सम्पदा पाई ।।
कृपा दृष्टी जब आपकी होवे । धन आरोग्य सुख समृधि पावे ।।
प्रभु चरणन में जो जो आवे । श्रद्धा भक्ति फल वांच्छित पावे ।।
प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा । संकट मोचन प्रभु नाम तुम्हारा ।।
सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी । मन वच तन वंदना हमारी ।।
सम्मेद शिखर से मोक्ष सिधारे । उद्धार करो मैं शरण तिहांरे ।।
महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ । सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र ।।
मनोज्ञ मन्दिर बना है भारी । वीतराग की प्रतिमा सुखकारी ।।
चतुर्थ कालीन मूर्ति है निराली । मुनिसुव्रत प्रभू की छवि है प्यारी ।।
मानस्तंभ उत्तग की शोभा न्यारी । देखत गलत मान कषाय भारी ।।
मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता । दुख संकट हरे देवे सुख साता ।।
शनि अमावस की महिमा भारी । दूर दूर से आते नर नारी ।।
मुनिसुव्रत दर्शन महा हितकारी । मन वच तन वंदना हमारी ।।
दोहाः
सम्यक् श्रद्धा से चालीसा, चालीस दिन पढिये नर नार ।
मुक्ति पथ के राही बन, भक्ति से होवे भव पार ।।