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समाधी मरण पथ


admin

गौतम स्वामी वन्दों नामी मरण समाधि भला है।

मैं कब पाऊँ निशदिन ध्याऊँ गाऊँ वचन कला है॥

देव-धर्म-गुरु प्रीति महादृढ़ सप्त व्यसन नहिं जाने।

त्यागे बाइस अभक्ष्य संयमी बारह व्रत नित ठाने॥१॥

 

चक्की उखरी चूलि बुहारी पानी त्रस न विराधे।

बनिज करै परद्रव्य हरे नहिं छहों करम इमि साधे॥

पूजा शा गुरुन की सेवा संयम तप चहु दानी।

पर-उपकारी अल्प-अहारी सामायिक-विधि ज्ञानी॥२॥

 

जाप जपै तिहूँ योग धरै दृढ़ तन की ममता टारै।

अन्त समय वैराग्य सम्हारै ध्यान समाधि विचारै॥

आग लगै अरु नाव डुबै जब धर्म विघन है आवे।

चार प्रकार अहार त्याग के मंत्र सु मन में ध्यावै॥३॥

 

रोग असाध्य जरा बहु देखै कारण और निहारे।

बात बड़ी है जो बनि आवै भार भवन को डारै॥

जो न बनै तो घर में रहकरि सब सों होय निराला।

मात-पिता सुत-तिय को सोंपे निजपरिग्रह अहि काला ४

 

कुछ चैत्यालय कुछ श्रावकजन कुछ दुखिया धन देई।

क्षमा क्षमा सबही सों कहिके मन की शल्य हनेई॥

शत्रुन सों मिल निज कर जोरै मैं बहु कीन बुराई।

तुमसे प्रीतम को दुख दीने ते सब बगसो भाई॥५॥

 

धन धरती जो मुख सों मांगै सबको दे सन्तोषै।

छहों काय के प्राणी ऊपर करुणा भाव विशेषै॥

ऊँच नीच घर बैठ जगह इक कुछ भोजन कुछ पय ले।

दूधाधारी क्रम क्रम तजिके छाछ अहार पहेले॥६॥

 

छाछ त्यागि के पानी राखे पानी तजि संथारा।

भूमि माँहिं फिर आसन माँडै साधर्मी ढिंग प्यारा॥

जब तुम जानो यह न जपै है तब जिनवाणी पढिय़े।

यों कहि मौन लेय संन्यासी पंच परमपद गहिये॥७॥

 

चौ आराधन मन में ध्यावै बारह भावन भावै।

दश लक्षणमय धर्म विचारै रत्नत्रय मन ल्यावै॥

पैंतीस सोलह षट् पन चार अरु दुई इक वरन विचारै।

काया तेरी दुख की ढेरी ज्ञानमयी तू सारै॥८॥

 

अजर अमर निज गुण सों पूरै परमानन्द सुभावै।

आनन्द कन्द चिदानन्द साहब तीन जगतपति ध्यावै॥

क्षुधा तृषादिक होय परीषह सहै भाव सम राखै।

अतीचार पाँचों सब त्यागै ज्ञान सुधारस चाखै॥९॥

 

हाड़ मांस सब सूखि जाय जब धरम लीन तन त्यागै।

अद्भुत पुण्य उपाय सुरग में सेज उठै ज्यों जागै॥

तहँ ते आवे शिवपद पावै विलसै सुक्ख अनन्तो।

द्यानत यह गति होय हमारी जैनधरम जयवन्तो॥१0॥



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