श्रावक के ६ आवश्यक कर्म
1 - देव पूजा
अपने आदर्श देवाधिदेव श्री 1008 जिनेंद्र भगवान की अष्ट-द्रव्यों से पूजन करना, देव-पूजा है. यदि किसी कारणवश, अष्ट-द्रव्य से पूजन ना कर सकें तो स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर मंदिर जी मे जाकर बहुत विनय और हर्ष के साथ भगवान का दर्शन करें. प्रतिमा-दर्शन, स्तवन, नमस्कार, प्रदिक्षणा आदि भी पूजा का ही एक छोटा-क्रम-श्रेणी पूजन है.
2 - गुरु-उपासना
समस्त परिग्रह-रहित, सच्चे दिगम्बर मुनि, ऐलक,च्छुल्लक, आर्यिका,च्छुल्लिका आदिका विनय के साथ उपदेश सुनना, उनकी सेवा करना, उनकी आवश्यकता के अनुसार कमंडलू, पिच्छी देना, विधि-पूर्वक आहार देना, सो गुरु-उपासना है. यदि, पास मे कोई गुरु ना हो, तो अकेले मे बैठकर उनका स्मरण करके उनकी स्तुति पढ़नी चाहिए.
3 - स्वाध्याय
हर दिन जिन-शास्त्रों को पढ़ना, पढ़ाना, सुनना, सुनाना, पूछना, पाठ करना, चर्चा करना सो स्वाध्याय है.
4 - संयम
बड़ी सावधानी से अपनी इंद्रियों को वश मे करना, संयम है. हमे प्रतिदिन मंदिर जी मे नियम लेने चाहियें की आज मैं इतनी बार भोजन करूँगा, इतने पदार्थ ग्रहण करूँगा, खेल नही खेलूँगा, मूवी नही देखूँगा. संयम ही तप का पहला कदम है.
5 - तप
इच्छाओं को रोकना ही तप है. तप के 2 भेद से 12 प्रकार हैं. 6 बहिरंग तप - अनशन, उनोदर, व्रती-परिसंख्यान, रस-परित्याग, विविक्त-शयनसान और काए-क्लेश. 6 अंतरंग तप - प्रयशचित, विनय, वैयावरती, स्वाध्याए, व्युत्सर्ग और ध्यान. तप से निर्जरा होती है.
6 - दान
हमे प्रतिदिन, आहार, औषधि, अभय और ज्ञान-दान अपनी यथा-शक्ति अनुसार धर्म-पात्रों को भक्ति भाव से देना चाहिए. अपनी कमाई मे से कुछ हिस्सा हमे ज़रूर दान करना चाहिए. जो पाप हम परिग्रह के संचय मे तथा आरंभ कार्यों मे लिप्त होने क कारण इक्कट्ठे करते हैं, दान उस पाप के भार को हल्का करता है.
ये 6 आवश्यक कर्म हमे नित्य करने चाहिए.
Recommended Comments
There are no comments to display.
Join the conversation
You can post now and register later. If you have an account, sign in now to post with your account.