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भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन


Saurabh Jain

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विषय : भगवान महावीर का जीवन संदेश 

नियम / दिशा निर्देश 

  • भगवान महावीर के जीवन संदेश पर 
    • लेख ( पंक्तियाँ ) लिख  सकते हैं| चित्र भी साथ मे संलग्न कर सकते हैं (जैसे परीक्षा मे उत्तर देते हुए Diagram भी बनाते हैं)
    • भजन / नृत्य / नाटिका/  कविता / चित्रकला  के माध्यम से भी प्रस्तुति दे सकते हैं |
  • वीडिओ को Youtube पर अपलोड कर उसका लिंक पोस्ट कर सकते हैं |
  • सामूहिक  प्रस्तुतीकरण का हो   प्रयास, की कोई भी विषय अछूता ना रहे|
  • आपकी रचनात्मकता शैली इस प्रयोग को  सफल बनाएगी
  • आप अंग्रेजी, मराठी अन्य भाषा में भी लिख सकते हैं 
  • आप आपनी पोस्ट  को एडिट पे  क्लिक कर सुधार कर सकते हैं
  • आपकी प्रस्तुति आपकी अपनी मौलिक होनी चाहिए, पुराना वीडिओ अपलोड न करे 

 

अंतिम तिथी 14 अप्रैल 2022 

  • प्रयास हो की हर जैन परिवार इस  विशेष अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन में अपनी उपसतिथि दर्ज कराए 
  • सभी प्रस्तुति आपको नीचे कमेन्ट में पोस्ट करनी हैं 
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वर्तमान में विश्व अनेक वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है और हम उन समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे हैं, तो तीर्थंकर महावीर के दर्शन और शिक्षाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं । समय है समकालीन समस्याओं के समाधान खोजने का, जैन दर्शन को अपनाने का। जैन धर्म के तीन बुनियादी सिद्धांतों अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह, के माध्यम से मानव जाति की इन समस्याओं को हल संभव है। यदि इनका पालन किया जाये तो निश्चित रूप से विश्व में शांति और सद्भाव स्थापित हो सकता है।

रतन लाल जैन, जोधपुर (राजस्थान)

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सादर जय जिनेंद्र

संयम सौरभ साधना जिनको करे प्रणाम त्याग तपस्या तीर्थ का महावीर स्वामी है नाम वीतराग की प्रतिमा को कोटि-कोटि प्रणाम ज्ञान ध्यान जिनागम का वीर प्रभु है धाम 

वर्तमान में वर्धमान की आवश्यकता है यह जैन भजन की पंक्ति आज हर जैनी के हृदय को झकझोर रही है विश्व जहां विनाश की कगार पर है हम सब हिंसा अत्याचार आतंकवाद माया चारी और अब कोरोना जैसी भयावह महामारी से आतंकित है आज आवश्यकता है महावीर भगवान के सिद्धांतों की प्रभावना की आचरण में लाने की और जियो और जीने दो वीर प्रभु के संदेश को चरित्र में अंगीकार करने की शाकाहार का महत्व बताते हुए शुद्ध सात्विक जीवन का पालन करना है महावीर भगवान के संदेशों को मैसेज और स्टेटस तक सीमित नहीं रखना है अपने आचरण में लाना है स्वयं प्रेरित होते हुए लोगों के लिए प्रेरक बनना है महावीर के सिद्धांतों को अपनाएंगे पशु से परमात्मा बन जाएंगे

 

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आज वर्तमान में सभी लोग किसी ना किसी बिमारी में फसे हुए है सभी लोग बिमारियों से परेशान हैं, मोटापा तो आम समस्या बन गई  है क्युंकि खान पान बहोत ही बर्बाद हो चुका है, बाहर के खाने का चलन बहोत ज्यादा बढ गया है भगवान महावीर तो हजारो साल पहले ही पंचमकल में होने वाले इस हाल को जान् लिया था इसलिये पहले ही उन्होने अपने उपदेशों में सात्विक भोजन की बात कह दे थी, अहिंसा का मार्ग बता दिया था इत्यादि क्यूंकि उन्के बताये हुए मार्ग पर चलकर ही कल्यान सम्भव है अन्यथा नही है, जैन होकर भी आज महावीर के उपदेशों को नही समझेंगे तो कोई बचाने  वाला नही अभी भी वक़्त है जागने का

भगवान महावीर के सन्देशो को दुनिया में फैलान है अपना और पर का कल्याण करवाना है जै जिनेन्द्र 

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वर्तमान शासन नायक ने  हमें सिखाया ,

मन वचन काय से जीव दया को निभाना !

अहिंसा का पालन कर अहिंसाणु व्रत अपनाना ,

जीवन में जियो और जीने दो का सन्देश पहुँचाना !

भगवान महावीर और गुरुवर की वाणी को जन जन तक पहुँचाना ,

अहिंसा परमो धर्मा हर हाल में अपनाना !!

 

 

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महावीर जन्म कल्याणक का पर्व महावीर स्वामी के जन्म दिन पर मनाया जाता है। इस वर्ष महावीर जन्म कल्याणक 14 अप्रैल (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी) को मनाया जा रहा है। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर है। उनका पूरा जीवन ही उनका संदेश माना जाता है। यह एक पर्व या उत्सव ही नहीं, बल्कि सत्य, सादगी, अहिंसा और पवित्रता का प्रतीक है।  महावीर भगवान ने लोगों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए निम्नलिखित 5 सिद्धांत बताएं हैं।

  • 1)अहिंसा: 
  • 2)सत्य: 
  • 3)अस्तेय
  • 4)ब्रह्मचर्य
  • 5)अपरिग्रह

भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक महत्व दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।

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मी अहिंसा बोलते 
सर्वत्र असलेले हिंसेचे  वातावरण आणि वाढत चाललेली माणसाचे दुष्प्रवृत्ती हे पाहून भगवान  महावीरांच्या अहिंसेचे मन आक्रंदित झाले . अहिंसेने तिची व्यथा आपल्या समोर  मांडली आहे.
मी अहिंसा बोलते
अरे मानव, मी अहिंसा बोलते. शांती कुठे गेली रे?सतत तुला तणावग्रस्त बघतेस.तुझ्यापासून शांती ही लांब जात आहे.  एवढ्यात मी  सतत बघत आहे की, टीव्ही सुरू करा ,पेपर वाचायला घ्या सर्वत्र अशांतीच्या बातम्या. टीव्ही सुरू करताच बॉम्ब गोळ्याचे आवाज, सर्वत्र धूर, आगीचे लोळ. इथे हल्ला झाला तिथे हल्ला झाला. त्यामध्ये एवढे लोक मेले असे दृश्य सर्वत्र पहायला मिळते.अरे मानव, शांती कुठे हरविली रे? काय तो म्हणे पुतीन, मिसाइल वगैरे टाकून हजारों लोकांचे प्राण घेत आहे आणि आता तर न्युक्लिअर बाॅम्बचे बटण दाबायच्या गोष्टी.मानवी वृत्ती आहे की रा‌क्षसीवृत्ती.दया,करुणा,क्षमा सर्व  गेल्या कुठे?
    अरे मानवा,मला पूर्णपणे विसरलास वाटतो तू. तुझ्या हृदयातील माझी जागा क्रोध,मोह, ईष्या, लालसा अशा हिंसक प्रवृत्तीने घेतली असे दिसते.कसा तू इतका दुर्विचारी झालास ? तुझ्या या हिंसक दुष्कर्माची फळे तुझी तुलाच चाखावी लागणार आहे बरं.माझ्या मनाची तळमळ आता मला स्वस्थ बसू देईना .म्हणून मी भगवान महावीर जयंतीच्या निमित्ताने तुला जागे करण्याचा प्रयत्न करीत आहे.तुझ्यातील अहिंसात्मक प्रवृत्ती जागी होऊन सर्वत्र शांतीचा सुगंध दरवळू दे.तशी विवेकी बुद्धी तुला लाभो हीच वीरचरणी प्रार्थना.
 युक्रेन मध्ये   युद्ध सुरू आहे  म्हणे . त्यात हजारो लोक मारले गेले ,हजारो लोक बेघर झाले  असे समजले.‌पण पशुपक्षी, लहान जीवजंतू या कितींचा विध्वंस झाला असेल याची काही कल्पना केलीस तू?तू फक्त तुझाच विचार करतोस.
 माझ्याकडे तू  खूप सूक्ष्मपणे पाहायला  पाहिजे.तुझी छोटी छोटी कृत्ये  - जसे मुंग्या लागू नये म्हणून लक्ष्मणरेषा ओढतो, डासांपासून वाचण्यासाठी आॕल आऊट लावतो , पाण्याची किती उधळपट्टी करतोस ,शेतात  किटकनाशकांचा अंदाधुंद प्रयोग  करतो.तेव्हा मला किती वेदना होतात बरं.आचार्य शांतिसागर महाराजांच्या परंपरेतील तुम्ही.जिओ और जिने दो' ची संस्कृती तुमची.या संस्कृती ची पाळेमुळे माझ्यातच गुंतली आहे.पण आज कुठे गेल्या रे तुझ्या संवेदना? , मातापित्यांना वृद्धाश्रमाची वाट दाखविलेली बघून मन दुखते ,वृक्षतोड करतांना तुझी कुऱ्हाड माझ्या जवळ येताच छातीत  धस्स होते बघ.तुझ्यातील मातृत्व जेव्हा भ्रूणहत्या करायला तयार होते तेव्हा माझ्या हृदयाचे  ठोके वाढायला लागतात. तुला कशा रे माझ्या वेदना कळणार? कारण तू खूप निष्ठूर होत चाललास. त्याला कारणही आहेत म्हणा .तू आज खूप मांसाहारी बनलास.जिभेचे चोचले पुरविण्यासाठी निष्पाप जीवांची हत्या करू लागलास,तुझे सौंदर्य खुलविण्यासाठी अनेक प्राण्यांचे रक्त आणि चमडीचा वापर करू लागला.गाईला देव मानणारा तू पैशाच्या मोहापायी तिला कसायाला विकू लागला.दया करणारा तू आज कसा एवढा कठोर झालास.रात्रीभोजन त्याग, पाणी गाळून पिणे ही जैनत्वाची लक्षणें तर विसरत चालला.
       तू तूझी खूप प्रगती करीत आहे म्हणतोस हे बरोबर आहे .पण तू हे सर्व करताना मला बाजूला सारले .तेच तुला घातक ठरणार आहे.हवेत, पाण्यात सर्वत्र सूक्ष्म जीव आहे.आज मोठमोठे कारखाने सुरू करून त्यांतील विषारी वायू, द्रव्ये, पाण्यात, हवेत सोडले.ध्वनिप्रदूषणचा कधी विचार केलास का? मस्त डीजे लावून आनंदात नाचतोस.युध्दाच्या बातम्या ऐकतानाही मन द्रवीभूत होत नाही का? एक अणुबॉम्ब टाकल्याने त्यांचे होणारे दूरगामी परिणाम दिसत असूनही तू डोळेझाक करीत आहे.अरे, कुठे भोगशील या पापाची फळ? म्हणून वेळीच तुला जागे करायला आले मी.त्यासाठी तुला फक्त एवढेच करावे लागेल ते म्हणजे तुझ्या विवेकबुद्धीचा योग्य वापर.परमाणुबाॅम्ब बनविणाऱ्या ने म्हटलेच आहे की याचा वापर कशासाठी करायचा हे   उपयोग करणाऱ्याच्या विवेकबुद्धी वर अवलंबून राहील.कारण म्हणतात नां की,सर्व भावनांचा खेळ. भावनाच भववर्धिनी आणि भावनाच भवनाशिनी.
       तुझी प्रगती व्हावी , शांती मिळावी हीच माझीही इच्छा आहे.पण प्रत्येक क्रिया करताना यत्नाचारपूर्वक (विवेकपूर्वक) कर हिच माझी प्रार्थना.तुला पुढची शिदोरी चांगली न्यायची असेल तर नक्कीच माझा विचार करावा लागेल.तुझ्यातील माझ्या बद्दलचे प्रेम जेंव्हा जागृत होईल तेव्हा तूच एकदिवस देवतुल्य बनशील.मग  करशील माझ्याशी दोस्ती.

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विचार−जगत् का अनेकान्तदर्शन ही नैतिक जगत् में आकर अहिंसा के व्यापक सिद्धान्त का रूप धारण कर लेता है। इसीलिए जहां अन्य दर्शनों में परमतखण्डन पर बड़ा बल दिया गया है, वहां जैनदर्शन का मुख्य ध्येय अनेकान्त−सिद्धान्त के आधार पर वस्तुस्थिति मूलक विभिन्न मतों का समन्वय रहा है। वर्तमान जगत की विचारधारा की दृष्टि से भी जैनदर्शन के व्यापक अहिंसामूलक सिद्धान्त का अत्यन्त महत्व है। आजकल के जगत की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि अपने−अपने परम्परागत वैशिष्टय को रखते हुए भी विभिन्न मनुष्य जातियां एक−दूसरे के समीप आयें और उनमें एक व्यापक मानवता की दृष्टि का विकास हो। अनेकान्तसिद्धान्तमूलक समन्वय की दृष्टि से ही यह हो सकता है।

 

इसमें सन्देह नहीं कि न केवल भारतीय दर्शन के विकास का अनुगमन करने के लिए, अपितु भारतीय संस्कृति के उत्तरोत्तर विकास को समझने के लिए भी जैनदर्शन का अत्यन्त महत्व है। भारतीय विचारधारा में अहिंसावाद के रूप में अथवा परमतसहिष्णुता के रूप में अथवा समन्वयात्मक भावना के रूप में जैनदर्शन और जैन विचारधारा की जो देन है उसको समझे बिना वास्तव में भारतीय संस्कृति के विकास को नहीं समझा जा सकता।

 

प्राचीन समय से ही भारत देश अपनी अर्वाचीन संस्कृति के लिए पहचाना जाता है। विभिन्न संस्कृति और धर्म वाले देश में जैन धर्म कितना प्राचीन है, यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर को जैन धर्म का संस्थापक कहा जाता है जबकि इनसे पूर्व भी इस धर्म के 23 तीर्थंकर हुए और महावीर स्वामी अन्तिम व 24वें तीर्थंकर थे। महावीर स्वामी ने कभी नहीं कहा कि वे जैन धर्म के संस्थापक हैं, परन्तु जैन अनुयायियों ने उनसे ही जैन धर्म का उदय माना। यह सत्य है कि जहां इस धर्म के पहले 23 तीर्थंकरों ने उन्हीं शिक्षाओं व सि़द्धांतों का प्रचार−प्रसार किया जिन्हें महावीर स्वामी ने आलोकित और संस्थापित किया।

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महावीर स्वामी (तीर्थंकर वर्द्धमान) के उपदेश में प्राणी मात्र के उदय की बात कही है। बिना भेदभाव सबके कल्याण की भावना है। आज हमें राग द्वेष से बचकर समभाव धारण करने की आवश्यकता है। इन्हीं बातों का अर्थ है "वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है"।

सुशीला गंगवाल

जोधपुर (राजस्थान)

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नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु भगवन्त

भगवान महावीर स्वामी ने हमे अपरिग्रह का सिद्धान्त देकर हम सभी जीवो पर अनंत उपकार किया है। जैसे एक छोटा सा पैंसिल का उदाहरण ही है,कि उसे बनाने के लिए एक पेड़ कटता है जो एक इंद्री जीव है साथ ही उस पेड़ पर कितने पशु पक्षी आश्रित होते है अपने निवास के लिए अपने खाने के लिए लेकिन एक पेड़ काटकर हमने कितने सारे जीवो को दुख दिया फिर उस पैंसिल को बनाने के लिए लैड(lead) की जरूरत होती है जिसके लिए खुदाई होती है जिससे फिर से अनेक जीवो की हिंसा होती है उसके बाद उसे रंगने के लिए वो फैक्ट्री मे जाती है और फिर अंत मे ट्रासपोर्ट जिससे कितना प्रदूषण होता है और हिंसा भी। तो इससे पता चलता है कि सिर्फ एक छोटी सी वस्तु का निर्माण करने से कितनी हिंसा और पर्यावरण का सत्यानाश होता है। इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने अपरिग्रह का सिद्धान्त दिया और सिर्फ उतना ही संग्रह करने को कहा जितने की जरूरत है अनावश्यक चीजो को एकत्रित करने को मना किया।

every act of consumption has a suffering footprint.

Consumption is not the way of happiness

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🙏🙏🙏🙏🙏🙏
भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय आनलाइन सम्मेलन
विषयःमहावीर का जीवन संदेश*
तुम खुद जियो जीने दो,
जमाने में सभी को  ।
इससे बढ़कर धर्म नहीं
माना है किसी को ।।
सिसकियां भरता है तू 
एक फांस चुभ जाने से ।
फिर क्यों न कोई दहल  उठे कत्ल किए से ।।
क्या हक है सताता है
जो दीनदुखी को ।
तुम खुद जियो और जीने 
दो जमाने में सभी को ।।
प्रेषक :
*नीराजैन/अनिल जैन
अम्बाला छावनी
(हरियाणा)पिन कोड -133001
मोबाइल नंबर ः 9729597425

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 जय जिनेंद्र, जय महावीर प्रभु की 

प्रतिदिन ,प्रति समय जन्म होता है, मरण होता है तीन लोक में असंख्यात जीवों का,
न उनके इस परिवर्तन का इतना महत्व होता है ,ना इसमें कोई विशेष बात होती है ,ना इनका कोई कल्याणक होता है।
ऐसा क्या होता है ,ऐसा कौनसा पुण्य-प्रताप, ऐसे कौनसी प्रभा होती है, कौनसे गुणों से उस जन्मे नन्हे बालक का कल्याणक मनाने स्वर्ग से सौधर्म इंद्र स्वयं नीचे धरती पर श्वेत ऐरावत हाथी पर सवार हो कर आते  है, सारी नगरी सज धज कर इस उत्सव को मनाती है,
स जन्मे नन्हे बालक में ऐसा कौनसा विशेष ,अद्भुत आनंद होता है ,दशों दिशाएँ ढोल नगाड़े, रत्नों की वर्षा से , नृत्य गान से गुंजायमान होती है,
   पाण्डुकशीला पर  क्षीरसागर के 1008 कलशों के जल से उस नन्हें बालक का जन्म-अभिषेक कर कल्याणक मनाया जाता है ।
        
   *वीर प्रभु का जन्म ,अंतिम जन्म,
   वीर प्रभु का जन्म , स्वयं के कर्मों को पूर्ण जलाने के लिए जन्म,

अतिवीर प्रभु का जन्म, आत्म को शुद्ध बनाने का अंतिम जन्म

 वर्द्धमान प्रभु का जन्म, केवलज्ञान की ज्योत से तीन लोक के असंख्यात जीवो के मोह रूपी अंधकार को मिटाने का मार्ग बताने के लिए जन्म,
महावीर प्रभु का जन्म , "अहिंसा परमधर्म" की ध्वजा लहराने के लिए जन्म,
  सन्मति प्रभु का जन्म ,"जीओ और जीनो दो" की जीवन कला सीखाने के लिए जन्म,
  महावीर प्रभु अनंत गुणों की खान ,अन्त सुख की खान*।
  महावीर प्रभु का जन्म कल्याणक का उत्सव , आज के इस भौतिकता में डूबे हम सभी भटके जीवो का सहारा बन साथ रहने के लिए जन्मकल्याणक का उत्सव,
  इस वर्ष का हो ऐसा वीर प्रभु का जन्मकल्याणक ,सारे विश्व के जीव धारण करे "जीओ और जीने दो" की जीवन जीने की कला, 
   सारे विश्व के जीव के हृदय में हो अहिंसा परम धर्म का नाद,
  सारे विश्व में लहराएँ  ध्वजा जैन धर्म की,
बधाइयाँ , ढोल ,नगाड़े, आनंद, एकता हो ,
गान ,नृत्य हो, सारी नगरी सजी हो,अहिंसा के संदेश की ध्वजा लहराती हो, ऐसा महावीर प्रभु का जन्मकल्याणक का उत्सव घर घर, नगर नगर, शहर शहर ,देश विदेश में  हो ।

अंजलि बज 

बैंगलोर 

 

Edited by Anjali Baj
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भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है इसलिए वह स्वत: प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञान रूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। वस्तुत: भगवान के प्रवचन और उपदेश आलोक पुंज हैं। मन में कर्तव्य का अहंकार ना आये और ना ही किसी पर कर्तव्य का आरोप हो। इस वस्तु-व्यवस्था को समझ कर शुभाशुभ कर्मों की परिणति से पार हो आत्मा की स्वच्छ दशा को प्राप्त करें। बस यही धर्म का व् भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों का सार है। व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है, यह उद्घोष भी महावीर की चिंतन धारा को व्यापक बनाता है। इसका आशय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति मानव से महामानव, कंकर से शंकर और भील से भगवान बन सकता है। नर से नारायण और निरंजन बनने की कहानी ही महावीर का जीवन दर्शन है। उत्तम जैन (विद्रोही )

 

 

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विणासो भवाणं        मणे संभवाणं।
दिणेसो तमाणं        पहू उत्तमाणं।
खयग्गीणिहाणं        तवाणं णिहाणं।
थिरो मुक्कमाणो        वसी जो समाणो।

अरीणं सुहीणं        सुरीणं सुहीणं।
समेणं वरायं        पमत्तं सरायं।
चलं दुव्विणीयं        जयं जेण णीयं।
णियं णाणमग्गं        कयं सासमग्गं।

सया णिक्कसाओ        सया णिव्विसाओ।
सया णिप्पसाओ        सया चत्तमाओ।
सया संपसण्णो        सया जो विसण्णो।
ण पेम्मे णिसण्णो        महावीर सण्णो।

पहाणो गणाणं        सुदिव्वंगणाणं।
तमीसं जईणं        जए संजईणं।
दमाणं जमाणं        खमासंजमाणं।
उहाणं रमाणं        पबुद्धत्थमाणं।
सिरेणं णमामो         जिणंवड्ढमाणं

Edited by Sneh Jain
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भगवान महावीर को विनयांजली. 🙏
    आज से करीबन 27सों साल पहले भगवान महावीर ने बताये हुए तत्वों को संपूर्ण विश्व को अंगिकार करनेकी, आज वर्तमान में पहले से ज्यादा आवश्यकता क्यो पड रही है? क्योंकी हम इन्सांन है। समय के बदलाव के साथ इस स्वयंकेंद्रित भौतिक जगत मे रहते हुए जाने अंजाने में हमं अपनी मानवता को खो रहे है। आज व्यक्तीस्वातंत्र्य के नाम पर हर क्षेत्र में स्वैराचार बढ रहा है। हमारी भौतिक सुख की लालसा के कारण इंसान संपूर्ण पर्यावरण और प्राणी मात्रांओंको हानी पहु़चा रहा है। सत्ताके लालच के कारण हर बलशाली व्यक्ती, समाज, राष्ट्र एक दुसरे के सामने बंदूक ताने खडा है। सभी तरफ अशांती ही अशांती फैली हुई है।
     ऐसे निराशाजनक परिस्थिती से बाहर निकालने का सामर्थ्य सिर्फ भगवान महावीर ने बताये हुये "जिओ और जीने दो" इस मानवतावादी विचारोमें ही है। इतिहास भी गवाह है कि भगवान महावीर का सत्ताइसो साल पहले दिया हुआ अहिंसा का संदेश, सातसों साल पहले जगद्गुरू ज्ञानेश्वर ने भी बताया और परकियोंके आक्रमण से देश को स्वातंत्र्य दिलाने के लिए महात्मा जी ने भी अहिंसाका ही बिगूल बजाया। और आज भी रोजाना साधुसंत, महापुरुष, दुनिया को इसी मार्ग पर लाने का प्रयास कर रहे है। हमें भी महापुरुषोंके आदर्श का पालन जयंती, स्पर्धा या विशेष कार्यक्रमों तक ही सिमीत न रखते हुए, तन मनसे रोजाना स्वयम् इस राह पर चलने का और औरोंको भी लाने का अविरत प्रयत्न करना होगा।यहीं भगवान महावीर को सच्ची मानवंदना होगी।

    ओम् शांती. 🙏😊

 

 

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🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
तीन लोक  हर्षाते,जन्म होता जब महावीर का,  नरंको तक में, शांति का झरना झरता है।
चाहते सूत्र, सुख समृद्धि और शांति का, तो जिओ और जीने दो, संदेश वीर प्रभु का कहता है।।

 राम हो या महावीर,भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का बहता है।🙏🏼🙏🏼

 इक ज्योति पुंज का जन्म हुआ,उद्धार हुआ जन जन का, भारत वसुधा कृतार्थ हुई ।
 धन्य हुए सिद्धार्थ, धन्य- धन्य मां त्रिशला, पाकर जन जन, महिमा जिनकी गाता है।।

राम हो या महावीर, भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का बहता है।🙏🏼🙏🏼


ध्येय  सर्वज्ञ बनना और बनाना, हित हो प्राणी मात्र का, नमन सिर्फ वीतरागता को करता है।
 क्रोध का हार बना दे, क्षमा के फूलों से, आडंबर नहीं स्वार्थ और अहंकार का, मायाचारी से डरता है।

 राम हो या महावीर,भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का बहता है।🙏🏼🙏🏼

 ब्रह्मचार्य पर आरूढ़ हो, त्याग निधि को पाकर, भौतिक सुखों से जो,कोसों दूर रहे।
 संयम तप की,अग्नि में जलने वाला,निज गौरव को प्राप्त कर,कुंदन बन चमकता है।।

राम हो या महावीर, भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का रहता है।।

 मन में दया का सागर उमड़े, परिग्रह हो गागर जितना,  वाणी से सत्य की धार बहे।
बूँद मात्र भी हिंसा ना हो,
कोसों दूर कुशिल से, पर धन पर, न अपना अधिकार जमाता है ।।

राम हो या महावीर,भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का बहता है।।🙏🏼🙏🏼

रोम रोम में रहे नाम प्रभु का, वीतराग छवि आंखों में, पर सेवा के लिए हाथ बढे।
 प्रभावना जिन शासन की इस मुख से, कानों से जिनवाणी श्रवण,परोपकार के लिए पांव बढ़ाता है।।

राम हो या महावीर भगवान वही बनता रगों में जिसकी लहू करुणा का बहता है।।🙏🏼🙏🏼

 हिंसा के बादल छाए,झुलस रही सारी दुनिया, आशा की किरण भी धूमिल हुई।
 जियो और जीने दो प्यारे,चार शब्दों की इस युक्ति में,  हर समाधान नजर आता है।।

राम हो या महावीर, भगवान वही बनता, रगों में जिसकी, लहू करुणा का बहता है।।🙏🏼🙏🏼

तीन लोक हर्षाये, जन्म हुआ जब महावीर का, नरंको तक में, शांति का झरना झरता है ।
चाहते सूत्र, सुख, समृद्धि और शांति का, तो जिओ और जीने दो,संदेश वीर प्रभु का कहता है।।

विनोद पाटनी (बस्सी वाले ) किशनगड़ ,अजमेर
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

Edited by Vinod kumar patni
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