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अहिंसा संगोष्ठी : अहिँसा विषय पर आपकी पंक्तियां


Saurabh Jain

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अहिंसा  मात्र शब्द नहीं है। एक जीवन है जो त्याग की और ले जाता है और हिंसा पाप की और। सभी धर्म अहिंसा को धारण करते है , परंतु जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसने अहिंसा को एक ऐसा उपकरण माना है और हर उस आत्मा को धारण  करना चाहिए जो जिनेन्द्र भक्त है। अहिंसा का अर्थ केवल ये ही नहीं है कि किसी को मारना या हत्या नही करना अपितु इसका व्यापक रूप है हर उस प्राणी के लिए हरदय में क्षमा करुणा दया लोभ और सभी विकारों का त्याग करना तभी हम भावनात्मक और निषेधात्मक हिंसा से दूर रहकर अहिंसा का पालन कर सकते हैं। आज अहिंसा का रूप एक औ र भी है जो हमारे करुणामयआचार्यश्री जी विद्यासागर जी ने अहिंसक वस्त्र अहिंसक ओषधी अहिंसक खाद्य पदार्थ जिसे अपना कर हम अहिंसा की अलख जगा सकती हैं। जीओ और जीने दो ये महावीर का नारा जो जैन धर्म को अहिंसा परमो धर्म का उपदेश देता है।

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मनुष्य के जीवन का  मूल सुख और शांति है जो अहिंसा पर आधारित है वास्तव में हिंसा के विचार , हिंसा के वचन , हिंसा  के प्रयत्न न करना अहिंसा है । 

अहिंसा एवं सत्य एक दूसरे के पूरक हैं । अहिंसा का आयतन अनुकंपा गुण है।

अहिंसा से ही स्व-पर कल्याण संभव है।

यह धर्म है अहिंसा घारो ,ह्रदय से  बढ़ के ।

जीता स्वयं को जिसने, जिन शब्द कह रहा है ।।

 माने  जो ऐसे जिनको, सच जैन वह रहा है ।

सच्चे बनोगे जैनी ,जिनवर के पथ पै चल के ।।

तरुवर के धर्म जैसा ,उपकार सबका करना ।

सब में छिपी अहिंसा ,जिओ जिलाओ मिलके ।।

यदि हो अहिंसा प्रेमी,  स्वागत करो दिवस का । 

दिन में ही लो बाराती , दिन में हो भोज सबका ।।

बन जाओ श्रेष्ठ मानव ,  कुरीतियां कुचल के ।

यह धर्म है अहिंसा धारो हृदय से बढ़ के ।।

 

अहिंसा परमो धर्म: 

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अहिंसा इंसानियत की पहचान है, अहिंसा परम संयम है, अहिंसा परम दान है, अहिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा परम मित्र है, अहिंसा परम सुख है, इसलिए तो कहते है कि अहिंसा परम धर्म है, सत्य धर्म है, और अहिंसा उसे पाने का साधन...
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प्रतियोगिता के लिए अब आने वाली entries मान्य नहीं  होगी 

आप अहिंसा पर अभी भी  लिख सकते हीं 

प्रतियोगिता समाप्त 

अहिंसा संगोष्ठी मे आप अभी भी लिख सकते हैं 

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 अहिंसा में ऐसी अद्भुत शक्ति है, जिसके द्वारा आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं को सरलता पूर्वक समाहित किया जा सकता है। अहिंसा के आधार पर सहयोग और सहभागिता की भावना स्थापित करने से समाज को बल मिलता है।

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अहिंसा का उपदेश =भूत, भावी और वर्तमान के अर्हत् यही कहते हैं-किसी भी जीवित प्राणी को, किसी भी जंतु को, किसी भी वस्तु को जिसमें आत्मा है, न मारो, न (उससे) अनुचित व्यवहार करो, न अपमानित करो, न कष्ट दो और न सताओ। 

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अहिंसा एक मापदंड:-

 

यदि आपके अंदर अहिंसा का भाव आ गया हैं

तो बधाई हो 

आप मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी की ओर हैं।।

 

ह्यको:-

अहिंसा जानो

मोक्ष मार्ग की ओर

प्रथम सीढ़ी

 

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अहिंसा मे अपार शक्ति है।वह शत्रु का नाश न करके शत्रुता का नाश करती है।अहिंसा श्रेष्ठ रसायन है।इसमें मधुरता का रस भरा है।अहिंसा से आत्मा की प्रसुप्त् अनंत दिव्य शक्तियां विकसित हो जाती है।अहिंसा मे अपार शक्ति है।वह शत्रु का नाश न करके शत्रुता का नाश करती है।अहिंसा श्रेष्ठ रसायन है।इसमें मधुरता का रस भरा है।अहिंसा से आत्मा की प्रसुप्त् अनंत दिव्य शक्तियां विकसित हो जाती है।

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सत्य से बना शब्द सत अहिंसा है क्षमा को धारण करना अहिंसा हैसप्त व्यसन 5पाप और 4कषाय

मन वचन और काय से किसी जीव को नहीं बताना अहिंसा है

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  • 3 weeks later...
  • 11 months later...

अहिंसा से जीवन का उद्धार

श्री पार्श्वनाथ जी ने एक दो बार नही लगातार दस भवों तक क्षमा भाव सहित अहिंसा का पूर्ण रूप से पालन किया और जगत्पति बने हम भी अहिंसा का पालन करें और अपने मनुष्य होने का प्रमाण दें।

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