admin Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 देव मनुज तिर्यञ्च नारकी, सम्यक् दृष्टि मात्र पारखी । गुणस्थान हैं किसमें कितने, जिनवाणी को धारो चित में ॥ Link to comment Share on other sites More sharing options...
prabjain Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 देव गति और नरक गति में प्रथम से चतुर्थ गुणस्थान होते है । तिर्यंच गति में प्रथम से पंचम गुणस्थान होते है । मनुष्य गति में प्रथम से चौदहवें गुणस्थान तक होते है । Link to comment Share on other sites More sharing options...
Chhaya Shaha Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 नरक गती मे1ते4 तिर्यच गती मे1ते5 देवगतीमे1ते4मनुष्य गतीमे1ते14गुणस्थानेअसतात Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sandhya Badkul Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 8 hours ago, admin said: देव मनुज तिर्यञ्च नारकी, सम्यक् दृष्टि मात्र पारखी । गुणस्थान हैं किसमें कितने, जिनवाणी को धारो चित में ॥ 1 समवेग 2 निवेग 3 स्वनिंदा 4 गहा 5 उपशम 6 जिन भक्ति 7 वात्सल्य 8 अनुकम्पा Link to comment Share on other sites More sharing options...
Bobby Jain Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 देव के गुण स्थान चार मनुष्य के गुणस्थान चौदह तिर्यच्च के गुणस्थान एक नाराकी के गुणस्थान चार बोबी जैन रेवाड़ी हरियाणा Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sunny jain guna Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 नरक गति - 1 से 4 तक तिर्यंच गति - 1 से 5 तक मनुष्य गति - 1 से 14 तक देव गति - 1 से 4 तक Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rajendra K. Daftary Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 गुणस्थान चौदह होते हैं जो निम्न हैं— ०१) मिथ्यादृष्टि, ०२) सासादन सम्यग्दृष्टि, ०३) सम्यग्मिथ्यादृष्टि या मिश्र, ०४) असंयत या अविरत सम्यग्दृष्टि, ०५) संयतासंयत या देशविरत, ०६) प्रमत्तसंयत या प्रमत्तविरत, ०७) अप्रमतसंयत, ०८) अपूर्वकरण या अपूर्वकरण-प्रविष्टशुद्धिसंयत, ०९) अनिवृत्तिकरण या अनिवृत्तिकरणबादरसांपराय-प्रविष्टशुद्धिसंयत, १०) सूक्ष्मसांपराय या सूक्ष्म सांपराय प्रविष्ट शुद्धि संयत, ११) उपशांतकषाय या उपशांतकषाय वीतराग छद्मस्थ, १२) क्षीणकषाय या क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ, १३) सयोगकेवली और १४) अयोगकेवली नरक गति में १ से ४ गुणस्थान, तिर्यञ्चगति में १ से ५ गुणस्थान, देवगति में १ से ४ गुणस्थान, एवं मनुष्य गति में १ से १४ गुणस्थान । मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि इन चार गुणस्थानों में नारकी होते हैं।मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि और संयतासंयत इन पाँच गुणस्थानों में तिर्यंच होते हैं।मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि इन चार गुणस्थानों में देव पाये जाते हैं। मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि या मिश्र, असंयत या अविरत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत या देशविरत, प्रमत्तसंयत या प्रमत्तविरत, अप्रमतसंयत, अपूर्वकरण या अपूर्वकरण-प्रविष्टशुद्धिसंयत, अनिवृत्तिकरण या अनिवृत्तिकरणबादरसांपराय-प्रविष्टशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपराय या सूक्ष्म सांपराय प्रविष्ट शुद्धि संयत, उपशांतकषाय या उपशांतकषाय वीतराग छद्मस्थ, क्षीणकषाय या क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ, सयोगकेवली और अयोगकेवली इन चौदह गुणस्थानों में मनुज पाये जाते हैं। Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sunita Model Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 13 hours ago, admin said: देव मनुज तिर्यञ्च नारकी, सम्यक् दृष्टि मात्र पारखी । गुणस्थान हैं किसमें कितने, जिनवाणी को धारो चित में ॥ देव गति मे - 4 मनुष्यगति मे - 14 तिर्यंच गति में - 5 नरकगति मे - 4 Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sunita Model Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 13 hours ago, admin said: देव मनुज तिर्यञ्च नारकी, सम्यक् दृष्टि मात्र पारखी । गुणस्थान हैं किसमें कितने, जिनवाणी को धारो चित में ॥ Link to comment Share on other sites More sharing options...
Sandhya Rishabh jain Posted September 18, 2020 Share Posted September 18, 2020 14 hours ago, admin said: देव मनुज तिर्यञ्च नारकी, सम्यक् दृष्टि मात्र पारखी । गुणस्थान हैं किसमें कितने, जिनवाणी को धारो चित में ॥ देव और नरकगति मे चार गुणस्थान तिर्यंचगति में पाच और मनुष्य गति में चौदह गुणस्थान होतेहैं Link to comment Share on other sites More sharing options...
Rinkunlb Posted September 19, 2020 Share Posted September 19, 2020 देव गति और नरक गति में प्रथम से चतुर्थ गुणस्थान होते है । तिर्यंच गति में प्रथम से पंचम गुणस्थान होते है । मनुष्य गति में प्रथम से चौदहवें गुणस्थान तक होते है । Link to comment Share on other sites More sharing options...
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