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अध्याय 2 सूत्र 37


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सूक्ष्म का अर्थ होता है जिनको हम साधारण चक्षुऔ से नहीं देख सकते हैं। परम परम सूक्ष्म का अर्थ है कि आगे आगे के शरीर क्रमश: पहले पहले शरीर से सूक्ष्म सूक्ष्म होते जाते हैं।मनुष्य और तिर्यंचो काऔदायिक शरीर होता है। औदायिक शरीर से असंख्यात गुना सूक्ष्म वैक्रियक शरीर  (देवों और नारकीयों) काहोता है,तथा वैक्रियक शरीर से असंख्यात गुना सूक्ष्म आहारक शरीर (६वें गुणस्थान वर्दी मुनिराज के दाहिने कंधे से एक सफ़ेद पुतला निकलता है जो मुनि के शंका निदान हेतु केवली भगवान के पास जाकर शंका का समाधान पाकर वापिस मुनि में समा जाता है) होता है।।आहारक शरीर से अनन्त गुना सूक्ष्म  तैजस शरीर (शरीर में जो तापहोता है  ,उसे तेजस शरीर कहते हैं)एवं तेजस शरीर से अनन्तगुना सूक्ष्म कार्मण (कर्मों का समूह) शरीर होता है।

 

Edited by Pramod Kumar jain
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