Jump to content
JainSamaj.World

तत्वार्थ सूत्र स्वाध्याय अध्याय 2सूत्र 13


Recommended Posts

अस्तित्व     जिसका लोक में  हमेशा अस्तित्व  रहता है जिसको किसी के द्वारा न तो उत्पन्न किया जासकता है एवं न ही किसीके द्वारा नाश किया जा सकता है।

नित्यत्व          जो नित्य है अर्थात नाशवान नहीं है।

प्रदेशत्व         जिसके निश्चित प्रदेश है  उन्हें न कम किया जा सकता एवं न ज्यादा।जिस शक्तियों के कारण द्र्व्य का कोई न कोई आकार अवश्य होता है।

 पर्याय    एक द्रव्य  के विभिन्न  अवस्थाओं,रूपों  आदि को  उस द्रव्य की पर्याय कहते हैं

Edited by Pramod jain1954
Link to comment
Share on other sites

  • Who's Online   0 Members, 0 Anonymous, 35 Guests (See full list)

    • There are no registered users currently online
  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...