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English: Imagine a situation where a friend betrays your trust. Based on the teachings in the article, describe how you would apply the principle of "उत्तम क्षमा" in this scenario.

Hindi: एक ऐसी स्थिति की कल्पना कीजिए जहाँ एक मित्र ने आपके विश्वास को तोड़ा है। लेख में दिए गए सिद्धांतों के आधार पर बताइए कि आप इस स्थिति में "उत्तम क्षमा" के सिद्धांत को कैसे लागू करेंगे।

 

प्रतियोगिता समाप्त होने तक आपके उत्तर किसी ओर को नहीं दिखेंगे 

आप भी किसी के उत्तर नहीं देख पाएंगे 

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हम मित्र को उसकी गलतियां समझायेंगे तथा उससे अपनी गलती की माफी माँगकर उत्तम क्षमा धर्म को सार्थक बनाने की कोशिश करेंगे 

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इसके लिए पृथ्वीराज का उदाहरण दिया जा सकता हैं। मोहम्मद गौरी से कई युद्ध जीते हर बार पृथ्वीराज ने उसे क्षमा किया फिर भी हर बार गौरी ने उसका विश्वास तोड़ा फिर भी पृथ्वीराज ने उससे कभी द्वेष नहीं किया, न कभी उन्होंने अपने क्षमा कर्तव्य (गुण) को भुलाया। हमारा मित्र यदि विश्वास तोड़ता है तो हमको भी उससे द्वेष नहीं, उसको क्षमा कर देना चाहिए। क्योंकि क्षमा वीरास्या भूषणम 🙏

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The deception given by a friend hurts our mind, in such a situation we should have the feeling of utmost forgiveness and think that it is possible that I may have cheated him in some situation or it may be that it was his compulsion, I have fulfilled my friendship completely, I do not have any feeling of hatred for him in my mind. That living being is also capable of becoming pure, siddh, conscious, god, this cannot be the possibility of his soul. I should not consider the deception given by him as a deception, but the result of my deeds and should not have any kind of enmity towards him

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Main ek Chetan atma hun mera na koi Mitra hai Na koi Shatru hai na hi koi mujhe Dhokha de raha hai . Yadi mujhe koi Dhokha de raha hai to vah swayam mere andar ki kashay hai. Hamara Krodh hi hamara Shatru hai. Kshma Dharm ka palan karke Krodh per Vijay prapt ki ja sakti hai.

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यदि मेरे साथ विश्वासघात हुआ है तो मैं उस मित्र को ये समझकर आंतरिक रूप से क्षमा कर दूंगी कि पुराना हिसाब चुकता हुआ है मतलब मैंने भूतकाल या फिर पूर्व भव में किसी के साथ विश्वासघात किया होगा जिसका फल मुझे मिला है। मेरा वो मित्र तो बस इन सबमें निमित्त मात्र है। और मैं निमित्त को नहीं निमित्त के कारण को देखूंगी जो मैं स्वयं हूं।

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इस स्थिति में हम हमारे विचारों द्वारा अपने क्रोध को दबाने का प्रयत्न करेंगे  और अपने मित्र से भी द्वेष की भावना नहीं रखेंगे क्योंकि द्वेष की भावना से हम अपने आप को क्षति पहुंचाएंगे इसीलिए हमें हमारा कर्तव्य देखना है दूसरों का नहीं इसीलिए हम हमारा आत्म हित देखते हुए हमारे शत्रु को भी क्षमा कर देंगे।

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वह पहले भी मित्र था बाद में भी मित्र ही रहेगा।अवसर बीत जाने पर वह पहले की ही भांति ही दिखेगा। यही उत्तम क्षमा है 

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पृथ्वीराज चौहान ने कयी बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में हराया था।वह उनकी वीरता थी। लेकिन जयचंद राठौड़ ने द्वेष के कारण उनसे गद्दारी की ओर गौरी से मिलकर साजिश से पृथ्वीराज चौहान को फसाया।यहापर पृथ्वीराज चौहान के क्षमा गुण से विरता प्रकट होती है वह वीर था। अपने क्षमा गुण को भुलना नही चाहता था । यही कायरो की तरह अपने क्षमा गुण छोड़ना नहीं चाहता था 

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उसे शांतिपूवर्क समझाबूझाकर छोड़ दिया जाता है माफ कर देते हैं उसे ही उत्म क्षमा कहेंगे।

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यदि कोई अपने मित्र ने अपने विश्वास को तोड दिया है यानि कि अपने साथ विश्वासघात किया गया है तभी भी हमें अपना मन बड़ा करके अपने अंदर क्षमा का भाव क्षमा भाव धारण करके अपने मित्र को माफ कर  देना चाहिए और उसे एक मौका और देना चाहिए, ताकि वह व्यक्ति चाहे कोई भी हो, दोबारा गलती ना करें और क्षमा के महत्व को समझें।

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यदि पहले मित्र था तो अब भी मित्र दिखता हैं और यदि पहले सामान्य मनुष्य था अर्थात न शत्रु था न मित्र तो अब भी वैसा ही दिखता है। यह गृहस्थ की सच्ची क्षमा।

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हम जैन हैं हमारे यहाँ नमस्ते नहीं जय जिनेन्द्र बोला जाता है,

हम जैन हैं हमारे यहाँ बिना प्याज-लहसून के भी स्वादिष्ट भोजन बनता है, 

हम जैन हैं हमारे यहाँ पानी फिल्टर करके नहीं छानकर पिया जाता है, 

हम जैन हैं हमारे यहाँ सब्जी और फलों को काटा नहीं सुधारा या बनाया जाता है, 

हम जैन हैं हमारे यहाँ सॉरी नहीं उत्तम क्षमा बोला जाता है, 

हाँ हम जैन हैं हमारी हर समस्या का समाधान णमोकार मंत्र और उत्तम क्षमा है,

हम जैन हैं हमारे यहाँ वात्सल्य और भाईचारे का भाव होता है ना कि हिंसा और द्वेष का,

तो सोचिए विचारिये क्यूँ आजकल हम आधुनिकीकरण, पाश्चात्य संस्कृति, अभिमान, अकड़ और झूठी शान-शौकत में अपना धर्म और धर्म के नैतिक मूल्यों को भूल रहे हैं? 

जय जिनेन्द्र 🙏 

 🙏

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यदि मित्र ने मेरे विश्वास को तोड़ा है, तो "उत्तम क्षमा" के सिद्धांत के अनुसार, मैं सबसे पहले अपने भीतर की भावनाओं को शांत करने का प्रयास करूंगा। क्रोध या दुख के बजाय, मैं स्थिति को समझने का प्रयास करूंगा कि ऐसा क्यों हुआ। मैं मित्र से संवाद करूंगा ताकि दोनों के दृष्टिकोण स्पष्ट हो सकें। इसके बाद, मैं अपने मन से आक्रोश और द्वेष को छोड़ते हुए सच्चे मन से मित्र को माफ़ कर दूंगा, भले ही वह माफी माँगे या न माँगे। यह माफी बाहरी तौर पर नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से होगी, जिससे मेरी मानसिक शांति बनी रहेगी।

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