Saurabh Jain Posted December 14, 2015 Share Posted December 14, 2015 आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के अमृत वचन जिन और जन में इतना ही अन्तर है कि एक वैभव के ऊपर बैठा है और एक के ऊपर वैभव बैठा है। श्रद्धा जब गहराती है तब वही समर्पण बन जाती है। मांगने से नहीं किन्तु अधिकार श्रद्धा से मिलते है। शिक्षा वही श्रेष्ठ है, जो जन्म-मरण का क्षय करती है। अपने आपको जानो, अपने को पहिचानो, अपनी सुरक्षा करो क्योंकि अपने में ही सब कुछ है। शरीर के प्रति वैराग्य और जगत के प्रति संवेग ये दोनो ही बातें आत्म कल्याण के लिये अनिवार्य है। अपने उपयोग का उपयोग पर की चिंता में ना करे। पंचपरमेष्ठी की भक्ति एवं ध्यान से विशुद्धि बढ़ेगी, संक्लेश घटेगा, वात्सल्य बढ़ेगा। भक्ति गंगा की लहर ह्रदय के भीतर से प्रवाहित होना चाहिये और पहुंचना चाहिये वहां कहां निस्सीमता हो। जो व्यक्ति वाणी को नियन्त्रित नहीं कर सकता वह साधना नहीं कर सकता। वें महान हैं जो मुख से एक शब्द निकालने में आगे पीछे विचार करते हैं। साधक बनों प्रचारक नहीं। Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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