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JainSamaj.World

Category

Regional Samaj

Jain Type

Digambar
Shwetambar

Country

Bharat (India)

State

Karnataka
  1. What's new in this club
  2. श्रवणबेलगोला में महामस्तकाभिषेक के पावन अवसर पर देश विदेश के अनेकों जैन बन्धु इस बार कर्नाटक की यात्रा करेगे। कर्नाटक में अन्य जैन तीर्थो के दर्शनों हेतु 5 दिनों का एक यात्रा चार्ट संलग्न है, जो बैंगलोर से शुरू हो कर बंगलोर में ही सम्पन्न हो रहा है। आप अपनी सुविधा अनुसार दिन कम या ज्यादा कर सकते है।
  3. श्रवणबेलगोला : 07.02.2018 भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का भगवान बाहुबली के महामस्तक-अभिषेक महोत 1.इस स्थान पर आप सब के बीच आकर तथा शांति, अहिंसा और करुणा के प्रतीक भगवान बाहुबली की इस भव्य प्रतिमा को देखकर मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। यह क्षेत्र धर्म,अध्यात्म और भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है और सदियों से मानवता के कल्याण का संदेश देता रहा है। 2.इस महोत्सव में आने के लिए मुख्यमंत्री जी ने आग्रह किया और निमंत्रण भेजा। केंद्रीय मंत्री श्री अनंतकुमार जी ने भी यहां आने का अनुरोध किया। इस महोत्सव के आयोजकों ने भी राष्ट्रपति भवन आकर आमंत्रण दिया। कर्नाटक के लोगों की सदाशयता में कुछ ऐसा विशेष आकर्षण है जो मुझे यहां बार-बार आने के लिए प्रेरित करता है। राष्ट्रपति बनने के बाद, पिछले लगभग छ: महीनों के दौरान, कर्नाटक की यह मेरी तीसरी यात्रा है। 3.हमसभी जानते हैं, आदिनाथ ऋषभदेव के पुत्र भगवान बाहुबली चाहते तो अपने भाई भरत के स्थान पर राजसुख भोग सकते थे। लेकिन उन्होने अपना सब कुछ त्याग कर तपस्या का मार्ग अपनाया और पूरी मानवता के कल्याण के लिए अनेक आदर्श प्रस्तुत किये। लगभग एक हजार वर्ष पहले बनाई गई यह प्रतिमा उनकी महानता का प्रतीक है। इस प्रतिमा के कारण यह स्थान आज देश-विदेश में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। 4.यह स्थान हमारे देश की सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता का एक बहुत ही प्राचीन केंद्र रहा है। कहा जाता है कि आज से लगभग तेइस सौ वर्ष पूर्व, मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र से जैन आचार्य भद्रबाहु यहां पधारे थे। बिहार के पटना क्षेत्र से उनके शिष्य, विशाल मौर्य साम्राज्य केसंस्थापक, सम्राट चन्द्रगुप्त यहां आए थे। वहअपनी शक्ति के शिखर पर रहते हुए भी, सारा राज-पाट अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंपकर यहां आ गए थे। यहां आकर उन्होने एक मुनि का जीवन अपनाया और तपस्या की। यहीं चंद्रगिरि की एक गुफा में, अपने गुरु का अनुसरण करते हुए, सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी सल्लेखना का मार्ग अपनाया और अपना शरीर त्याग किया। उन राष्ट्र निर्माताओं ने शांति, अहिंसा, करुणा और त्याग पर आधारित परंपरा की यहां नींव डाली। धीरे-धीरे पूरे देश के अनेक क्षेत्रों से लोग यहां आने लगे। इस प्रकार इस क्षेत्र का आकर्षण बढ़ता गया। 5.जैन परंपरा की धाराएं पूरे देश को जोड़ती हैं। मैं जब बिहार का राज्यपाल था, तो वैशाली क्षेत्र में भगवान महावीर की जन्मस्थली, और नालंदा क्षेत्र में उनकी निर्वाण-स्थली, पावापुरी में कई बार जाने का मुझे अवसर मिला। आज यहां आकर, मुझे उसी महान परंपरा से जुड़ने का एक और अवसर प्राप्त हो रहा है। 6.मुझे बताया गया है कि लगभग एक हजार वर्ष पहले इस विशाल और भव्य प्रतिमा का निर्माण हुआ था। इस प्रतिमा का निर्माण कराने वाले गंग वंश के प्रधानमंत्री चामुंडराय और उनके गुरु ने सन 981 में यहां पहला अभिषेक किया था। उसके बाद हर बारह वर्ष परअभिषेक की परंपरा शुरू हुई,जो आज भी जारी है। 7.भगवान बाहुबली की यह विशाल प्रतिमा जो हम सब देख रहे हैं, यह भारत की विकसित संस्कृति,स्थापत्य कला,वास्तुशिल्प और मूर्तिकला का बेजोड़ उदाहरण है। शिल्पकारों ने अपनी श्रद्धा और भक्ति से एक विशाल, निर्जीव ग्रेनाइट के पत्थर की शिला में,जान डाल दी है।‘अहिंसा परमो धर्म:’ का भाव इस प्रतिमा के मुख-मण्डल पर अपने पूर्ण रूप में दिखाई देता है। 8.भगवान बाहुबली की यह दिगंबर प्रतिमा और इस पर माधवी लताओं की आकृतियां,उनकी गहन तपस्या के बारे में बताने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करती हैं कि,वे किसी भी प्रकार के बनावटीपन से मुक्त थे, और प्रकृति के साथ पूरी तरह एकाकार थे। जैन मुनियों नें यह परंपरा आज भी कायम रखी है। जैन धर्म के आदर्शों में हमें प्रकृति का संरक्षण करने की सीख मिलती है। 9.सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र को जैन दर्शन के तीन रत्नों के रूप में जाना जाता है। लेकिन यह तीनों बातें पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी हैं। शांति, अहिंसा, भाईचारा,नैतिक चरित्र और त्याग के द्वारा ही विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। 10.मुझे बताया गया है कि विश्व-शांति हेतु प्रार्थना करने के लिए कई देशों से तथा हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों से, भारी संख्या में श्रद्धालु आज यहां आए हैं। हमारे सामने विद्यमान गोम्मटेश्वर की प्रतिमा के चेहरे पर भी पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए सहानुभूति का भाव दिखाई देता है।आप सब की प्रार्थना में निहित विश्व कल्याण की भावना, आतंकवाद और तनाव से भरे इस दौर में,सभी के लिए शिक्षाप्रद है। मैं सभी देशवासियों की ओर से, विश्व-शांति के लिए प्रतिबद्ध आप सभी श्रद्धालुओं को, इस कल्याणकारी प्रयास में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं। 11.मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यहां के ट्रस्ट के प्रयासों से इस क्षेत्र में मोबाइल अस्पताल,बच्चों के अस्पताल,इंजीनियरिंग कॉलेज,पॉलीटेक्निक और नर्सिंग कॉलेज की स्थापना कराई गई है और एक‘प्राकृत विश्वविद्यालय’ के निर्माण पर भी काम चल रहा है। 12.मैं सभी आयोजकों और श्रद्धालुओं को पंच कल्याणक तथा महामस्तक-अभिषेक से जुड़े सभी समारोहों के अत्यंत सफल आयोजन की शुभकामनाएं देता हूं। धन्यवाद जय हिन्द!
  4. श्रावणबेलगोला कर्नाटक राज्य में स्थित हसन जिले के 51 किमी (32 मील) दक्षिण-पूर्व में स्थित एक छोटा सा टाउनशिप है, जो समुद्र तल से 3,350 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। बैंगलोर और मैसूर दोनों से श्रावणबेलगोला की उत्कृष्ट सड़के हैं। निकटतम हवाई अड्डा 157 किमी (98 मील) की दूरी पर, बैंगलोर में है और निकटतम रेलवे स्टेशन श्रावणबेलगोला में है। हसन - 51 किलोमीटर / 32 मील मैसूर - 95 किमी / 60 मील दूर बैंगलोर - 157 किमी / 98 मील मैंगलोर - 227 किमी / 142 मील
  5. महामस्काभिशेक 17 फरवरी, से 25 फरवरी, 2018 की अवधि के दौरान किया जाएगा। 21 फरवरी, 2018 का दिन एक विशेष दिन के रूप में अलग रखा गया है ताकि एनआरआई भगवान बाहुबली के अभिषेक कर सकें। श्रावणबेलगोला, विंधीगिरि और चंद्रगिरी पहाड़ियों द्वारा बसा, मोनोलिथ भगवान बाहुबली द्वारा संरक्षित और जैन विरासत के 2,300 साल तक घर, हमारे इतिहास और सदियों से फैले हुए विरासत का एक वास्तविक तस्वीर है। महात्माक्षिर्षे, भगवान गोमेटेश्वर बाहुबली का अभिषेक समारोह, जो जैन धर्म चक्र में हर 12 साल में मनाया जाता है, प्राचीन और समग्र जैन परंपरा का एक अभिन्न अंग है। वर्ष 2018 में समारोह का 88 वां संस्करण होगा जो वर्ष 981 ए.डी. में शुरू होगा। सैकड़ों श्रद्धालु और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से पर्यटकों ने भाग लिया होगा। श्रावणबेलगोला के शहर में, लॉर्ड गोमटेश्वर श्री बाहुबली के एक विशाल चट्टान की मूर्ति प्रतिमा है। यह 57 फीट ऊंची मूर्ति कला के सभी जैन कार्यों में सबसे शानदार है। यह लगभग 982 में बनाया गया था। बाहुबली प्रतिमा को मूर्तिकला कला के क्षेत्र में प्राचीन कर्नाटक की सबसे ताकतवर उपलब्धियों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। जबकि श्रावणबेलगोला में भी जैन पौराणिक कथाओं के बारे में श्री जैन माथा की दीवारों पर चित्रित कुछ बेहतरीन चित्रों के माध्यम से अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। रंगों में समृद्ध और रचना में सामंजस्यपूर्ण, 18 वीं शताब्दी के इन चित्रों में शाही जुलूस और उत्सव, भिक्षुओं, चमकीले रंग की साड़ियों में महिलाएं, जंगली जानवरों के वन दृश्यों और लोगों के घरेलू, धार्मिक और सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालने वाले अन्य विषयों को दर्शाया गया है ।
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