सिद्ध क्षेत्र मांगीतुंगी जी महाराष्ट्र
नाम एवं पता - श्री मांगीतुंगीजी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, मांगीतुंगीजी मु. पो. - मांगीतुंगी, तह. - सटाणा, जिला - नासिक (महा.) पिन - 423302
टेलीफोन - 02555-242519, मो. : 09422754603, 07588711766, 09890122799 09673718008,
email - mangitungi.1008@gmail.com
क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ
आवास - कमरे (अटैच बाथरूम) - 72, कमरे (बिना बाथरूम) - 40, हाल - 4, (यात्री क्षमता - 250), गेस्ट हाऊस - 6
यात्री ठहराने की कुल क्षमता - 500
भोजनशाला - है, सशुल्क
औषधालय - है
पुस्तकालय - है
विद्यालय - नहीं
एस.टी.डी./पी.सी.ओ.- है।
आवागमन के साधन
रेल्वे स्टेशन - मनमाड़ - 100 कि.मी.
बस स्टेण्ड - ताहराबाद - 11 कि.मी.
पहुँचने का सरलतम मार्ग - मनमाड़, मालेगांव, नासिक, धूलिया से बस द्वारा
निकटतम प्रमुख नगर - मनमाड़-100 कि.मी., मालेगांव-65 कि.मी., नासिक-125 कि.मी. धूलिया-100 कि.मी.
प्रबन्ध व्यवस्था
संस्था - श्री मांगीतुंगीजी दि. जैन सिद्धक्षेत्र ट्रस्ट
अध्यक्ष - श्री रमेश हुकुमचन्दजी गंगवाल, इन्दौर (098932-09074)
महामंत्री - श्री अनिल श्रीचन्दजैन, पारोला (02597-223248,09403904661)
कोषाध्यक्ष - श्री मोहन सोनालाल जैन (आर.टी.ओ.) कुसुंबा (9422264486)
प्रबन्धक - डॉ. सूरजमल गणेशलाल जैन,मांगीतुंगीजी (02555-219108, 09422754603)
क्षेत्र का महत्व
क्षेत्र पर मन्दिरों की संख्या : 21
क्षेत्र पर पहाड़ : है (मांगीजी एवं तुंगीजी, 3500 सीढ़ियाँ है, डोली उपलब्ध है)
ऐतिहासिकता : यह क्षेत्र दक्षिण भारत का सम्मेदशिखर कहलाता है। यहाँ से श्रीराम, हनुमान, सुग्रीव, सुडील, नील, महानील सहित 99 करोड़ मुनिराज मोक्ष गये। सीताजी यहीं से स्त्रीलिंग छेदकर 16 वें स्वर्ग में प्रतिइन्द्र हुई। श्रीकृष्णजी की मृत्यु एवं अग्नि संस्कार भी यहीं हुआ। परमपूज्य,गणिनीप्रमुख, आर्यिका श्रीज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से पहाड़ पर भगवान ऋषभदेव की विश्व में विशालतम् 108 फीट ऊँची मूर्ति का निर्माण पूर्णता की ओर है। माताजी की प्रेरणा से निर्मित सहस्रकूट कमल मन्दिर व गार्डन अति सुन्दर है। सहस्रकूट मन्दिरजी में 1008 मूर्तियाँ हैं। मांगीजी पर 9 मन्दिर व तुंगीजी पर 4 मन्दिर हैं। तलहटी में 7 मन्दिर हैं जिनमें 1083 मूर्तियाँ हैं। 1008 विश्व हितंकर सातिशय चिंतामणि पार्श्वनाथ की चमत्कारिक प्रतिमा है। लोगों की मान्यता है कि दर्शन करने से लाभ मिलता है। मस्तकाभिषेक भी होता है। प्रत्येक पूर्णिमा को भक्तगण आते हैं। भारत में सबसे बड़ी 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान की 21 फुट ऊँची प्रतिमा है। शनि अमावस्या के दिन महामस्तकाभिषेक होता है। शनि का प्रकोप दूर होता है।
वार्षिक मेले : कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (दीपावली के पश्चात्) समीपवर्ती तीर्थक्षेत्र गजपथा - 125 कि.मी., महुवा - 175 कि.मी., एलोरा -180 कि.मी., कचनेर - 250 कि.मी., पैठण - 250 कि.मी., णमोकार तीर्थ - 70 कि.मी.
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