पाठ 11 अव्यय एवं विशेषण
(क) स्थानवाची अव्यय
वहाँ, उस तरफ |
तेत्यु, तहिं, तेत्तहे, तउ, तेत्तहि |
जहाँ, जिस तरफ |
जेत्थु, जहिं, जेत्तहे, जउ |
यहाँ, इस तरफ |
एत्यु, एत्थ, एत्तहे |
कहाँ |
केत्थु, केत्तहे, कहिं |
सब स्थानों पर |
सव्वेत्तहे |
दूसरे स्थान पर |
अण्णेत्तहे |
कहाँ से |
कहन्तिउ, कउ, केत्यु, कहिं |
वहाँ से |
तहिंतिउ, तत्थहो |
एक ओर/दूसरी ओर |
एत्तहे |
कहीं पर (किसी जगह) |
कहिं चि, कहिं जि, कहिं वि, कत्थई, कत्थवि, कहिमि |
पास (समीप) |
पासु, पासे |
पास से, समीप से |
पासहो |
पास में |
पासेहिं |
दूर से, दूरवर्ती स्थान पर |
दूरहो, दूरें |
पीछे |
पच्छए, पच्छले, अणुपच्छए |
आगे |
पुरे, अग्गले, अग्गए |
ऊपर |
उप्परि |
नीचे |
हेट्टि |
चारों ओर, चारों ओर से |
चउपासे, चउपासेहिं, चउपासिउ |
(ख) कालवाची अव्यय
तब |
तइयहुं, तं, ताम, तामहिं, तावेहिं, तो |
जब |
जइयहुं, जं, जाम, जामहिं, जावेहिं |
कब |
कइयतुं |
अब, अभी, इस समय |
एवहिं |
इसी बीच |
एत्थन्तरि |
उस समय |
तावेहिं |
जिस समय |
जावेहिं |
जब तक |
जाम, जाउँ, जाम्व, जाव, जावन्न |
तब तक |
ताम, ताउं, ताव |
आज |
अज्ज, अज्जु |
कल |
कल्ले, कल्लए, परए |
आज तक |
अज्ज वि |
आज कल में |
अज्जु कल्ले |
प्रतिदिन |
अणुदिणु, दिवे-दिवे |
रात-दिन |
रतिन्दिउ, रत्तिदिणु |
किसी दिन |
के दिवसु, कन्दिवसु |
आज से |
अज्जहो |
शीघ्र |
झत्ति, छुडु, अइरेण, लहु, सज्ज |
तुरन्त |
तुरन्तउ, तुरन्त, अवारें |
जल्दी से |
तुरन्तएण, तुरन्त |
पलभर में |
णिविसेण, णिविसें |
तत्काल |
तक्खणेण, तक्खणे |
हर क्षण |
खणे खणे |
क्षण क्षण में |
खणं खणं |
कुछ देर के बाद ही |
खणन्तरेण |
कभी नहीं |
ण कयाइ |
दीर्घकाल तक |
चिरु |
बाद में |
पच्छए, पच्छइ, पच्छा |
फिर, वापस |
पडीवउ, पडीवा |
जेम |
परम्परानुसार |
(ग) प्रकारवाची अव्यय
इस प्रकार |
एम, एम्व, इय |
किस प्रकार, क्यों |
केम, केवं, किह, काई |
जिस प्रकार, जैसे |
जेम, जिम, जिह, जह, जहा |
उसी प्रकार, वैसे |
तेम, तिम, ण, तह, तहा |
जितना अधिक....उतना ही |
जिह जिह .....तिह तिह |
जैसे जैसे .... वैसे वैसे |
जिह जिह .....तिह तिह |
की भाँति, जैसे |
जिह |
किसी प्रकार |
कह वि |
(घ) विविध अव्यय
नहीं |
णाहिं, णहि, णउ, ण, णवि, मं, णत्थि |
मत |
मं |
क्यों नहीं |
किण्ण |
साथ |
सहुं, समउ, समाणु |
बिना |
विणु, विणा |
वि |
भी |
नामक, नामधारी, नाम से |
णाम, णामु, णामें, णामेण |
मानो |
णं, णावई, णाई |
जउ |
जो |
की तरह, की भाँति |
णाई, इव, जिह, जेम, ब्व, व |
सदृश |
सन्निह |
परन्तु |
णवर |
केवल |
णवरि, णवर |
किन्तु |
पर |
आपस में, एक दूसरे के विरुद्ध |
परोप्परु |
क्या |
किं |
क्यों |
काई |
इसलिए |
तेण, तम्हा |
चूंकि |
जम्हा |
कब |
कइयहूं |
यदि......तो |
जइ.....तो |
बल्कि |
पच्चेल्लिउ |
स्वयं |
सई |
एकाएक, शीघ्र |
अथक्कए |
अथवा |
अहवा |
या...या |
जिम..जिम |
हे |
भो, हा, अहो |
अरे |
भो, अरे |
लो |
लई |
बार-बार |
पुणु-पुणु, मुहु–मुहु, वार–वार |
एक बार फिर |
एक्कसि, एक्कवार |
सौ बार |
सयवारउ |
तीन बार |
तिवार, तिवारउ |
बहुत बार |
बहुवारउ |
इसके पश्चात्, इसी बीच, इसी समय |
एत्थन्तरे |
उसके बाद |
ताणन्तरे |
थोड़ी देर बाद |
थोवन्तरे |
अत्यन्त |
सुट्ठ, अइ |
अत्याधिक |
अहिय |
अवश्य ही |
अवसें |
अच्छा |
वरि |
अधिक अच्छा |
वरु |
सद्भाव पूर्वक |
सब्भावें |
अविकार भाव से |
अवियारें |
स्नेह पूर्वक |
सणेहें |
लीला पूर्वक |
लीलए |
पूर्ण आदर पूर्वक |
सव्वायरेण |
पूर्ण रूप से |
णिरारिउ |
बड़ी कठिनाई पूर्वक |
दुक्खु दुक्खु |
एकदम, सहसा |
सहसत्ति |
दक्षिण की और |
दाहिजेण |
उत्तर की और |
उत्तरेण |
वाक्य प्रयोग –
- हम सब कहाँ खेलें? - अम्हे केत्थु खेलमो?
- वह यहाँ सोया - सो एत्थु सयिओ
- तुम फल वहाँ से प्राप्त करो - तुहुं फलाइं तत्थहो लभहि
- जब मैं सोता हूँ, तब तुम जागते हो - जाम हउँ सयउं ताम तुहूं जग्गहि
- आज तक तुम भागी नहीं - अज्जवि तुहं णउ पलाआ
- वे आज कल में रत्न खरीदेंगे - ते अज्जु कल्ले मणि कीणसहिं
- मुनि हिंसा कभी नहीं करते - मुणि हिंसा ण कयाइ करहिं
विशेषण
मधुर |
महुर |
महुरा |
उज्जवल |
उज्जल |
उज्जला |
तीखा |
तिक्ख |
तिक्खा |
प्रिय |
वल्लह |
वल्लहा |
सफेद |
पण्डुर |
पण्डुरा |
शून्य |
सुण्ण |
सुण्णा |
कंजूस |
किविण |
किविणा, किविणी |
निर्मल |
णिम्मल |
णिम्मला |
विमल |
विमल |
विमला |
दुर्बल |
किस |
किसा |
मूर्ख |
मुक्ख |
मुक्खा |
काला |
कसिण |
कसिणा |
मोटा |
थूल्ल |
थूल्ला |
पूर्वी |
पुव्व |
पुव्वा |
पश्चिमी |
पच्छिम |
पच्छिमा |
उत्तरी |
उत्तर, उत्तरीय |
उत्तरा, उत्तरीया |
दक्षिणी |
दाहिण, दक्खिण |
दाहिणी, दक्खिणी, दाहिणा, दक्खिणा |
वाक्य रचना –
विशेषण के रूप हमेशा विशेष्य (जिसकी विशेषता बताई जाती है) के अनुसार चलेंगे, विशेष्य में यदि सप्तमी विभक्ति है तो विशेषण में भी सप्तमी विभक्ति होगी, इसी प्रकार विशेष्य का वचन और विशेषण का वचन भी समान होता है। जैसे –
- सुंदरे रुक्खे मयूरा णिवसन्ति – सुंदर वृक्ष पर मयूर रहते हैं
- मउडधारीहिं अमरेहिं गुरु पणमिज्जइ – मुकुटधारी देवों के द्वारा गुरु प्रणाम किए जाते हैं ।
सार्वनामिक विशेषण
पुल्लिंग और नपुंसकलिंग सर्वनाम वाचक विशेषण समान होते हैं।
सर्वनाम एत, आय, इम, त, अमु, ज, क, कवण, सव्व के पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्दों की रूपावली पहले बताई जा चुकी है। शेष सर्वनामों में अकारान्त पुल्लिंग सर्वनामों के रूप 'देव', नपुंसकलिंग सर्वनामों के रूप 'कमल' तथा स्त्रीलिंग सर्वनामों के रूप 'कहा' एवं ईकारान्त सर्वनामों के रूप ‘लच्छी' के समान चलेंगे। सार्वनामिक विशेषण शब्द -
यह (पु.)- एत, एअ, आय, इम
यह (स्त्री.)- एता, एआ, आया, इमा
वह (पु.)- त, अमु
वह (स्त्री.)- ता, अमु
जो (पु.)- जो
जो (स्त्री) – जा .
क्या, कौन, कौनसा (पु.) - क, कवण, काइं (किं-नपुं.) __
क्या, कौनसी (स्त्री.) - का, कवणा
ऐसा (पु.)- एह, अइस, एरिस, एआरिस, आरिस
ऐसी (स्त्री.)- एही, अइसी, एरिसी, एआरिसी, आरिसी
वैसा (पु.)- तेह, तइस, तारिस
वैसी (स्त्री.)- तेही, तइसी, तारिसी
कैसा (पु.) - केह, कइस, केरिस
कैसी (स्त्री.) - केही, कइसी, केरिसी
जैसा (पु.)- जेह, जइस, जारिस
जैसी (स्त्री.)- जेही, जइसी, जारिसी
अन्य के समान (पु.) - अन्नाइस, अवराइस, अन्नारिस
अन्य के समान (स्त्री.) - अन्नाइसी, अवराइसी, अन्नारिसी
हमारे जैसा (पु.)- अम्हारिस हमारे जैसी (स्त्री.) - अम्हारिसी
मेरे जैसा (पु.)- - मारिस
मेरे जैसी (स्त्री.) - मारिसी
तुम्हारे जैसा (पु.)- - तुम्हारिस
तुम्हारे जैसी (स्त्री.) - तुम्हारिसी
आप जैसा (पु.) - भवारिस
आप जैसी (स्त्री.) - भवारिसी
समान (पु.) - सरिस
समान (स्त्री.)- सरिसी
हमारा (पु.)- -अम्हार
हमारी (स्त्री.) - अम्हारी
मेरा (पु.)- महार
मेरी (स्त्री.) - महारी
तुम्हारा (पु.) - तुम्हार
तुम्हारी (स्त्री.) - तुम्हारी
तेरा (पु.) तुहार
तेरी (स्त्री.) -- तुहारी
मेरा (पु.)- मेर
मेरी (स्त्री.) -मेरी
इतना (पु.)- एत्तिअ, एत्तुल्ल, एत्तड,
इतनी (स्त्री.) -एत्तिआ, एत्तुला, एत्तडिया
उतना (पु.) - तेत्तिअ, तेत्तिल, तेत्तडअ
उतनी (स्त्री.) - तेत्तिआ, तेत्तिला
जितना (पु)- जेत्तिअ, जेत्तुल, जेवड
जितनी (स्त्री.)- जेत्तिआ, जेत्तुला
3. संख्यावाची विशेषण - जो विशेषण वस्तु की संख्या बताएं, वे संख्यावाची विशेषण होते हैं।
एक से बीस तक की संख्या इस प्रकार है -
एक्क – एक
दो, दु, वे, वि, दुइ – दो
ति – तीन
चार - चउ
पंच - पाँच
छह, छ - छह
सत्त - सात
अट्ठ - आठ
णव – नौ
दस, दह – दस
एयारह - ग्यारह
बारह, वारह –बारह
तेरस, तेरह - तेरह
चउदस - चौदह
पण्णारह - पन्द्रह
सोलह - सोलह
सत्तारह - सतरह
अट्ठारह - अट्ठारह
एक्कुणवीस – उन्नीस
बीस/ वीस – बीस
(साभार – अपभ्रंश अनुवाद कला)
करें गाथा स्वाध्याय –
जीविउ कासु ण वल्लहउं , धणु पुणु कासु ण इट्ठु
दोण्णि वि अवसर निवडिअइं तिण सम गणइ विसट्ठु ॥
अभ्यास
अपभ्रंश अनुवाद करें –
- गुरु के द्वारा मुझे प्रकट किया गया, दीपक दिया गया ।
- मनोहर वन में, सुंदर वृक्ष पर फल हैं ।
- धैर्यवान मनुष्य देवताओं के द्वारा पूजे जाते हैं
- उज्ज्वल ज्ञान से साधु हमें उपदेश देते हैं ।
- मैंने काला साँप देखा ।
- यहाँ आओ!
- जब तक तुम पढ़ते हो तब तक मैं खाना खा लूँगा।
- जैसे सूरज के द्वारा अंधकार भगाया जाता है, उसी प्रकार ज्ञान से अज्ञान भगाया जाता है ।
- वहाँ गुफा में सिंह है।
- पानी अत्यंत शीतल है ।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.