पाठ – 9 - वाच्य
वाच्य
कल के अभ्यास के उत्तर देखें विडियो में -
वाच्य -3- प्रकार के होते हैं –
1)कर्तृ वाच्य – जहां क्रिया के विधान का विषय करता हो, उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं। इस प्रकार के वाक्यों में क्रिया की विभक्ति कर्ता के अनुसार चलेगी । जैसे –
· राम पुस्तक पढ़ता है – रामो गंथु पढइ ।
· तुम भागे(धाव) – तुहुं धाविउ
· वह भोजन(असण) करेगा - सो असणु खाहिइ
· हम सब नगर से गाँव जाएँ - अम्हे णयराहु गामु गच्छामो।
2)भाव वाच्य - जहां भाव की प्रधानता होती है।
- यह अकर्मक क्रिया से ही बनाए जाते हैं ।
- भाव वाच्य बनाने के लिए कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति होती है तथा क्रिया में इज्ज एवं इय प्रत्यय जोड़े जाते हैं।
- इसके पश्चात संबन्धित काल के अन्यपुरुष के एक वचन के प्रत्यय भी लगा दिये जाते हैं ।
- भविष्यत काल में क्रिया का भविष्य काल का एकवचन अन्यपुरुष का ही रूप रहेगा, इज्ज/इय प्रत्यय नहीं जुडते ।
- भूतकाल में भूतकालिक कृदंत का प्रयोग होता है । जैसे -
- माता के द्वारा हंसा जाता है – मायाए - हस+इज्ज +इ/ए = हसिज्जइ अथवा हस + इय + इ/ए = हसियए/ हसियइ
- तुम्हारे द्वारा रोया जाये – पइं रुविज्जउ
- दादा द्वारा हंसा गया – पियामहें हसिउ
- मौसी द्वारा खुश होया जायेगा - माउसिए उल्लसेसइ
3)कर्म वाच्य - जिसमे कर्म की प्रधानता हो उसे कर्म वाच्य कहते हों।
v कर्म वाच्य में कर्ता की तृतीया विभक्ति होती है तथा कर्म की प्रथमा विभक्ति होती है।
v भूतकाल में कर्ता की तृतीय विभक्ति एवं क्रिया में भूतकालिक कृद्न्त का रूप चलता है तथा उसके रूप कर्म के लिंग, वचन, पुरुष के अनुसार होते हैं।
v वर्तमान काल और विधि एवं आज्ञा काल में 'इज्ज' और 'इय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उसके पश्चात कर्म के पुरुष और वचन के अनुसार ही संबन्धित काल के प्रत्यय जोड़े जाते हैं ।
v भविष्यतकाल में क्रिया के रूप कर्तृवाच्य के समान ही चलते हैं।
जैसे-
· राम के द्वारा पुस्तक पढी जाती है – रामेण गन्थो – पढ + इज्ज/इय + इ = पढिज्जइ ।
· तुम्हारे द्वारा अरिहंत नमस्कार किए जाते हैं – पइं अरिहंता पणमिज्जइ ।
· मेरे द्वारा अपभ्रंश सीखी गयी - मइं अवभंसु सिक्खियु
· तुम सब के द्वारा प्रद्युम्न चरित पढ़ा जाये – तुम्हेहिं पज्जुण्ण चरिउ पढिज्जउ ।
· गणधर के द्वारा धर्म कहा(भण)जाएगा – गणहरें धम्मो भणेसइ ।
विधि कृदंत –
ऐसा होना चाहिए – इस भाव को व्यक्त करने के लिए विधिकृदन्त का प्रयोग होता है । विधि कृदंत का प्रयोग मात्र भाव वाच्य अथवा कर्म वाच्य में होगा, कर्तृवाच्य में नहीं । विधि कृदन्त में क्रिया में दो प्रकार के प्रत्यय लगाए जाते हैं – 1. अव्व (परिवर्तनीय) 2. इएव्वउं, एव्वउं, एवा (अपरिवर्तनीय)
परिवर्तनीय – ‘अव्व’ प्रत्यय का प्रयोग होने पर ‘अव्व’ के रूप में परिवर्तन होता है और उसके रूप भाव वाच्य में सदा नपुंसकलिंग के अनुसार चलेंगे, जबकि कर्म वाच्य में कर्म के लिंग एवं वचन के हिसाब से ‘अव्व’ के रूप चलेंगे।
जैसे – भाव वाच्य- मेरे द्वारा हंसा जाना चाहिए = मइं हसिअव्व/ हसिअव्वा/ हसिअव्वु / हसेअव्व / हसेअव्वा / हसेअव्वु/ हसिएव्वउं/ हसेव्वउं/हसेवा
तुम सब के द्वारा नाचा जाना चाहिए – पइं णच्चिअव्व / णच्चिअव्वा/ णच्चिअव्वु/ णच्चिएव्वउं/ णच्चेव्वउं/ णच्चेवा ।
कर्म वाच्य में विधि कृदन्त का प्रयोग –
उन सबके द्वारा सेना देखी जानी चाहिए – तेहिं चमू पेच्छिअव्वा/ पेच्छिअव्व
तुम सब के द्वारा ग्रंथ पढ़ा जाना चाहिए – तुम्हहिं गन्थो पढिअव्वो
(च) अनियमित कर्मवाच्य
क्रिया में ‘इज्ज’ और ‘इय' प्रत्यय के संयोग से बने कर्मवाच्य के नियमित क्रिया रूपों के अतिरिक्त अपभ्रंश साहित्य में कुछ बने बनाये कर्मवाच्य के अनियमित क्रिया रूप भी मिलते हैं। इनमें कर्मवाच्य के ‘इज्ज’ और ‘इय’ प्रत्यय लगे हुए नहीं होते और न ही इसमें मूल क्रिया को प्रत्यय से अलग करके देखा जा सकता है। मात्र इनमें काल, पुरुष और वचन के प्रत्यय लगे होते हैं।
अपभ्रंश साहित्य से प्राप्त अनियमित कर्मवाच्य के क्रिया रूप
वर्तमानकाल अन्यपुरुष एकवचन
आढप्पइ |
आरम्भ किया जाता है। |
घेप्पइ |
ग्रहण किया जाता है। |
गम्मइ |
जाया जाता है। |
चिव्वइ |
इकट्ठा किया जाता है। |
जिव्वइ |
जीता जाता है। |
णज्जइ |
जाना जाता है। |
थुव्वइ |
स्तुति की जाती है। |
बज्झइ |
बांधा जाता है। |
पुव्वइ |
पवित्र किया जाता है। |
भुज्जइ |
भोगा जाता है। |
रुव्वइ |
रोया जाता है। |
लुच्चइ |
काटा जाता है। |
लिब्भइ |
चाटा जाता है। |
विलिप्पइ |
लीपा जाता है। |
सीसइ |
कहा जाता है। |
सुव्वइ |
सुना जाता है। |
हम्मइ |
मारा जाता है। |
खम्मइ |
खोदा जाता है। |
कीरइ |
किया जाता है। |
चिम्मइ |
इकट्ठा किया जाता है। |
छिप्पइ |
छुआ जाता है। |
डज्झइ |
जलाया जाता है। |
णव्वइ |
जाना जाता है। |
दीसइ |
देखा जाता है। |
दुब्भइ |
दूहा जाता है। |
भण्णइ |
कहा जाता है। |
रुब्भइ |
रोका जाता है। |
लब्भइ |
प्राप्त किया जाता है। |
लुव्वइ |
काटा जाता है। |
वुच्चइ |
कहा जाता है। |
विढप्पइ |
अर्जित किया जाता है। |
संप्पज्जइ |
प्राप्त किया जाता है। |
सिप्पइ |
सींचा जाता है। |
हीरइ |
हरण किया जाता है। |
वर्तमानकाल मध्यमपुरुष एकवचन
थुव्वहि |
स्तुति किए जाते हो |
धुव्वहि |
पंखा किए जाते हो |
सुव्वहि |
सुने जाते हो। |
दीसहि |
दिखाई देते हो। |
वाक्य रचना
मेरे द्वारा स्तुति प्रारम्भ की जाती है। |
मइं थुइ आढप्पइ। |
सेनापति के द्वारा शत्रु मारा जाता है। |
सेणावइएं सत्तु हम्मइ। |
महिला के द्वारा व्रत किया जाता है। |
महिलाए वयो कीरइ। |
साधु द्वारा कथा कही जाती है। |
साहुएं कहा सीसइ। |
पुत्री के द्वारा वृक्ष सींचा जाता है। |
पुत्तीए तरु सिप्पइ। |
माता के द्वारा घर पवित्र किया जाता है। |
मायाए घरु पुव्वइ। |
राजा के द्वारा तुम सुने जाते हो। |
नरिंदेण तुहुं सुव्वहि। |
बालक के द्वारा मधु चाटा जाता है। |
बालएण महु लिब्भइ। |
उसके द्वारा गाय बांधी जाती है। |
तेण धेणु बज्झइ। |
बालक द्वारा शिक्षा ग्रहण की जाती है। |
बालएणं सिक्खा घेप्पइ। |
अभ्यास करें –
1)तुम्हारे द्वारा कथा सुनी गयी (णिसुण)।
2)शुभम (सुहम) के द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है ।
3)हे जिनेन्द्र! आपकी भक्ति के द्वारा(भत्ति) कर्मों(कम्म) का क्षय(खय) होगा।
4)उनके द्वारा ग्रंथ पढे जाते हैं ।
5)कन्या के द्वारा साड़ी(साडी) ओढ़ी (ओढ) जाएगी ।
6)तुम्हारे द्वारा कलश(कुम्भ) में पानी लाया(ला) जाये ।
7)अर्जुन (अज्जुण) के द्वारा युद्ध(जुज्झ) किया जाये
8)विद्यार्थी (विज्जट्ठि) के द्वारा अभ्यास (अब्भास) किया(कर) जाना चाहिए ।
9)तुम सबके द्वारा उछला (उच्छ) जाना चाहिए
10)भीम (भीम) के द्वारा कुरुक्षेत्र(कुरुक्खेत्त) में युद्ध लडा जाना चाहिए ।
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