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कारक - पाठ 10


Sneh Jain

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प्रथमा विभक्ति : कर्ता कारक

  1. कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
  2. कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।

 

द्वितीया विभक्ति : कर्म कारक

  1. कर्तृवाच्य के कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।  
  2. द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है तथा गौण कर्म में अपादान, अधिकरण, सम्प्रदान, सम्बन्ध आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है।
  3. सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
  4. सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है।
  5. वस क्रिया के पूर्व उव, अनु, अहि और आ में से कोई भी उपसर्ग हो तो क्रिया के आधार में द्वितीया विभक्ति होती है; अन्यथा कारक के अनुरूप विभक्ति का प्रयोग होता है।
  6. उभओ (दोनों ओर), सव्वओ (सब ओर), धि ( धिक्कार), समया (समीप) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है।
  7. अन्तरेण (बिना) और अन्तरा (बीच में, मध्य में) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
  8. पडि (की ओर, की तरफ) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

 

तृतीया विभक्ति : करण कारक 

कर्ता के लिए अपने कार्य की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक होता है, वह करण कारक कहा जाता है। करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।

  1. भाववाच्य व कर्मवाच्य में कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।
  2. कारण व्यक्त करने वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
  3. फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक ओर मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
  4. सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थवाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  5. विणा शब्द के साथ तृतीया विभक्ति होती है।
  6. तुल्य ( समान, बराबर ) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया विभक्ति होती है। (षष्ठी विभक्ति भी होती है)
  7. शरीर के विकृत अंग को बताने के लिए तृतीया विभक्ति होती है।
  8. क्रिया विशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
  9. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
  10. प्रयोजन प्रकट करने वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।

 

चतुर्थी विभक्ति : सम्प्रदान कारक

दान आदि कार्य या कोई क्रिया जिसके लिए की जाती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं। सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।

  1. किसी प्रयोजन के लिए जो वस्तु या क्रिया होती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
  2. रुच (अच्छा लगना) अर्थ की धातुओं के साथ चतुर्थी विभक्ति होती है।
  3. कुज्झ (क्रोध करना), दोह (द्रोह करना), ईस (ईष्या करना), असूय (घृणा करना) क्रिया के योग में तथा इसके समानार्थक क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  4. णमो (नमस्कार) क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  5. कह (कहना) अर्थ की क्रियाओं के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

 

पंचमी विभक्ति : अपादान कारक

जिससे कोई वस्तु आदि अलग हो, उसे अपादान कहते हैं। अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।

  1. भय अर्थवाली धातुओं के साथ अथवा भय के कारण में पंचमी विभक्ति होती है।
  2. जिससे छिपना चाहता है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
  3. जिस वस्तु से किसी को हटाया जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
  4. जिससे विद्या पढ़ी जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
  5. दुगुच्छ (घृणा), विरम ( हटना), पमाय (भूल, असावधानी) तथा इनके समानार्थक शब्दों व धातुओं के साथ पंचमी विभक्ति होती है।
  6. उपज्ज, पभव (उत्पन्न होना) क्रिया के योग में पंचमी विभक्ति होती है।
  7. जिससे किसी वस्तु की तुलना की जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
  8. विणा के योग में पंचमी विभक्ति होती है।

 

षष्ठी विभक्ति : सम्बन्ध कारक

एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब जिसमें से छाँटी जाती है, उसमें षष्ठी व सप्तमी विभक्ति होती है।

  1. सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
  2. स्मरण करना, दया करना अर्थवाली क्रिया के साथ कर्म में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।

 

सप्तमी विभक्ति : अधिकरण कारक

किसी क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। जहाँ पर या जिसमें कोई कार्य किया जाता है, उस आधार या अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।

  1. जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है, तब हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
  2. द्वितीया और तृतीया विभक्ति के स्थान में सप्तमी विभक्ति का भी प्रयोग हो जाता है।
  3. फेंकने के अर्थ की क्रियाओं के साथ सप्तमी विभक्ति होती है।

 

वाक्य रचना -

बालओ (१/१) हसइ 

बालक हँसता है।

पुत्ती (१/१) कुल्लइ

पुत्री कूदती है।

तुम्हे (१/२) जग्गह

तुम सब जागो।

सो (१/१) हसउ

वह हँसे

महिलाहिं गीआइं (१/२) गाइज्जहिं

महिलाओं द्वारा गीत गाए जाते हैं।

बालएण गंथो (१/१) पढिज्जउ

बालक के द्वारा ग्रंथ पढा जावे।

तेण खीरु (१/१) पीबेसइ

उसके द्वारा दूध पीया जाएगा।

हउं गंथु (२/१) पढउं

मैं पुस्तक पढता हूँ।

तुहुं माया (२/१) पणमि

तुम माता को प्रणाम करो।

मायाउ पुत्तिउ (२/२) पालन्तु

माताएँ पुत्रियों को पालें।

सो गावि (२/१) दुद्ध (२/१) दुहइ

वह गाय से (अपादान) दूध दुहता है।

सो नरिंदु (२/१) धणु (२/१) मग्गइ

वह राजा से (अपादान) धन मांगता है।

सो रुक्खु (२/१) फलाइं (२/२) चुणइ

वह वृक्ष के (सम्बन्ध) फलों को इकट्ठा करता है।

सो पुत्तु (२/१) गामु (२/१) णेइ

वह पुत्र को गाँव में (अधिकरण) ले जाता है।

सो घरु (२/१) गच्छइ (गत्यार्थक)

वह धर जाता है।

सूर पयासो दिणु (२/१) पसरइ

सूर्य का प्रकाश दिन में (सप्तमी अर्थ) फैलता है।

हरि सग्गु (२/१) उववसइ, अनुवसइ, अहिवसइ

हरि स्वर्ग में रहता है।

णयरजणा णरिंदु (२/१) उभओ, सव्वओ चिट्ठहिं ।

नागरिक राजा के दोनों ओर, सब ओर बैठते हैं।

माया (२/१) विणा सिक्खा ण हवइ

माता के बिना शिक्षा नहीं होती।

जलु (२/१) विणा णरु ण जीवइ

जल के बिना मनुष्य नहीं जीता।

णाणु (२/१) अन्तरेण ण सुहु

ज्ञान के बिना सुख नहीं है।

गंगा (२/१) जउणा (२/१) य अन्तरा पयागु अत्थि

गंगा और यमुना के बीच में प्रयाग है।

माया ( २/१) पडि तुहं सणेह करहि

माता के प्रति तुम स्नेह करो।

महिला सलिलेण (३/१) वत्थाइं धोवइ

महिला पानी से वस्त्र धोती है।

माउलें (३/१) हसिज्जइ

मामा के द्वारा हँसा जाता है।

माउसीए (३/१) कहा सुणिज्जइ

माउसी के द्वारा कथा सुनी जाती है।

सो भयें (३/१) लुक्कइ

वह डर के कारण छिपता है।

तेण दसहिं ( ३/२) दिणेहिं (३/२) गंथो पढिओ 

उसके द्वारा दस दिनों में ग्रंथ पढ़ा गया।

सो मित्तेण (३/१) सह, समं गच्छइ

वह मित्र के साथ जाता है।

जलें (३/१) विणा णरु ण जीवइ

जल के बिना मनुष्य नहीं जीता है।

सो देवें (३/१) तुल्लो अत्थि

वह देव के बराबर है।

सो कण्णेणं (३/१) बहिरु अत्थि

वह कान से बहरा है।

नरिंदु सुहेण (३/१) जीवइ

राजा सुख पूर्वक जीता है।

तेणं (३/१) कालेणं (३/१) पइं काइं किउ

उस समय में (सप्तमी) तुम्हारे द्वारा क्या किया गया?

मूढे (३/१) मित्तें (३/१) किं

मूर्ख मित्र से क्या लाभ है?

को अत्थो तेण (३/१) पुत्तेण (३/१) जो ण विउसो ण धम्मिओ

उस पुत्र से क्या प्रयोजन जो न विद्वान है, न धार्मिक।

राओ णिद्धणहो (४/१) धण देइ

राजा निर्धन के लिए धन देता है।

सो धणस्सु ( ४/१) चेट्ठ इ

वह धन के लिए प्रयत्न करता है।

बालहो (४/१) खीरु आवडइ

बालक को दूध अच्छा लगता है।

लक्खणु रावणहो (४/१) कुज्झइ

लक्ष्मण रावण पर क्रोध करता है।

महिला हिंसाहे (४/१) असूसइ

महिला हिंसा से घृणा करती है।

दुज्जणु सज्जणहो (४/१) दोहइ

दुर्जन सज्जन से द्रोह करता है।

अरिहंताहं (४/२) णमो

अरिहंतों को नमस्कार।

हउं तुज्झ (४/१) कहा कउं

मैं तुम्हारे लिए कथा कहता हूँ।

तरुहे (५/१) फल पडइ

वृक्ष से फल गिरता है।

बालओ सप्पहे (५/१) डरइ

बालक सर्प से डरता है।

बालओ गुरुहे (५/१) लुक्कइ

बालक गुरु से छिपता है।

गुरु सिस्सु पावहे (५/१) रोक्कइ

गुरु शिष्य को पाप से रोकता है।

सो गुरुहे (५/१) गंथु पढइ

वह गुरु से ग्रंथ पढता हैं।

सज्जन पावहे (५/१) दुगुच्छइ

सज्जन पाप से घृणा करता है।

मुक्खु अज्झयणहे (५/१) विरमइ

मूर्ख अध्ययन से हटता है।

तुहुं भत्तिहे (५/१) मं पमायहि

तुम भक्ति में असावधानी मत करो।

खेत्तहु (५/१) धन्नु उपज्जइ

खेत से धान उत्पन्न होता है।

लोभहे (५/१) कुज्झु पभवइ

लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है।

धणहे (५/१) णाणु गुरुतर अत्थि

धन से ज्ञान बड़ा है।

रहुणन्दणहे ( ५/१) विणा सीया ण सोहइ।

राम के बिना सीता सुशोभित नहीं होती।

पुप्फहं (६/२) कमलु अईव सोहइ

फूलों में कमलका फूल अत्यन्त शोभता है।

मायाहे (६/१) पुत्तो

माता का पुत्र।

सो मायाहे (६/१) सुमरइ

वह माता का स्मरण करता है।

सो बालअहो (६/१) दयइ

वह बालक पर दया करता है।

सो तरुहि (७/१) चिट्ठइ

वह पेड पर बैठता है।

बालओ सायरे (७/१) कुल्लिओ

बालक समुद्र में कूदा।

पइं भोयणे (७/१) खाए (७/१) सो हरिसइ

तुम्हारे द्वारा भोजन खा लेने पर वह प्रसन्न होता है।

तेण गंथे (७/१) पढिए (७/१) तुहुं गाअहि

उसके ग्रंथ पढ लेने पर तुम गाते हो।

सूरे (७/१) उग्गिए (७/१) कमलु विअसइ

सूर्य के उगने पर कमल खिलता है।

हउं णयरे ( ७/१) द्वितीया के अर्थ में जाउं

मैं नगर जाता हूँ।

तहिं तीसु (७/२) (तृतीया के अर्थ में) पुहइ अंलकिया

वहाँ उन तीनों के द्वारा पृथ्वी अलंकृत हुई।

सो फरसु सायरि (७/१) खिवइ

वह फरसा समुद्र में फैकता है।

 

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