कारक - पाठ 10
प्रथमा विभक्ति : कर्ता कारक
- कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
- कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।
द्वितीया विभक्ति : कर्म कारक
- कर्तृवाच्य के कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
- द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है तथा गौण कर्म में अपादान, अधिकरण, सम्प्रदान, सम्बन्ध आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है।
- सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है।
- वस क्रिया के पूर्व उव, अनु, अहि और आ में से कोई भी उपसर्ग हो तो क्रिया के आधार में द्वितीया विभक्ति होती है; अन्यथा कारक के अनुरूप विभक्ति का प्रयोग होता है।
- उभओ (दोनों ओर), सव्वओ (सब ओर), धि ( धिक्कार), समया (समीप) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है।
- अन्तरेण (बिना) और अन्तरा (बीच में, मध्य में) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
- पडि (की ओर, की तरफ) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
तृतीया विभक्ति : करण कारक
कर्ता के लिए अपने कार्य की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक होता है, वह करण कारक कहा जाता है। करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है।
- भाववाच्य व कर्मवाच्य में कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।
- कारण व्यक्त करने वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
- फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक ओर मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थवाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
- विणा शब्द के साथ तृतीया विभक्ति होती है।
- तुल्य ( समान, बराबर ) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया विभक्ति होती है। (षष्ठी विभक्ति भी होती है)
- शरीर के विकृत अंग को बताने के लिए तृतीया विभक्ति होती है।
- क्रिया विशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
- कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
- प्रयोजन प्रकट करने वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
चतुर्थी विभक्ति : सम्प्रदान कारक
दान आदि कार्य या कोई क्रिया जिसके लिए की जाती है, उसे सम्प्रदान कहते हैं। सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।
- किसी प्रयोजन के लिए जो वस्तु या क्रिया होती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
- रुच (अच्छा लगना) अर्थ की धातुओं के साथ चतुर्थी विभक्ति होती है।
- कुज्झ (क्रोध करना), दोह (द्रोह करना), ईस (ईष्या करना), असूय (घृणा करना) क्रिया के योग में तथा इसके समानार्थक क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
- णमो (नमस्कार) क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
- कह (कहना) अर्थ की क्रियाओं के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।
पंचमी विभक्ति : अपादान कारक
जिससे कोई वस्तु आदि अलग हो, उसे अपादान कहते हैं। अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।
- भय अर्थवाली धातुओं के साथ अथवा भय के कारण में पंचमी विभक्ति होती है।
- जिससे छिपना चाहता है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
- जिस वस्तु से किसी को हटाया जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
- जिससे विद्या पढ़ी जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
- दुगुच्छ (घृणा), विरम ( हटना), पमाय (भूल, असावधानी) तथा इनके समानार्थक शब्दों व धातुओं के साथ पंचमी विभक्ति होती है।
- उपज्ज, पभव (उत्पन्न होना) क्रिया के योग में पंचमी विभक्ति होती है।
- जिससे किसी वस्तु की तुलना की जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
- विणा के योग में पंचमी विभक्ति होती है।
षष्ठी विभक्ति : सम्बन्ध कारक
एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब जिसमें से छाँटी जाती है, उसमें षष्ठी व सप्तमी विभक्ति होती है।
- सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- स्मरण करना, दया करना अर्थवाली क्रिया के साथ कर्म में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
सप्तमी विभक्ति : अधिकरण कारक
किसी क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। जहाँ पर या जिसमें कोई कार्य किया जाता है, उस आधार या अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।
- जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है, तब हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- द्वितीया और तृतीया विभक्ति के स्थान में सप्तमी विभक्ति का भी प्रयोग हो जाता है।
- फेंकने के अर्थ की क्रियाओं के साथ सप्तमी विभक्ति होती है।
वाक्य रचना -
बालओ (१/१) हसइ |
बालक हँसता है। |
पुत्ती (१/१) कुल्लइ |
पुत्री कूदती है। |
तुम्हे (१/२) जग्गह |
तुम सब जागो। |
सो (१/१) हसउ |
वह हँसे |
महिलाहिं गीआइं (१/२) गाइज्जहिं |
महिलाओं द्वारा गीत गाए जाते हैं। |
बालएण गंथो (१/१) पढिज्जउ |
बालक के द्वारा ग्रंथ पढा जावे। |
तेण खीरु (१/१) पीबेसइ |
उसके द्वारा दूध पीया जाएगा। |
हउं गंथु (२/१) पढउं |
मैं पुस्तक पढता हूँ। |
तुहुं माया (२/१) पणमि |
तुम माता को प्रणाम करो। |
मायाउ पुत्तिउ (२/२) पालन्तु |
माताएँ पुत्रियों को पालें। |
सो गावि (२/१) दुद्ध (२/१) दुहइ |
वह गाय से (अपादान) दूध दुहता है। |
सो नरिंदु (२/१) धणु (२/१) मग्गइ |
वह राजा से (अपादान) धन मांगता है। |
सो रुक्खु (२/१) फलाइं (२/२) चुणइ |
वह वृक्ष के (सम्बन्ध) फलों को इकट्ठा करता है। |
सो पुत्तु (२/१) गामु (२/१) णेइ |
वह पुत्र को गाँव में (अधिकरण) ले जाता है। |
सो घरु (२/१) गच्छइ (गत्यार्थक) |
वह धर जाता है। |
सूर पयासो दिणु (२/१) पसरइ |
सूर्य का प्रकाश दिन में (सप्तमी अर्थ) फैलता है। |
हरि सग्गु (२/१) उववसइ, अनुवसइ, अहिवसइ |
हरि स्वर्ग में रहता है। |
णयरजणा णरिंदु (२/१) उभओ, सव्वओ चिट्ठहिं । |
नागरिक राजा के दोनों ओर, सब ओर बैठते हैं। |
माया (२/१) विणा सिक्खा ण हवइ |
माता के बिना शिक्षा नहीं होती। |
जलु (२/१) विणा णरु ण जीवइ |
जल के बिना मनुष्य नहीं जीता। |
णाणु (२/१) अन्तरेण ण सुहु |
ज्ञान के बिना सुख नहीं है। |
गंगा (२/१) जउणा (२/१) य अन्तरा पयागु अत्थि |
गंगा और यमुना के बीच में प्रयाग है। |
माया ( २/१) पडि तुहं सणेह करहि |
माता के प्रति तुम स्नेह करो। |
महिला सलिलेण (३/१) वत्थाइं धोवइ |
महिला पानी से वस्त्र धोती है। |
माउलें (३/१) हसिज्जइ |
मामा के द्वारा हँसा जाता है। |
माउसीए (३/१) कहा सुणिज्जइ |
माउसी के द्वारा कथा सुनी जाती है। |
सो भयें (३/१) लुक्कइ |
वह डर के कारण छिपता है। |
तेण दसहिं ( ३/२) दिणेहिं (३/२) गंथो पढिओ |
उसके द्वारा दस दिनों में ग्रंथ पढ़ा गया। |
सो मित्तेण (३/१) सह, समं गच्छइ |
वह मित्र के साथ जाता है। |
जलें (३/१) विणा णरु ण जीवइ |
जल के बिना मनुष्य नहीं जीता है। |
सो देवें (३/१) तुल्लो अत्थि |
वह देव के बराबर है। |
सो कण्णेणं (३/१) बहिरु अत्थि |
वह कान से बहरा है। |
नरिंदु सुहेण (३/१) जीवइ |
राजा सुख पूर्वक जीता है। |
तेणं (३/१) कालेणं (३/१) पइं काइं किउ |
उस समय में (सप्तमी) तुम्हारे द्वारा क्या किया गया? |
मूढे (३/१) मित्तें (३/१) किं |
मूर्ख मित्र से क्या लाभ है? |
को अत्थो तेण (३/१) पुत्तेण (३/१) जो ण विउसो ण धम्मिओ |
उस पुत्र से क्या प्रयोजन जो न विद्वान है, न धार्मिक। |
राओ णिद्धणहो (४/१) धण देइ |
राजा निर्धन के लिए धन देता है। |
सो धणस्सु ( ४/१) चेट्ठ इ |
वह धन के लिए प्रयत्न करता है। |
बालहो (४/१) खीरु आवडइ |
बालक को दूध अच्छा लगता है। |
लक्खणु रावणहो (४/१) कुज्झइ |
लक्ष्मण रावण पर क्रोध करता है। |
महिला हिंसाहे (४/१) असूसइ |
महिला हिंसा से घृणा करती है। |
दुज्जणु सज्जणहो (४/१) दोहइ |
दुर्जन सज्जन से द्रोह करता है। |
अरिहंताहं (४/२) णमो |
अरिहंतों को नमस्कार। |
हउं तुज्झ (४/१) कहा कउं |
मैं तुम्हारे लिए कथा कहता हूँ। |
तरुहे (५/१) फल पडइ |
वृक्ष से फल गिरता है। |
बालओ सप्पहे (५/१) डरइ |
बालक सर्प से डरता है। |
बालओ गुरुहे (५/१) लुक्कइ |
बालक गुरु से छिपता है। |
गुरु सिस्सु पावहे (५/१) रोक्कइ |
गुरु शिष्य को पाप से रोकता है। |
सो गुरुहे (५/१) गंथु पढइ |
वह गुरु से ग्रंथ पढता हैं। |
सज्जन पावहे (५/१) दुगुच्छइ |
सज्जन पाप से घृणा करता है। |
मुक्खु अज्झयणहे (५/१) विरमइ |
मूर्ख अध्ययन से हटता है। |
तुहुं भत्तिहे (५/१) मं पमायहि |
तुम भक्ति में असावधानी मत करो। |
खेत्तहु (५/१) धन्नु उपज्जइ |
खेत से धान उत्पन्न होता है। |
लोभहे (५/१) कुज्झु पभवइ |
लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है। |
धणहे (५/१) णाणु गुरुतर अत्थि |
धन से ज्ञान बड़ा है। |
रहुणन्दणहे ( ५/१) विणा सीया ण सोहइ। |
राम के बिना सीता सुशोभित नहीं होती। |
पुप्फहं (६/२) कमलु अईव सोहइ |
फूलों में कमलका फूल अत्यन्त शोभता है। |
मायाहे (६/१) पुत्तो |
माता का पुत्र। |
सो मायाहे (६/१) सुमरइ |
वह माता का स्मरण करता है। |
सो बालअहो (६/१) दयइ |
वह बालक पर दया करता है। |
सो तरुहि (७/१) चिट्ठइ |
वह पेड पर बैठता है। |
बालओ सायरे (७/१) कुल्लिओ |
बालक समुद्र में कूदा। |
पइं भोयणे (७/१) खाए (७/१) सो हरिसइ |
तुम्हारे द्वारा भोजन खा लेने पर वह प्रसन्न होता है। |
तेण गंथे (७/१) पढिए (७/१) तुहुं गाअहि |
उसके ग्रंथ पढ लेने पर तुम गाते हो। |
सूरे (७/१) उग्गिए (७/१) कमलु विअसइ |
सूर्य के उगने पर कमल खिलता है। |
हउं णयरे ( ७/१) द्वितीया के अर्थ में जाउं |
मैं नगर जाता हूँ। |
तहिं तीसु (७/२) (तृतीया के अर्थ में) पुहइ अंलकिया |
वहाँ उन तीनों के द्वारा पृथ्वी अलंकृत हुई। |
सो फरसु सायरि (७/१) खिवइ |
वह फरसा समुद्र में फैकता है। |
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