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पं गोपालदास जी बरैया के संपर्क में - ६२


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       यहाँ से गणेशप्रसाद का जैनधर्म के बड़े विद्वान पं. गोपालदासजी वरैयाजी से संपर्क का वर्णन प्रारम्भ हुआ। वर्णीजी ने यहाँ उस समय उनके गुरु पं. पन्नालालजी बाकलीवाल का भी उनके जीवन में बहुत महत्व बताया है।

        वर्णीजी के अध्यन के समय तक सिर्फ हस्तलिखित ग्रंथ ही प्रचलन में थे। यह महत्वपूर्ण बात यहाँ से ज्ञात होती है। जिनवाणी की कितनी विनय थी उस समय के श्रावकों में कि ग्रंथों का मुद्रण भी योग्य नहीं समझते थे।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?


*पं.गोपालदास वरैया के संपर्क में*
   
                    *क्रमांक - ६२*


                बम्बई परीक्षा फल निकला। श्रीजी के चरणों के प्रसाद से मैं परीक्षा उत्तीर्ण हो गया। महती प्रसन्नता हुई। 

        श्रीमान स्वर्गीय पंडित गोपालदासजी का पत्र आया कि मथुरा में दिगम्बर जैन विद्यालय खुलने वाला है, यदि तुम्हे आना हो तो आ सकते हो। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।

        मैं श्री पंडितजी की आज्ञा पाते ही आगरा चला गया और मोतीकटरा की धर्मशाला में ठहर गया। वहीं श्री गुरु पन्नालाल जी बाकलीवाल भी आ गये। आप बहुत ही उत्तम लेखक तथा संस्कृत के ज्ञाता थे। 

         आपकी प्रकृति अत्यंत सरल और परोपकाररत थी। मेरे तो प्राण ही थे-इनके द्वारा मेरा जो उपकार हुआ उसे इस जन्म में नहीं भूल सकता। आप श्रीमान स्वर्गीय पं. बलदेवदास जी से सर्वार्थसिद्धि का अभ्यास करने लगे। मैं आपके साथ जाने लगा।

      उन दिनों छापे का प्रचार जैनियों में न था। मुद्रित पुस्तक का लेना महान अनर्थ का कारण माना जाता था, अतः हाथ से लिखे हुए ग्रंथों का पठन पाठन होता था। हम भी हाथ की लिखी सर्वार्थसिद्धि पर अभ्यास करते थे।

? *मेरीजीवन गाथा- आत्मकथा*?
 ?आजकी तिथि - श्रावण कृष्ण ३?

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