चिरकांक्षित जयपुर - ५८
☀
जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आजकी प्रस्तुती में गणेश प्रसाद के जयपुर में अध्ययन का उल्लेख तथा उनकी पत्नी की मृत्यु के समाचार मिलने आदि का उल्लेख है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"चिरकांक्षित जयपुर"*
*"क्रमांक - ५८"*
यहाँ जयपुर में मैंने १२ मास रहकर श्री वीरेश्वरजी शास्त्री से कातन्त्र व्याकरण का अभ्यास किया और श्री चन्द्रप्रभचरित्र भी पाँच सर्ग पढ़ा।
श्री तत्वार्थसूत्रजी का अभ्यास किया और एक अध्याय श्री सर्वार्थसिद्धि का भी अध्ययन किया। इतना पढ़ बम्बई की परीक्षा में बैठ गया।
जब कातन्त्र व्याकरण प्रश्नपत्र लिख रहा था, तब एक पत्र मेरे पास ग्राम से आया। उसमें लिखा था कि तुम्हारी स्त्री का देहावसान हो गया। मैंने मन ही मन कहा- 'हे प्रभो ! आज मैं बंधन से मुक्त हुआ।' यद्यपि अनेकों बंधनों का पात्र था, वह बंधन ऐसा था, जिससे मनुष्य की सर्व सुध-बुध भूल जाती है।'
पत्र को पढ़ते देखकर श्री जमुनालालजी मंत्री ने कहा- 'प्रश्नपत्र छोड़कर पत्र क्यों पढ़ने लगे?'
मैंने उत्तर दिया कि 'पत्र पर लिखा था कि जरूरी पत्र है।' उन्होंने पत्र को मांगा। मैंने दे दिया।
पढ़कर उन्होंने समवेदना प्रगट की और कहा कि- 'चिंता मत करना, प्रश्नपत्र सावधानी से लिखना, हम तुम्हारी फिर से शादी करा देवेंगे।'
मैंने कहा- 'अभी तो प्रश्नपत्र लिख रहा हूँ, बाद में सर्व व्यवस्था आपको श्रवण कराऊँगा।'
अंत में सब व्यवस्था उन्हें सुना दी और उसी दिन बाईजी को पत्र सिमरा दिया एवं सब व्यवस्था लिख दी। यह भी लिख दिया कि 'अब मैं निशल्य होकर अध्ययन करूँगा।' इतने दिन से पत्र नहीं दिया सो क्षमा करना।'
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
?आजकी तिथी- आषाढ़ शुक्ल १३?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.