विद्याध्ययन का सुयोग - ५५
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
ज्ञानप्राप्ति की प्रबल भावना रखने वाले गणेश प्रसाद का बम्बई से अध्ययन प्रारम्भ हो पाया। यही पर उनका परिचय जैनधर्म के मूर्धन्य विद्वान पंडित गोपालदासजी वरैया । जैन सिद्धांत प्रवेशिका इन्ही के द्वारा लिखी गई है।
बम्बई से अध्ययन प्रारम्भ होने तथा अवरोध प्रस्तुत होने का उल्लेख प्रस्तुत प्रसंग में है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"विद्याध्ययन का सुयोग"*
*क्रमांक - ५५*
मैं आनंद से अध्ययन करने लगा और भाद्रमास में रत्नकरण्डश्रावकाचार तथा कातन्त्र व्याकरण की पञ्चसंधि में परीक्षा दी। उसी समय बम्बई परीक्षालय खुला था। रिजल्ट निकला। मैं दोनों विषय में उत्तीर्ण हुआ। साथ में पच्चीस रुपये इनाम भी मिला। समाज प्रसन्न हुई।
श्रीमान पंडित गोपालदास वरैया उस समय वहीं पर रहते थे। आप बहुत ही सरल तथा जैनधर्म के मार्मिक पंडित थे, साथ में अत्यंत दयालु भी थे।
वह मुझसे बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि- 'तुम आनंद से विद्याध्ययन करो, कोई चिंता मत करो।' वह एक साहब के यहाँ काम करते थे। साहब इनसे अत्यंत प्रसन्न था।
पंडितजी ने मुझसे कहा- 'तुम शाम को मुझे विद्यालय आफिस से ले आया करो, तुम्हारा जो मासिक खर्च होगा, मैं दूँगा। यह न समझना कि मैं तुम्हे नौकर समझूँगा। मैं उनके समक्ष कुछ नहीं कह सका।'
मेरा परीक्षाफल देखकर देहली के एक जवेरी लक्ष्मीचंद्रजी ने कहा कि 'दस रुपया मासिक हम बराबर देंगे, तुम सानंद अध्ययन करो।'
मैं अध्ययन करने लगा किन्तु दुर्भाग्य का उदय इतना प्रबल था कि बम्बई का पानी मुझे अनुकूल न पड़ा। शरीर रोगी हो गया। गुरुजी और स्वर्गीय पं. गोपालदासजी ने बहुत ही समवेदना प्रगट की। तथा यह आदेश दिया कि तुम पूना जाओ, तुम्हारा सब प्रबंध हो जायेगा। एक पत्र भी लिख दिया।
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
?आजकी तिथी- आषाढ़ शुक्ल ७?
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