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JainSamaj.World
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मुक्तागिरी - ४५


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,


          आज के प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी की मुक्तागिरि वंदना का वृत्तांत है। 

     अगली प्रस्तुती का शीर्षक है "कर्म चक्र"। जिनमार्ग में विशेष प्रीति रखने वाले पूज्य वर्णीजी की हालत उस समय अत्यंत ही दयनीय हो गई थी। आत्मकथा के उन प्रसंगों को जानकर हम पुण्य पुरुष पूज्य वर्णीजी के असाधारण व्यक्तित्व से परिचत होंगे।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?


                      *"मुक्तागिरि"*

                     *क्रमांक - ४५*


                चार दिन बाद रामटेक से चल दिया, बाद में कामठी के जैन मंदिरों के दर्शन करता हुआ नागपुर पहुँचा। यहाँ पर अनेक मंदिर हैं। उनमें कितने ही बुंदेलखंड से आए हुए परवारों के हैं।

        ये सब तेरहपंथी आम्नाय वाले हैं। मंदिरों के पास एक धर्मशाला है। अनेक जिनालय दक्षिण वालों के भी हैं जो बीस पंथी आम्नाय वाले हैं।

       वहाँ पर रामभाउ पांडे एक योग्य पुरुष थे। आप बीस पंथी आम्नाय के भट्टारक के चेले थे। परंतु आपका प्रेम तत्व चर्चा में था, अतः चाहे तेरहपंथी आम्नाय का विद्वान हो, चाहे बीसपंथी आम्नाय का समान भाव से आप उन विद्वानों का आदर करते हैं।

        वहाँ दो या तीन दिन रहकर मैंने अमरावती को प्रस्थान किया। बीच में बर्धा मिला। यहाँ भी जिनमंदिरों के समुदाय हैं, उनके दर्शन किए।

       कई दिवसों के बाद अमरावती पहुँचा। वहाँ पर भी बुंदेलखंड से आये हुए परवारों के अनेक घर हैं जोकि तेरहपंथ आम्नाय को मानने वाले हैं। मंदिरों के पास एक धर्मशाला है। यहाँ पर श्री सिंघई पन्नालाल जी रहते थे। उनके यहाँ नियम था कि जो यात्री बाहर से आते थे उन सबको भोजन कराए बिना नहीं जाने देते थे।

       यहाँ से श्री सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरि उत्सुकतापूर्वक चल पड़ा। बीच में एलचपुर मिला। यहाँ जिनमंदिरों के दर्शन कर दूसरे दिन मुक्तागिरि पहुँच गया। 

          मुक्तागिरि क्षेत्र की शोभा अवर्णनीय है। सर्वतः वनों से वेष्टित पर्वत है। पर्वत के ऊपर अनेक जिनालय हैं। नीचे कई मंदिर और धर्मशालाएँ हैं। 

            यह तपोभूमि है परंतु अब तो वहाँ न कोई त्यागी है न साधु। जो अन्य क्षेत्रों की व्यवस्था है वही अवस्था यहाँ की है। सानंद वंदना की।

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
   ?आजकी तिथी- ज्येष्ठ शुक्ल ६?

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