Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    70
  • comments
    0
  • views
    7,178

रेशन्दीगिरी व कुण्डलपुर - ३७


Abhishek Jain

251 views


जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       आज की प्रस्तुती में पूज्य वर्णीजी के प्रारंभिक समय में श्री कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र में वंदना के समय भावों का उल्लेख है।

      एक भव्यात्मा के विशुद्ध भाव अवश्य ही हम सभी के जीवन को भी कल्याण की दिशा बतलाने वाले हैं यदि आप इनको गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं।

       पूज्य वर्णीजी ने यहा भली प्रकार स्पष्ट किया है कि भगवान वीतरागी हैं वह किसी को कुछ नहीं देते। वीरप्रभु के श्री चरणों में उनकी विनती जिनेन्द्र भगवान के दर्शन का महत्व भी स्पष्ट करती है।

       यदि आप रुचि रखते हैं तो वीर प्रभु के सम्मुख वर्णी जी की यह प्रार्थना पढ़कर प्रसन्नता की अनुभूति अवश्य करेंगे। आगे का अंश अगली प्रस्तुती में प्रस्तुत होगा।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?


          *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*


                     *क्रमांक - ३७*


          तीन दिन तक कुण्डलपुर क्षेत्र पर रहा और तीनों दिन श्री वीर प्रभु के दर्शन किए। मैंने वीर प्रभु से जो प्रार्थना की थी उसे आज के शब्दों में निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-

      हे प्रभो ! यद्यपि आप वीतराग सर्वज्ञ हैं, सब जानते हैं, परंतु वीतराग होने से चाहे आपका भक्त हो चाहे आपका भक्त न हो, उस पर आपको न राग होता है और न द्वेष। 

         जो जीव आपके गुणों में अनुरागी है उनमें स्वयमेव शुभ परिणामों का संचार हो जाता है और वे परिणाम ही पुण्यबंध में कारण हो जाते हैं।'

     'इति स्तुति देव ! विधाय दैंयाद्
     वरं न याचे त्वमुपेक्षकोसि।
    छाया तरुं संश्रयतः स्वतः स्यात,
    कश्छायया याचितयात्मलाभः।'

     यह श्लोक धनंजय सेठ ने श्री आदिनाथ प्रभु के स्तवन के अंत में कहा है। इस प्रकार आपका स्तवन कर हे देव ! मैं दीनता से कुछ वरकी याचना नहीं करता; क्योंकि आप उपेक्षक हैं।

        'रागद्वेषयोरप्रणिधानमुपेक्षा' यह उपेक्षा जिसके हो उसको उपेक्षक कहते हैं। श्री भगवान उपेक्षक हैं, क्योंकि उनके राग द्वेष नहीं है। 

      जब यह बात है तब विचारो, जिनके राग द्वेष नहीं उनकी अपने भक्त में भलाई करने की बुद्धि ही नहीं हो सकती। वह देखेंगे ही क्या?

     फिर यह प्रश्न हो सकता है उनकी भक्ति करने से क्या लाभ? उनका उत्तर यह है कि जो मनुष्य छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गया, उसको इसकी आवश्यकता नहीं कि वृक्ष से याचना करे-हमें छाया दीजिए। वह तो स्वयं ही वृक्ष के नीचे बैठकर छाया का लाभ ले रहा है।

      एवं श्री भगवान के गुणों का रुचिपूर्वक स्मरण करता है उनके मंद कषाय होने से स्वयं शुभोपयोग होता है और उसके प्रभाव से स्वयं शांति का लाभ होने लगता है।

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
   ?आजकी तिथी- ज्येष्ठ शुक्ल१०?

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...