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JainSamaj.World
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4. दशरथ -


Sneh Jain

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4. दशरथ -

जैन दर्शन के अनुसार कारण और कार्य का अपूर्व सम्बन्ध है। हेतुना न बिना कार्यं भवतीति किमद्भुतम्। अर्थात् कारण के बिना कार्य नहीं होता है, इसमें क्या आश्चर्य है ? इस ही आधार पर हम यहाँ भी देखेंगे कि किसी भी घटना का घटित होता कार्य और कारण के सम्बन्ध पर ही आश्रित है, अतः इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। इससे हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट होने से रामकथा के सभी पात्रों के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार संभव हो सकेगा तथा रामकथा को भी भलीर्भांति समझ सकेंगे। आगे हम पउमचरिउ के अनुसार रामकथा के सभी प्रमुख पात्रों की सम्पूर्ण जीवन यात्रा को देखने का प्रयास करते हैं।     

1. अनुरागी - नारद ने विभीषण द्वारा दशरथ व जनक को मारने के लिए बनाई गई योेजना दशरथ को बतायी। यह सुनकर दशरथ जनक के साथ अयोध्या से निकलकर कौतुक नगर पहुँचे। वहाँँ शुुभमति राजा की कन्या कैकेयी का स्वयंवर रचाया जा रहा था।दशरथ भी उस स्वयंवर में पहुँचे। कैकेयी द्वारा दशरथ के गले में वरमाला डाल दी गई। इससे हरिवाहन राजा ने क्रुद्ध होकर दशरथ से युद्ध किया।दशरथ ने कैकेयी को धुरी पर सारथी बनाकर युद्ध में हरिवाहन को जीत लिया और कैकेयी से विवाह कर लिया। कैकेयी का इस प्रकार युद्ध में साथ देने के कार्य से प्रसन्न होकर दशरथ ने अनुरागपूर्वक बिना विचार किये कैकेयी से कुछ भी मांगने को कहा। प्रत्युत्तर में कैकेयी ने कहा- हे देव, आपने दे दिया, जब मैं मांगू तब आप अपने सत्य का पालन करना।

2. वैरागी चित्त - दशरथ कंचुकी के मुख से स्वयं अपनी वृद्धावस्था के विषय में सुनकर विचार करने लगे,सचमुच जीवन चंचल है, क्या किया जाये जिससे मोक्ष सिद्ध हो। किसी दिन कंचुकी के समान हमारी भी अवस्था होगी। सिंहासन और छत्र सब अस्थिर हैं। इन सबको राम के लिए समर्पित कर मैं तप करूंगा। इस प्रकार वे वैराग्य धारण कर स्थित हो गये।

3. भय  - वैराग्य होने पर अगले दिन जैसे ही दशरथ ने राम को राज्य देने की घोषणा की वैसे ही कैकेयी ने दशरथ के पास जाकर अपनी धरोहर के रूप में रखा हुआ वर मांग लिया। दशरथ ने भी  राज्य में झूठा सिद्ध होने के बचने के भय से राम को बुलाया। उसके बाद दशरथ ने लक्ष्मण के उग्र स्वभाव से भयभीत हो राम से यह कहते हुए कि लक्ष्मण, भरत को राज्य दिया जानकर लाखों का काम तमाम कर देगा, इससे मैं, भरत, कैकेयी, शत्रुघ्न और सुप्रभा भी नहीं बच पायेंगे, भरत के लिए राज्य देने का आदेश  दिया। तब राम ने पिता को भय से मुक्त कर अपने लिए वनवास अंगीकार कर लिया। इस पर भरत ने पिता को धिक्कारा। भरत के कठोर वचन सुनकर अपयश से बचने के लिए दशरथ ने कहा- कैकेयी को जो सत्य वचन मैंने दिया है तुम मुझे उससे उऋण करो। भरत के लिए राज्य, राम के लिए प्रवास, मेरे लिए प्रव्रज्या अब यही ठीक है।

राम के प्रस्थान करने पर दशरथ ने अपने आपको धिक्कारते हुए कहा, मैंने राम को वनवास क्यों दे दिया? मैंने महान कुलक्रम का उल्लंघन किया। पुनः यशलोभ व भय से ग्रसित दशरथ द्वन्द्व विचार करने लगे कि यदि मैं सत्य का पालन नहीं करता, तो मैं अपने नाम औेर गोत्र को कलंकित करता, अच्छा हुआ राम गये पर सत्य का नाश नहीं हुआ। यह विचार कर भरत को राजपट्ट बाँंधकर दशरथ प्रव्रज्या के लिए कूच कर गये।


राजा दशरथ के कथानक के माध्यम से हम यहाँ देख सकते है कि दशरथ के राग और अपयश भय के कारण ही रामकथा का प्रादुर्भाव हुआ है। जैसे भाव, वैसी मति और वैसी ही गति । दशरथ की इन प्रवृत्तियों ने अपने सारे परिवार को संकट में डाल दिया। आज भी हम हमारे पास किसी भी रूप में घटी घटना को देखेंगे तो मूल में मानव की इन ही प्रवृत्तियों को पायेंगे।
आगे हम रामकथा के नायक  राम का चरित्र चित्रण करेंगे। यदि इन चरित्रों को पढने से किसी के भी मन को ठेस पहुँचे तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। मेरा उद्देश्य अपनी प्रवृत्तियों के परिमार्जन से सब को सुख पहुँचाना है, दुःख नहीं

 

जयजिनेन्द्र।

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