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सुरुपचन्द बनपुरिया और खुरई यात्रा - २४


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       जो पाठक बुंदेलखंड के हैं वह, वहाँ के श्रावकों के भावों से परिचित हैं। जो पाठक अन्य क्षेत्रों से हैं उन्होंने अवश्य ही बुंदेलखंड की अनेक विशेषताओं के बारे में सुना होगा।वह वर्णी की आत्मकथा से वह अवश्य ही बुंदेलखंड की अनेक विशेषताओं से परिचित होगें।

       आत्मकथा की प्रस्तुती के आज के अंश से ज्ञात होता है कि बुनदेलखंड़ में श्रावक मंद कषायी थी, व्रत उपवास करते है। आहार में भी शुध्दता थी। कमी थी तो केवल अध्यापन कराने वाले गुरु की।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

*"सुरुपचंद्रजी बनपुरिया और खुरई यात्रा"*

                    क्रमांक - २४

             बाईजी ने बहुत बुलाया, परंतु मैं लज्जा के कारण नहीं गया। उस समय यहाँ पर स्वरुपचंद्र बनपुरिया रहते थे। उनके साथ उनके गाँव माची चला गया, जो जतारा से तीन मील दूर है।

      वह बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे। उनकी धर्मपत्नी उनके अनुकूल तो थी ही, साथ ही अतिथि सत्कार में में अत्यंत पटु थी। उनके चौके में प्रायः प्रतिदिन तीन या चार अतिथि (श्रावक) भोजन करते थे।

       ये बड़े उत्साह से मेरा अतिथि सत्कार करने लगे। इनके समागम से स्वाध्याय में मेरा विशेष काल जाने लगा। श्री मोतीलाल वर्णी भी यहीं आ गए। उनके आदेशानुसार मैंने बुधजन छहढाला कंठष्ट कर लिया।

      अंतरंग में जैन धर्म का मर्म कुछ नहीं समझता था। इसका मूल कारण यह था कि इस प्रांत में पद्धति से धर्म की शिक्षा देने वाला कोई गुरु न था। 

          यों मंद कषायी जीव बहुत थे, व्रत उपवास करने में श्रद्धा थी, घर-२ शुद्ध भोजन की पद्धति चालू थी, श्री जी के विमान निकालने का पुष्कल प्रचार था, विमानोत्सव के समय चार सौ पाँच सौ सधर्मियों को भोजन कराया जाता था।

        दिन में श्री जिनेंद्रदेव का अभिषेक पूजन गानविद्या के साथ होता था, लोग गानविद्या में अतिकुशल थे व झाँझ मजीरा, ढोल आदि बाजों के साथ श्री जिनेन्द्रदेव की पूजन करते थे।

       इतना सुंदर गान होता था कि लोग विशुध्द परिणामों के द्वारा अनायास पुण्य बंध कर लेते थे। इन उत्सवों से जनता में सहज ही जैनधर्म का प्रचार हो जाता था।                           

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?? आजकी तिथी- ज्येष्ठ कृष्ण २?

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