अलंद में प्रभावना - २६४
? अमृत माँ जिनवाणी से - २६४ ?
"आलंद में प्रभावना"
आलंद की जैन समाज ने उत्साह पूर्वक संघ का स्वागत किया। वहाँ संघ सेठ नानचंद सूरचंद के उद्यान में ठहरा था।
पहले ऐंसी कल्पना होती थी, कि कहीं संकीर्ण चित्तवाले अन्य सम्प्रदाय के लोग विघ्न उपस्थित करें, किन्तु महराज शान्तिसागर जी के तपोबल से ऐंसा अद्भुत परिणमन हुआ कि ब्राम्हण, मुसलमान, लिंगायत, हिंदु आदि सभी धर्म वाले भक्तिपूर्वक दर्शनार्थ आए और प्रसाद के रूप में पवित्र धर्मोपदेश तथा कल्याणकारी बातें साथ में लेते गए।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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