राग शान्ति का मार्ग नहीं आत्म चिंतन ही शान्ति का मार्ग है
आचार्य योगीन्दु ने अपनी अथक साधना से जीवन की शान्ति के मार्ग का अनुसंधान किया है। उस ही अनुसंधान के आधार पर वे स्पष्टरूप से कहते हैं कि जीवन में शान्ति का मार्ग मात्र आत्म चिंतन ही है। आत्मा का ध्यान करने वाले को सभी की आत्मा समान जान पडती है जिससे उसके द्वारा की गया प्रत्येक क्रिया स्व और पर के लिए हितकारी होती है। इसी से उसका जीवन शान्तिमय होता है। अतः घर-परिवार की चिन्ता करने से शान्ति नहीं अपितु आत्मा का चिंतन करने से ही शान्ति प्राप्त हो सकती है।देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
124. मुक्खु ण पावहि जीव तुहुँ घरु परियणु चिंतंतु।
तो वरि चिंतहि तउ जि तउ पावहि मोक्ख महंतु।।
अर्थ - हे जीव! तू घर और परिवार की चिंता करता हुआ शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए अच्छा है कि तू उस ही उस आत्मा का चिंतन कर, (जिससे) श्रेष्ठ शान्ति को प्राप्त कर सके।
शब्दार्थ - मुक्खु-शान्ति, ण-नहीं, पावहि-प्राप्त कर सकता है, जीव-हे जीव!, तुहुँ- तू, घरु -घर,परियणु - परिवार की, चिंतंतु-चिन्ता करता हुआ, तो-इसीलिए, वरि-अच्छा है, चिंतहि-चिन्तन कर, तउ-उस, जि-ही, तउ -उसका, पावहि-प्राप्ति कर सके, मोक्ख-शान्ति, महंतु-श्रेष्ठ।
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