सत्य को समझने से ही कर्मों से मुक्ति हो सकती है
हमने पूर्व में देखा कि आसक्ति से मुक्ति में ही कर्मों से मुक्ति है। आगे इसी बात को आगे बढाते हुए आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि कर्मों से मुक्ति के लिए सत्य को जानना आवश्यक है क्योंकि सत्य को जानने के बाद ही आसक्ति का त्याग सरलता से हो सकता है। सत्य को समझकर आसक्ति के त्याग के बिना शास्त्रों का अघ्ययन व तप करना भी व्यर्थ है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
82. बुज्झइ सत्थइँ तउ चरइ पर परमत्थु ण वेइ।
ताव ण मुंचइ जाव णवि इहु परमत्थु मुणेइ।।
अर्थ -(जो) शास्त्रों को समझता है (और) तप का आचरण करता है किन्तु सत्य को नहीं जानता, (वह) जब तक यहाँ (इस जगत में )सत्य को नहीं जानता तब तक (वह) (कर्मों से) मुक्त नहीं किया जा सकता।
शब्दार्थ - बुज्झइ - जानता है, सत्थइँ-शास्त्रों को, तउ-तप का, चरइ-आचरण करता है, पर-किन्तु, परमत्थु-परमार्थ को, ण -नहीं, वेइ-जानता, ताव-तब तक, ण-नहीं, मुंचइ-मुक्त किया जा सकता, जाव -जब तक, णवि -नहीं, इहु -यहाँ, परमत्थु- सत्य को, मुणेइ-जानता है।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.