आसक्ति से मुक्ति ही कर्मों से मुक्ति है
आचार्य योगीन्दु ने कर्मों से मुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही सहज और वह भी एक ही मार्ग बताया है कि आसक्ति से मुक्त हो जाओ, कर्मों से मुक्ति मिलेगी और जीवन में शाश्वत सुख व शान्ति लहरा उठेगी। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
81. जो अणु-मेत्त वि राउ मणि जाम ण मिल्लइ एत्थु।
सो णवि मुच्चइ ताम जिय जाणंतु वि परमत्थु।।
अर्थ - यहाँ पर (इस जगत में) जब तक जो जीव अणु मात्र भी मन में (स्थित) आसक्ति को नहीं छोड़ता है, तब तक वह परमार्थ (सत्य) को जानता हुआ भी (कर्मों से) मुक्त नहीं किया जा सकता है।
शब्दार्थ - जो-जो, अणु-मेत्त-अणु मात्र, वि -भी, राउ-आसक्ति को, मणि-मन में, जाम-जब तक, ण -नहीं, मिल्लइ-छोड़ता, एत्थु-यहाँ पर, सो -वह, णवि-नहीं, मुच्चइ-मुक्त किया जा सकता, ताम-तब तक, जिय-जीव, जाणंतु-जानता हुआ, वि-भी, परमत्थु-परमार्थ को।
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