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?मिरज नरेश द्वारा भक्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - २६१


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       पूज्य शान्तिसागरजी महराज के शिखरजी की ओर ससंघ मंगल विहार का उल्लेख किया जा रहा है। इस उल्लेख में आपको अनेक रोचक बातें जानने मिलेंगी। आज के ही प्रसंग के माध्यम से भी आपको सभी स्थानों में पूज्यश्री द्वारा उस देशकाल में भी अपूर्व धर्मप्रभावना का भान होगा।

?   अमृत माँ जिनवाणी से - २६१  ?


          "मिरज नरेश द्वारा भक्ति"


        सांगली से संघ सानंद प्रस्थान कर मिरज पहुंचा। महराज के शुभागमन का समाचार मिलने पर वहाँ के नरेश आचार्यश्री के दर्शनार्थ पधारे। महराज का दर्शन कर संत समागम से उन्होंने अपने को धन्य समझा। 

           वहाँ से संघ अथणी होता हुआ अतिशय क्षेत्र बाबानगर पहुँचा। पश्चात संघ बीजापुर आया। यहाँ सार्वजनिक सभा में मुनि वीरसागर महराज तथा ऐलक पायसागरजी का प्रभावशाली उपदेश हुआ।


'अक्कलकोट में शाहीस्वागत व धर्मप्रभावना'


            वहाँ से चलकर संघ मगसिर सुदी ६ को अक्कल कोट पहुँचा वहाँ सरकारी बाजे द्वारा संघ का भक्ति पूर्वक स्वागत किया गया। २ बजे दिन को नेमिसागर मुनिराज तथा ऐलक नेमिसागरजी का केशलोंच हुआ। 

           उस समय राज्य के उच्च अधिकारी महोदय ने कचहरी की छुट्टी कर दी जिससे राज कर्मचारी भी केशलोंच को देख सकें। संघ के दर्शनार्थ बहुत लोग आए थे। केशलोंच को देखकर जैन साधु की आत्म निमग्नता, वीतरागता, निष्पृहता, अहिंसापरता का जनता पर गहरा प्रभाव हुआ।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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