?निजाम राज्य में प्रवेश - अमृत माँ जिनवाणी से - २६३
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के प्रसंग से आपको ज्ञात होगा कि परम पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज की चर्या के माध्यम से धीरे-२ पुनः सर्वत्र मुनिसंघ का विचरण प्रारम्भ हुआ।
वर्तमान में मुनिराजों द्वारा पू. शान्तिसागरजी महराज के निजाम राज्य प्रवेश संबंध में ज्ञात होता है कि उस समय दिगम्बरों के राज्य में विचरण में प्रतिबंघ था लेकिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज के प्रभाव से मुनिसंघ का विहार अप्रतिबंधित हुआ ही साथ ही राज्य प्रवेश में उनकी आगमानी स्वयं वहाँ के शासक ने अपनी बेगम के साथ किया।
? अमृत माँ जिनवाणी से - २६३ ?
"निजाम राज्य प्रवेश"
अक्कलकोट आदि स्थानों से होते हुए संघ ने तत्कालीन निजाम राज्य में प्रवेश किया था जो आज स्वतंत्र भारत में विलीन हो गया है। इसके कुछ समय पूर्व आलंद के सेठ माणिकचंद मोतीचंद शाह तथा बालचंद जी कोठारी (बकील), गुलवर्गा ने निजाम रियासत के धार्मिक विभाग के पास प्रार्थना ता. १( सन १९२७ में) दिया, उस पर श्री दिगम्बर आचार्य महराज के संघ के विहार के लिए स्वीकृति प्राप्त हो गई तथा मार्ग में संघ कोई तकलीफ ना हो इससे तत्कालीन पुलिस सुपरिंटेंडेंट मौलवी मुहम्मद जलालुद्दीन ने दो पुलिस के सिपाहियों को दिगम्बर मुनि संघ के साथ-साथ रहने की विशेष आज्ञा तारीख ३ वहमन १३३७ फ. को दी थी।
जिसमें लिखा था "मुहम्मद जलालुद्दीन मोहतमिम कोतवाली जिला गुलवर्गा की ओर से मि. बालचंद कोठारी बी.ए., एल.एल.बी. बकील, गुलवर्गा के नाम उत्तर निवेदन है कि आपके प्रार्थना पत्र पर अब्दुल करीमखा आवाजीराम नामक दो जवान(सिपाही) आज तारीख ३ वहमन सन १३३७ फसली को एक माह के लिए रवाना किए जाते हैं, अतः यह अवधि की समाप्ति पर दो इंफन्ददार सन १३३७ फसली को वापिस दिया जावे।"
जब संघ वागधरी पहुँचा तब वहाँ स्व. सेठ लीलाचंद हेमचंद की धार्मिक सेठानी राजूबाई के सारे संघ तथा अन्य यात्रियों का बड़े आदर पूर्वक भोजन सत्कार किया। यहाँ आहार के उपरांत सामयिक हुई। तत्पश्यात संघ का आलंद की ओर विहार हुआ।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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