मोह निरन्तर कर्म बंध का कारण है
आचार्य यागीन्दु कहते हैं कि जो मोह के वशीभूत होकर अच्छे और बुरे भाव करते हैं वे निरन्तर कर्म बंघ करते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
79. भुंजंतु वि णिय-कम्म-फलु मोहइँ जो जि करेइ।
भाउ असुंदरु सुंदरु वि सो पर कम्मु जणेइ।।
अर्थ - जो अपने कर्म फल को भोगता हुआ भी मोह से अच्छा और बुरा भाव करता है, वह आगे (पुनः) कर्म उत्पन्न (नवीन कर्म बन्ध) करता है।
शब्दार्थ - भुंजंतु- भोगता हुआ, वि-भी, णिय-कम्म-फलु -अपने कर्म फल को, मोहइँ-मोह से, जो-जो, (जि - पादपूर्ति हेतु प्रयुक्त) करेइ-करता है, भाउ -भाव, असुंदरु-बुरा, सुंदरु-अच्छा, वि-और, सो-वह, पर-आगे का, कम्मु-कर्म, जणेइ-उत्पन्न करता है।
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