सुंुंदर वस्तु की प्राप्ति के बाद असुन्दर वस्तु की प्राप्ति की आवश्यक्ता नहीं है
पूर्व कथित बात को आगे बढ़ाते हुए आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि जिसने एक बार सर्व सुंदर आत्मा से आत्मसात कर लिया है उसको फिर आत्मा को छोड़कर कोई पर वस्तु प्रिय नहीं लगती। जिस प्रकार मरकतमणि की प्राप्ति के बाद काँच कौन लेना चाहेगा। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
78. अप्पा मिल्लिवि णाणमउ चित्ति ण लग्गइ अण्णु ।
मरगउ जेँ परयाणियउ तहुँ कच्चे ँ कउ गण्णु।।
अर्थ -(ज्ञानियों के) ज्ञानमय चित्त में आत्मा को छोड़कर दूसरी (वस्तु) सम्मिलित नहीं होती। जिसके द्वारा मरकतमणि जान ली गई है, उसके लिए काँच से किस लिए प्रयोजन ?
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा को, मिल्लिवि -छोड़कर, णाणमउ-ज्ञानमय, चित्ति-चित्त में, ण-नहीं, लग्गइ-सम्मिलित होती है, अण्णु-दूसरी, मरगउ-मरकत मणि, जेँ - जिसके द्वारा, परयाणियउ-जान ली गयी, तहुँ - उसके लिए, कच्चे ँ -काँच से, कउ-किस लिए, गण्णु-प्रयोजन।
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