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?गृहस्थी के झंझट - अमृत माँ जिनवाणी से - २१४


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       जिनेन्द्र भगवान की वाणी मनुष्य की चिंताओं को समाप्त करने वाली तथा अद्भुत आनंद का भंडार है। अतः हम सभी को भले ही थोड़ा हो लेकिन माँ जिनवाणी का अध्यन प्रतिदिन अवश्य ही करना चाहिए।

         नए लोगों को इस कार्य का प्रारम्भ महापुरुषों के चरित्र वाले ग्रंथों अर्थात प्रथमानुयोग के ग्रंथों से करना चाहिए।

?   अमृत माँ जिनवाणी से - २१४   ?


                "गृहस्थी के झंझट"


          लेखक दिवाकरजी लिखते हैं कि पूज्य शान्तिसागरजी महराज का कथन कितना यथार्थ है कि लौकिक कार्यों में कितना कष्ट नहीं उठाना पड़ता है? 

         क्षुधा तृषा की व्यथा सहनी पड़ती है? और भी कितने शारीरिक व मानसिक कष्ट नहीं होते? धन के लिए, कुटुम्ब के लिए गृहस्थ को क्या-२ कष्ट नहीं उठाना पड़ते? क्या क्या प्रपंच नहीं करने पड़ते?

        अंत में कुछ वस्तु हाथ में नहीं लगती है। किन्तु थोड़ा सा व्रत जीव का कितना उद्धार करता है, इसके प्रमाण प्रथमानुयोग रूप आगम में भरे हुए हैं।

          उस दिन के विवेचन को सुनकर ज्ञात हुआ कि व्रत, दान की प्रेरणा के पीछे कितना प्रेम, कितना ममत्व, कितनी उज्ज्वल करुणा की भावना गुरुदेव के अंतःकरण में भरी हुई है।

         सुनकर ऐसा लगा मानो कोई पिता विषपान करने वाले अपने पुत्र से आग्रह कर यह कह रहा हो कि बेटा ! विषपान मत करो, मेरे पास आओ, मैं तुम्हे अमृत पिलाउंगा।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का 

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