?व्यवहार कुशलता - अमृत माँ जिनवाणी से - १९४
? अमृत माँ जिनवाणी से - १९४ ?
"व्यवहार कुशलता"
पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी महराज की व्यवहार कुशलता महत्वपूर्ण थी। सन् १९३७ में आचार्यश्री ने सम्मेदशिखरजी की संघ सहित यात्रा की थी, उस समय मैं उनके साथ-साथ सदा रहता था। सर्व प्रकार की व्यवस्था तथा वैयावृत्ति आदि का कार्य मेरे ऊपर रखा गया था।
उस अवसर पर मैंने आचार्यश्री के जीवन का पूर्णतया निरीक्षण किया और मेरे मन पर यह प्रभाव पड़ा कि श्रेष्ठ आत्मा में पाये जाने वाले सभी शास्त्रोक्त गुण उनमें विद्यमान हैं।
प्रवास करते हुए मार्ग में कई बार जंगली जानवरों का मिलना हो जाता था, किन्तु महराज में रंच मात्र भी भय या चिंता का दर्शन नहीं होता था। उन जैसी निर्भीक आत्मा के आश्रय से सभी यात्री पूर्णतया भय विमुक्त रहे आते थे।
जब जब मार्ग में बड़ी से बड़ी विपत्ति आई, तब तब हम आचार्य महराज का नाम स्मरण करके कार्य में उद्यत हो जाते थे और उनकी जय बोलते हुए काम करते थे, जिससे विध्न की घटा शीघ्र ही दूर हो जाती थी। प्रवास में अपार कष्ट होते हैं, किन्तु इन महान योगी के प्रताप से शुलों का भूलों में परिणमन हो जाता था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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