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?महराज का पुण्य जीवन - अमृत माँ जिनवाणी से - १९३


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १९३    ?


             "महराज का पुण्य जीवन"


             पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के छोटे भाई के पुत्र जिनगौड़ा पाटील से पूज्य शान्तिसागरजी महराज के बारे में जानकारी लेने पर उन्होंने बताया-

       हमारे घर शास्त्र चर्चा सतत चलती रहती थी। आचार्य महराज व्रती थे, इससे आजी माँ उनका विशेष ध्यान रखती थी। जब मैं ५-६ वर्ष का था, तब मुझे वे (महराज) दुकान के भीतर अपने पास सुलाते थे। वे काष्ठासन पर सोते थे। किन्तु मुझे गद्दे पर सुलाते थे।

        प्रभात में वे सामायिक करते थे व पश्चात मुझे जगाकर पंच णमोकार मंत्र पढ़ने को कहते थे। वे मुझे रत्नक्रण्ड श्रावकाचार कंठस्थ कराते थे। वे अनेक प्रकार के सदुपदेश मुझे देते थे। प्रभात में मैं स्कूल चला जाता था। मध्यान्ह में लौटकर आता था। उस समय महराज अपने पास बैठकर मुझे भोजन कराते थे, वे दूसरी थाली में मौन से एक ही बार भोजन करते थे।

         दोपहर में वे मुझे कुछ पढ़ाते थे। पश्चात वे मुझे किसमिस, बादाम, खोपरा, मिश्री आदि खिलाते थे, किन्तु वे खुद भी नहीं खाते थे।

         संध्या के समय महराज मुझे खेत की ओर, तो कभी-२ मैदान की तरफ घुमाने ले जाते थे। आजी माँ की मृत्यु के बाद महराज दुकान में रात्रि को शास्त्र पढ़ते थे। उसी वक्त उनका मित्र रुद्रप्पा आया करता था।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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