?इन्होंने मिथ्यात्व का त्याग कराया - अमृत माँ जिनवाणी से - १८८
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८८ ?
"इन्होंने मिथ्यात्व का त्याग कराया"
यहाँ पटिलों का प्रभाव सदा रहा है, किन्तु भेद नीति के कारण ब्राह्मणों ने अपना विशेष स्थान बनाया है। लोग मिथ्यादेवों की आराधना करते थे। यहाँ के मारुति के मंदिर जाते थे। लिंगायतों तथा ब्राह्मणों के धर्म गुरुओं की भक्ति-पूजा करते थे। उनका उपदेश सुना करते थे। उनको भेट चढ़ाया करते थे।
इस प्रकार गाढ मिथ्या अंधकार में निमग्न लोगों को सत्पथ में लगाने का समर्थ किसमें था? महराज के उज्ज्वल तथा पवित्र उपदेश के प्रभाव से लोगों ने गृहीत मिथ्यात्व का त्याग करके सम्यक्त्व के मार्ग को ग्रहण किया। महराज के प्रभाव से जैनियों को बौद्धिक तथा मानसिक स्वातंत्र्य मिला और समाज का परित्राण हुआ।
पूज्य शान्तिसागरजी महराज की सभी प्रवृत्तियाँ धैर्य के उन्मुख तथा धर्मानुकूल होती थी। वे धर्म-नीति, मिथ्यात्व निराकरण तथा अहिंसा-प्रचार के सिवाय लौकिक व्यवहार अथवा राजनीति के पंक में लिप्त नहीं होते थे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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