?दयासागर - अमृत माँ जिनवाणी से - १८७
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८७ ?
"दयासागर"
सातगौड़ा का दयामय जीवन प्रत्येक के देखने में आता था। दीन-दुखी, पशु-पक्षी आदि पर उनकी करुणा की धारा बहती थी। जहाँ-जहाँ देवी आदि के आगे हजारों बकरे, भैंसे आदि मारे जाते थे, वहाँ अपने प्रभावशाली उपदेश द्वारा जीव बध को ये बंद कराते थे।
इससे लोग इनको "अहिंसावीर" कहते थे। ये दया मूर्ति के साथ ही साथ प्रेम मूर्ति भी थे। इस कारण ये सर्प आदि भीषण जीवों पर भी प्रेम करते थे। उनसे तनिक भी नहीं डरते थे। इनका विश्वास था कि ये प्राणी बिना सताये कभी भी कष्ट नहीं देते हैं।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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