(रावणपुत्र अक्षयकुमार के सन्दर्भ में) कथनी और करनी में भेद
रावण का दूसरा पुत्र अक्षयकुमार भी बहुत पराक्रमी एवं विद्याधारी था। अक्षय कुमार व हनुमान के मध्य हुए युद्ध में प्रारम्भ में हनुमान भी उसे नहीं जीत सका। हनुमान ने भी प्रारंभ में उसकी स्फूर्ति की प्रशंसा करते हुए कहा कि देवता भी जिसकी गति का पार नहीं पा सकते उसके साथ मैं कैसे युद्ध करूँ। अक्षयकुमार ने अपनी अक्षयविद्या से अनन्त सेना उत्पन्न कर दी, किन्तु अन्त में वह हनुमान के शस्त्रों से मारा गया। अक्षयकुमार की एक छोटी सी घटना के माध्यम से हम यह देखेंगे कि अक्षयकुमार के समान इस संसार में कितने लोग होंगे जो पाप कर्म में लिप्त होकर भी किस प्रकार गुणीजनों का उपहास उड़ाते हैं और अन्त में धाराशायी होते हैं।
लंका में प्रवेश कर हनुमान ने नन्दनवन के उद्यानों एवं रावण की सेना को तहस- नहस कर दिया। तब रावण के पुत्र अक्षयकुमार ने आकर हनुमान को ललकारा- अरे हनुमान! जिनवर के वचन को तुमने कुछ भी नहीं समझा और जिससे श्रावक का नाम विख्यात होता है उन अणुव्रत, गुणव्रत और परधनव्रत में से तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। जिसने इतने जीवों का संहार किया है कि पता नहीं वह कहाँ जाकर विश्राम पायेगा। मैंने इस समय छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं को मारने से निवृत्ति ग्रहण कर ली है। केवल एक तुम्हारे जैसे लोगों के साथ युद्ध करना नहीं छोड़ा। इस प्रकार अपने पिता रावण के पाप कर्म का साथ देकर भी अपने तर्क से अपने आपको महान सिद्ध करने के रूप में इसका पाखण्डी रूप उभरकर आया है।
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