गिरिनारजी में ऐलक दीक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - ५५
? अमृत माँ जिनवाणी से - ५५ ?
"गिरिनारजी में ऐलक दीक्षा"
जब पूज्य क्षुल्लक शान्तिसागरजी महाराज कुम्भोज बाहुबली में विराजमान थे, तब कुछ समडोली आदि के धर्मात्मा भाई गिरिनारजी की यात्रा के लिए निकले और बाहुबली क्षेत्र के दर्शनार्थ वहाँ आये और महाराज का दर्शन कर अपना जन्म सफल माना। उन्होंने महाराज से प्रार्थना की कि नेमिनाथ भगवान के निर्वाण से पवित्र भूमि गिरिनारजी चलने की कृपा कीजिए।
शान्तिसागरजी महाराज की तीर्थभक्ति असाधारण रही आयी है, इसलिए महाराज ने चलने का निश्चय कर लिया।
समडोली के श्रावको के साथ महाराज, नेमिनाथ भगवान के पदरज से पुनीत गिरिनार पर्वत पहुँचे। उन्होंने जगतवंध नेमिनाथ प्रभु के चरण चिन्हों को प्रणाम किया और सोचा की इन तीर्थंकरों के चरणों के चिन्ह रूप अपने जीवन में कुछ स्मृति सामग्री ले जाना चाहिए।
वहाँ के पवित्र वार्तावरण इनके अंतःकरण को विशेष प्रकाश दिया। भगवान नेमिनाथ के निर्वाण स्थान की स्थायी स्मृतिरूप ऐलक दीक्षा लेने का इन्होंने विचार किया।
महापुरुष जो विचारते हैं, तदनुसार आचरण करते हैं, इसलिए अब ये ऐलक बन गए। इनकी आत्मा में विशुद्धता उत्पन्न हुई।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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